संस्कृति को बचाने में जनजातीय वीरों का बड़ा योगदान – कुलपति प्रो. केजी सुरेश
भोपाल संस्कृति को बचाने में जनजातीय वीरों का बड़ा योगदान – कुलपति प्रो. केजी सुरेश
डिजिटल डेस्क, भोपाल। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में स्वतंत्रता संग्राम में जनजातीय नायकों के योगदान पर कार्यक्रम का आयोजन किया गया। राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग एवं अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम के सहयोग से विश्वविद्यालय में आयोजित इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रख्यात फिल्म निर्माता एवं निर्देशक अशोक शरण, मुख्य वक्ता राजभवन में जनजातीय प्रकोष्ठ के विधि सलाहकार विक्रांत सिंह कुमरे थे । कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. केजी सुरेश ने की।
1855 में दस हजार जनजातीय शहीदों की शहादत: कुमरे
राजभवन में जनजातीय प्रकोष्ठ के विधि सलाहकार एवं मुख्य वक्ता विक्रांत सिंह कुमरे ने कहा कि लोग जलियावाला हत्याकांड को जानते हैं, लेकिन 1855 में दस हजार जनजातीय शहीदों की शहादत के बारे में नहीं जानते हैं। मुख्य वक्ता कुमरे ने पत्रकारिता के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह दैनिक इतिहास लिखता है। पत्रकारिता में नैतिक मूल्य अभी भी विद्मान है और इस क्षेत्र के लोगों को जनजातीय समुदाय के योगदान के बारे में हमेशा लिखते रहना चाहिए।
अनुछुए विषयों पर फिल्में बनाएं विद्यार्थी: शरण
मुख्य अतिथि प्रख्यात फिल्म निर्माता एवं निर्देशक अशोक शरण ने कहा कि उन्होंने 18 वर्ष की उम्र से ही अपना जीवन इस समुदाय के समर्पित कर दिया है । आदिवासी समुदाय पर दौ सौ से ज्यादा फिल्में, डाक्यूमेंट्री बना चुके हैं। निर्देशक शरण ने कहा कि मैं अपनी फिल्मों में ऐसे इतिहास के बारे में बताता हूं, जिसे न तो बताया गया है, न ही दिखाया गया है। उन्होंने कहा कि अपने जीवन का बहुत सा हिस्सा जनजातीय समुदाय के लोगों के साथ जंगल, सुदूर क्षेत्र में उनके साथ रहें हैं इसलिए उनको करीब से देखा है, जाना है और उस अनभिज्ञ इतिहास पर उनकी ज्यादातर फिल्में और डाक्युमेंट्री होती हैं । जो जागत है सो पावत है जो सोवत है वो खोवत है का गुरु मंत्र देते हुए उन्होंने विद्यार्थियों से आव्हान किया, वे भी ऐसे ही अनुछुए विषयों पर फिल्में बनाएं।
जनजातीय समुदाय के संघर्ष के कारण ही आज हम स्वतंत्र हैं: प्रो सुरेश
विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. केजी सुरेश ने कहा कि स्वाधीनता संग्राम राजनीतिक संघर्ष नहीं था, ये सांस्कृतिक, सामाजिक, पारम्परिक मूल्यों का संघर्ष था। अपनी संस्कृति को बचाने के लिए जनजातीय समुदाय ने संघर्ष किया था। उन्होंने कहा कि उनके कारण ही आज हम स्वतंत्र हैं। कुलपति प्रो. सुरेश ने इस अवसर पर जनजातीय संचार पर एक शोध पीठ स्थापित करने की घोषणा भी की । उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय एक पुस्तक भी प्रकाशित करने जा रहा है, जिसमें स्वाधीनता संग्राम करने वाले क्रांतिकारियों के बारे में बताया जाएगा। प्रो. सुरेश ने कहा कि अभी तक कई फिल्मों में भी जनजातीय समाज का नकारात्मक चित्रण किया गया है, जिन्होंने फिल्में बनाई हैं वो शायद ही कभी वनों में गए होंगे । और यदि वे गए होते तो ऐसी फिल्में नहीं बनाते । प्रो. सुरेश ने विद्यार्थियों से कहा कि राजपथ से कर्तव्य पथ पर चलना ही आजादी है ।
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग नई दिल्ली के उप-निदेशक आरके दुबे ने कहा कि 65 वें संविधान संशोधन में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग का गठन किया गया । उन्होंने बताया कि अनुसूचित जाति की समस्या छुआछूत है, लेकिन अनुसूचित जनजाति की समस्या इससे अलग है क्योंकि वे सुदूर अंचलों में निवास करते हैं। उन्होंने आयोग के गठन, कार्य व शक्तियों आदि के बारे में बताया।
देश की आजादी में आदिवासी नायकों का बड़ा योगदान: डॉ. श्रीकांत सिंह
आजादी के अमृत महोत्सव समिति के अध्यक्ष डॉ. श्रीकांत सिंह ने कहा कि आदिवासी क्षेत्रों के जनजातीय नायकों का हमारे देश की आजादी के योगदान में बहुत योगदान रहा है लेकिन कम ही लोग इस बारे जानते हैं। उन्होंने कोल, परगना, नागा आंदोलन के बारे में प्रकाश डालते हुए कहा कि हजारों नायकों का बलिदान तो इतिहास में दर्ज ही नहीं हो पाया है ।
इस अवसर विश्वविद्यालय के परिसर में जनजातीय नायकों के योगदान पर एक प्रदर्शनी भी लगाई गई। कुलपति प्रो. केजी सुरेश ने फीता काटकर प्रदर्शनी का उदघाटन किया। अतिथियों एवं विद्यार्थियों ने प्रदर्शनी का अवलोकन किया।
आभार प्रदर्शन डॉ. गजेंद्र सिंह अवास्या द्वारा किया गया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. आर.डी.त्यागी ने किया। कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो. अविनाश वापजेयी, सभी विभागों के विभागाध्यक्ष, शिक्षक, अतिथि शिक्षक, अधिकारी, कर्मचारी एवं विद्यार्थी उपस्थित थे।