बस्ती से जेनयू और फिर अमेरिका की राह लेने वाली सरिता की मिली वीसी की सराहना
नई दिल्ली बस्ती से जेनयू और फिर अमेरिका की राह लेने वाली सरिता की मिली वीसी की सराहना
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डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। एक साथ दो दो अमेरिकी विश्वविद्यालयों से फेलोशिप हासिल करने वाली जेएनयू की छात्रा सरिता माली से विश्वविद्यालय की कुलपति ने मुलाकात की। गौरतलब है कि सरिता माली मुंबई की एक स्लम बस्ती से निकलकर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय तक पहुंची। सरिता ने गुजर बसर के लिए सड़कों पर फूल भी बेचे हैं। यहां जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से उन्होंने पीएचडी की और अब अमेरिका की सबसे प्रतिष्ठित फेलोशिप में से एक फेलोशिप के लिए अमेरिका की दो-दो यूनिवर्सिटी उन्हें बुला रही है।
जेएनयू की वीसी प्रोफेसर शांतिश्री पंडित ने जेएनयू की छात्रा सरिता माली से मुलाकात की और उन्हें बधाई दी। विश्वविद्यालय का कहना है कि जेएनयू में न केवल प्रथम श्रेणी की शिक्षा दी जाती है बल्कि सभी के लिए समावेशी और सहानुभूति के साथ उत्कृष्टता का वातावरण है।
सरिता माली को अमेरिका के दो विश्वविद्यालयों यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया और यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंग्टन से फेलोशिप ऑफर हुई है। अमेरिकी यूनिवर्सिटी से फेलोशिप ऑफर हासिल करने वाली सरिता का जन्म और परवरिश मुंबई के एक स्लम इलाके में ही हुआ था और बचपन में उन्होनें मुंबई की रेड लाइट पर फूल बेचे हैं।
सरिता की उम्र 28 साल हैं। उन्होंने बताया कि उनका अमेरिका के दो विश्वविद्यालयों में चयन हुआ है। यह विश्वविद्यालय हैं यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया और यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंग्टन। उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया को वरीयता दी है। उन्होंने बताया कि इस अमेरिका की यूनिवर्सिटी ने उनकी मेरिट और अकादमिक रिकॉर्ड के आधार पर वहां की सबसे प्रतिष्ठित फेलोशिप में से एक चांसलर फेलोशिप उन्हे दी है।
सरिता 2014 में जेएनयू हिंदी साहित्य में मास्टर्स करने यहां आई थीं। जेएनयू को लेकर सरिता का कहना है कि यहां के शानदार अकादमिक जगत, शिक्षकों और प्रगतिशील छात्र राजनीति ने मुझे इस देश को सही अर्थो में समझने और मेरे अपने समाज को देखने की नई दृष्टि दी।
उन्होंने कहा कि जेएनयू ने मुझे सबसे पहले इंसान बनाया। यहां की प्रगतिशील छात्र राजनीति जो न केवल किसान-मजदूर, पिछडो, दलितों, आदिवासियों, गरीबों, महिलाओं, अल्पसंख्यकों के हक के लिए आवाज उठाती है बल्कि इसके साथ-साथ उनके लिए अहिंसक प्रतिरोध करना का साहस भी देती है। जेएनयू ने मुझे वह इंसान बनाया, जो समाज में व्याप्त हर तरह के शोषण के खिलाफ बोल सके। मैं बेहद उत्साहित हूं कि जेएनयू ने अब तक जो कुछ सिखाया उसे आगे अपने शोध के माध्यम से पूरे विश्व को देने का एक मौका मुझे मिला है।
2014 में 20 साल की उम्र में वह जेएनयू से मास्टर्स करने आई यहीं से एमए, एमफिल की डिग्री लेकर इस वर्ष पीएचडी जमा करने के बाद उन्हे अमेरिका में दोबारा पीएचडी करने और वहां पढ़ाने का मौका मिला है। उनका कहना है कि पढ़ाई को लेकर हमेशा मेरे भीतर एक जूनून रहा है। 22 साल की उम्र में मैंने शोध की दुनिया में कदम रखा था। खुश हूं कि यह सफर आगे 7 वर्षो के लिए अनवरत जारी रहेगा।
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