पूर्वोत्तर का शीर्ष छात्र निकाय 10वीं तक हिंदी को अनिवार्य विषय बनाने के विरोध में

छात्र संगठनों ने जताई ऐतराज पूर्वोत्तर का शीर्ष छात्र निकाय 10वीं तक हिंदी को अनिवार्य विषय बनाने के विरोध में

Bhaskar Hindi
Update: 2022-04-18 13:00 GMT
पूर्वोत्तर का शीर्ष छात्र निकाय 10वीं तक हिंदी को अनिवार्य विषय बनाने के विरोध में

डिजिटल डेस्क, शिलांग। पूर्वोत्तर के आठ महत्वपूर्ण छात्र संगठनों के शीर्ष निकाय नॉर्थ ईस्ट स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइजेशन (एनईएसओ) ने गृह मंत्री अमित शाह से आग्रह किया है कि वह 10वीं कक्षा तक सभी पूर्वोत्तर राज्यों में हिंदी को अनिवार्य विषय बनाने के फैसले को रद्द कर दें। एनईएसओ ने गृह मंत्री से कहा है कि पूर्वोत्तर क्षेत्र में हिंदी को अनिवार्य विषय के रूप में लागू करना न केवल स्वदेशी भाषाओं के प्रचार-प्रसार के लिये बाधक साबित होगा, बल्कि इससे छात्रों को भी मुश्किल होगी क्योंकि उन्हें अब एक और विषय अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ना पड़ेगा।

एनईएसओ के अध्यक्ष सैमुअल बी. जिरवा और महासचिव सिनम प्रकाश सिंह ने अमित शाह को लिखे अपने पत्र में कहा है कि इस क्षेत्र में प्रत्येक राज्य की अपनी अनूठी और विविध भाषायें हैं, जो इंडो-आर्यन , तिब्बती-बर्मन से लेकर ऑस्ट्रो-एशियाई परिवारों तक विभिन्न जाती समूहों द्वारा बोली जाती हैं। उन्होंने कहा है, इस क्षेत्र में, एक मूल या स्वदेशी भाषा या मातृभाषा खास समुदायों की पहचान का महत्वपूर्ण माध्यम है। साहित्य, शिक्षा और कला जैसे सभी पहलुओं के संदर्भ में मूल या स्वदेशी भाषाओं को और समृद्ध किया जा रहा है।

एनईएसओ ने गृह मंत्री से आग्रह किया है कि वह इस प्रतिकूल नीति को वापस लें और इस पर ध्यान केंद्रित करें कि आठवीं अनुसूची में शामिल करके क्षेत्र की स्वदेशी भाषाओं को कैसे आगे बढ़ाया जाये। एनईएसओ ने कहा, इस तरह का कदम एकता नहीं बढ़ायेगा बल्कि यह आशंकाओं और असामंजस्य को बढ़ावा देगा। एनईएसओ का कहना है कि देश के करीब 40 से 43 प्रतिशत लोग हिंदी भाषा बोलते हैं। हालांकि, यह ध्यान देने योग्य है कि भारत में कई अन्य मूल भाषायें हैं, जो अपने ²ष्टिकोण में समृद्ध, संपन्न और जीवंत हैं और भारत को एक विविध तथा बहुभाषी राष्ट्र की छवि देती हैं।

एनईएसओ ने सुझाव दिया है कि मूल भाषाओं को उन राज्यों में 10वीं कक्षा तक अनिवार्य किया जाना चाहिये, जहां वे बोली जाती हैं जबकि हिंदी को वैकल्पिक या ऐच्छिक विषय के रूप में रहना चाहिये। गत 10 अप्रैल को संसदीय राजभाषा समिति की 37वीं बैठक की अध्यक्षता करते हुये केंद्रीय मंत्री शाह ने कहा था कि हिंदी को अंग्रेजी की वैकल्पिक भाषा के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिये न कि स्थानीय भाषाओं के विकल्प के रूप में।

रिपोर्ट के मुताबिक अमित शाह ने कहा था, पूर्वोत्तर के नौ आदिवासी समुदायों ने अपनी बोलियों की लिपियों को देवनागरी में बदल दिया है, जबकि पूर्वोत्तर के सभी आठ राज्यों ने 10वीं कक्षा तक हिंदी को अनिवार्य करने पर सहमति व्यक्त की है। छात्रों को 9वीं कक्षा तक हिंदी का प्रारंभिक ज्ञान देने की आवश्यकता है और हिंदी शिक्षण परीक्षाओं पर अधिक ध्यान देना जरूरी है।

पूर्वोत्तर क्षेत्र में राजनीतिक दल हिंदी के मुद्दे को लेकर जुदा-जुदा राय रखते हैं लेकिन भाषा विशेषज्ञों और राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक अंग्रेजी और हिंदी में पढ़ाते समय, स्थानीय भाषाओं को उनके प्रचार और व्यावहारिक उपयोग में समान महत्व दिया जाना चाहिये। असम के शीर्ष साहित्यिक निकाय असम साहित्य सभा (एएसएस) ने पूर्वोत्तर राज्यों में दसवीं कक्षा तक हिंदी को अनिवार्य विषय बनाने के कदम का विरोध किया है। एएसएस महासचिव जादव चंद्र शर्मा ने कहा कि हिंदी को अनिवार्य भाषा बनाने से स्वदेशी भाषाओं को खतरा होगा।

(आईएएनएस)

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