एक बेटी को शिक्षित करना एक पीढ़ी को शिक्षित करने का कदम है 

बेटी बचाओ, बेटी पढाओ एक बेटी को शिक्षित करना एक पीढ़ी को शिक्षित करने का कदम है 

Bhaskar Hindi
Update: 2022-07-13 09:30 GMT
एक बेटी को शिक्षित करना एक पीढ़ी को शिक्षित करने का कदम है 

डिजिटल डेस्क, जयपुर। हमारे देश के सबसे अधिक आबादी वाले राज्यों में से एक राजस्थान की बेटियां, प्रधानमंत्री  द्वारा भारत में "बेटी बचाओ, बेटी पढाओ" अभियान प्रारंभ करने तक कितने ही वर्षों से शिक्षा के लिए संघर्ष कर रही थीं. कम उम्र में शादी हो जाने से अथवा रोज़मर्रा के घरेलू कामों के बोझ तले दब जाने के कारण, शाही रियासतों वाले इस राज्य  के परिवारों में शिक्षा के स्तर पर  बालिकाओं की केवल उपेक्षा ही हो रही थी. 

श्रीमती केतकी चटर्जी जो की एक शिक्षाविद्, सामाजिक कार्यकर्ता और  चिल्ड्रन गार्डन प्ले स्कूल व चिल्ड्रन गार्डन सेकेंडरी स्कूल, जयपुर की प्रिंसिपल है, उनका लालन-पालन  इलाहाबाद में हुआ और शादी के बाद वे जयपुर आ गई. लड़कियों के प्रति, समाज द्वारा शिक्षा-सम्बन्धी भेदभाव ने उन्हें मानसिक तौर झकझोर कर रख दिया. इसे बदलने के लिए आज से लगभग तीन दशक पहले गुलाबी शहर जयपुर में लड़कियों और लड़कों के लिए समान शिक्षा एवं  समान अवसरों को प्रोत्साहित करने हेतु उन्होंने अपने स्कूल की नींव रखी.   

केतकी जी  याद करती है “मेरे पिता रसायन-विज्ञान के प्रोफेसर थे. बचपन की बात करूँ तो हमारे घर का गलियारा मुझे याद आता है जहाँ हमारे परिवार के दसों सदस्य मच्छरदानी लगाकर सोया करते थे. अपनी पढ़ाई हम आंगन में लैंप लगाकर किया करते. मैं बास्केटबॉल खेलती थी और मेरा नाम उन गिने चुने खिलाड़ियों में था जिन्हें ज़िला स्तर की टीम में  खेलने का मौका मिला. वे याद करती है “मैं एक ऐसे पारिवारिक पृष्ठभूमि से आती हूँ जहाँ शिक्षा सर्वथा महत्वपूर्ण थी और मेरे माता-पिता ने हमें पढ़ने के लिए सदा ही प्रोत्साहित किया. मेरी शुरुवाती पढ़ाई के दौरान मैंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में एम.ए की पढ़ाई की. आगे जाकर, अपने इस स्कूल के सफर के दौरान मैंने राजस्थान विश्वविद्यालय से एम.एड. की पढ़ाई भी पूरी की. हमारे समय में बैंक और सिविल सेवा की नौकरियों को ही केवल  प्रतिष्ठित  नौकरी माना जाता था. वह एक ऐसा दौर था जब नौकरी पा कर उसके माध्यम से अपनी रोज़ी रोटी का बंदोबस्त कर लेना बेहद महत्वपूर्ण माना जाता था. अगर कोशिश करती तो नौकरी सम्बन्धी उस दिशा में भी क़ामयाबी की अच्छी संभावनाएं थी परन्तु मैंने शिक्षा को अपने करियर के रूप में चुना  और अपने इस निर्णय पर मुझे गर्व है." 

केतकी जी ने उस रास्ते को चुना जो लीक से हटकर था. आगे चलकर भी केतकी जी ने इस सफर में अपने आपको एक साधारण अध्यापिका के रूप में  स्थापित  किया ना कि एक उद्यमी के रूप में. या "चिल्ड्रन गार्डन प्ले स्कूल" की प्रधानाचार्य के रूप में. वह हमें बताती हैं, "शिक्षण के माध्यम से हम 3 वर्ष से 13 वर्ष तक की आयु के विद्यार्थियों के साथ होते हैं और यह हमें काफ़ी कुछ सीखने का अवसर प्रदान करता है. चिल्ड्रन गार्डन प्ले स्कूल शत-प्रतिशत महिलाओं की ऊर्जस्वी टीम द्वारा चलाया जाता है. यह एक ऐसी जगह है जहां बच्चे अपनी पढ़ाई पूरी करते हैं और जीवन में आगे बढ़ जाते हैं. कई बार, कई सालों बाद इनमें से कई लोग अपने बच्चों के साथ यहां लौटते हैं. सी.जी.पी.एस इस अटूट विश्वास की परंपरा का प्रतीक है." 

 वे मुस्कुराते हुए आगे कहती हैं, ""कड़ी मेहनत और दृढ निश्चय अंततः  आपको सफलता की ओर ले ही जाता है. जीवन में आने वाली हर मुश्किल को पार किया जा सकता है. हर उद्योग के अपने उतार-चढ़ाव होते हैं. मुझे अच्छा भरोसेमंद व सहयोगी स्टाफ मिला है जो स्कूल के सुचारू कामकाज में मदद करता है. यह मेरे लिए एक मज़बूत सहायता प्रणाली के रूप में काम करती है".  

"कोर्ट केस, मुकदमों व् कोविड के बावजूद, सी.जी.पी.एस एक ऐसा स्कूल है जिसने कभी भी शैक्षिक अनुशासन और नियमित रूप से इसके पालन में कभी कोताही नहीं होने दी. माता-पिता अपने बच्चों को इस विश्वास के साथ स्कूल भेजते हैं कि यहां बच्चे जरुर कुछ अच्छा सीखेंगे. ऐसा समय भी आया जब कई बच्चों के माता-पिता ने हमसे कहा कि वे  फीस नहीं दे सकते क्योंकि कोविड के दौरान उन्होंने अपनी नौकरी खो दी है. ऐसे समय में, हमारे स्कूल ने ऐसे अभिभावकों को उनकी वित्तीय स्थिरता दोबारा से हासिल कर लेने तक पूरा सहयोग किया. केतकी जी मानती है, महामारी रूपी विपत्ति से बच्चों की शिक्षा का नुकसान नहीं होना चाहिए. 

 यह पूछने पर कि,  बेटियों को स्कूल नहीं भेजने के लिए जाने वाले राज्य राजस्थान में केतकी जी के लिए इस स्कूल को चलाना कितना मुश्किल रहा ? 
केतकी जी कहती हैं  "यह मुश्किल जरूर है क्योंकि यह एक ऐसी संस्था है जहाँ सौ प्रतिशत महिलाओं की टीम हैं और महिलाओं को काम के समय स्कूल और बाद में घर भी संभालना होता है. अपने पेशे के साथ न्याय करना और परिवार की देखभाल करना बड़ा ही चनौतीपूर्ण काम है. मैंने इस स्कूल को 40 साल पहले शुरू किया था और तब से मैंने हमेशा यह सुनिश्चित किया की यह स्कूल को सौ प्रतिशत महिला टीम ही संभाले. 

डॉ. एपीजे कलाम की शख़्सियत ने केतकी को ख़ासा प्रभावित किया. उनका जीवन और उनके द्वारा बताए गए मार्ग केतकी जी के लिए प्रेरणास्रोत  है. केतकी जी अपने परिवार को अपना सबसे बड़ा सपोर्ट सिस्टम मानती है. यह इसलिए भी, क्योंकि केतकी जी के हर फैसले के समय उनका परिवार बड़ी ही मज़बूती से डटकर उनके साथ खड़ा रहा. वे कहती है  “ छोटा परिवार के होने  के कारण मेरी ज़रूरतें सीमित रही और एक शिक्षक रूपी पेशे में रहकर पारिवारिक जिम्मेदारियों को व अपने पेशे को कुशलता से संभाल सकी. चूँकि मैं  काफ़ी हद तक बहिर्मुखी नहीं हूं इसलिए स्कूल के बाद के समय में, मैं अक्सर  घर पर ही रहती जिससे काम के साथ परिवार के प्रति जिम्मेदारियों का संतुलन बनाए  रखने में अच्छी मदद मिली." 

यहाँ से हर साल, छात्र जब अपनी पढ़ाई पूरी कर के जिंदगी के अगले पायदान पर आगे बढ़ जाते है और भविष्य में जब कभी वे अपने स्कूल में मिलने के लिए आते हैं तब केतकी जी बड़े ही संतोष का अबुभव करती है. भविष्य के बारे में पूछे जाने पर वे कहती है , "ईश्वर बस इतनी कृपा करें कि स्वास्थ्य अच्छा बना रहे और अपने अंत समय तक हम ऐसे ही काम करते रहें, चलते- फिरते रहें "
 

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