डूंगरपुर छात्रों को बोलने का कौशल सिखाने में अग्रणी
राजस्थान डूंगरपुर छात्रों को बोलने का कौशल सिखाने में अग्रणी
डिजिटल डेस्क, जयपुर। राजस्थान के एक छोटे से आदिवासी शहर डूंगरपुर ने एक नई परियोजना- पढ़ेगा डूंगरपुर, बोलेगा डूंगरपुर शुरू करके छात्रों के बोलने के कौशल को बढ़ावा देने का बीड़ा उठाया है, जिसके तहत जिले के 10 प्रखंडों के 381 स्कूलों में कक्षा 6 से 8 तक के लगभग 57,617 छात्र लाभान्वित होंगे। जिला कलेक्टर शुभम चौधरी ने हाल ही में परियोजना का उद्घाटन करते हुए कहा कि यह परियोजना आत्मविश्वास को बढ़ावा देगी और सार्वजनिक बोलने में संकोच करने वाले ग्रामीण छात्रों में बोलने का कौशल बढ़ाएगी।
इस महत्वाकांक्षी अभियान को शुरू करने का विचार तब आया, जब उन्होंने विभिन्न स्कूलों का दौरा किया और उनकी कक्षाओं में छात्रों के साथ बातचीत की। उन्होंने देखा कि छात्र बात करने में झिझक रहे थे और इसलिए जिले में इस अभियान को शुरू करने का विचार आया। चौधरी ने पहल का उद्घाटन करते हुए कहा, आमतौर पर हम देखते हैं कि बच्चे पढ़ते और समझते हैं, लेकिन जब बोलने का मौका आता है तो घबराहट के कारण वे बोल नहीं पाते हैं, इसलिए बच्चों में अभिव्यक्ति कौशल को बढ़ाना आवश्यक है।
जिला कलेक्टर ने कहा, वर्तमान युग में किसी भी करियर में हर जगह इंटरव्यू का सामना करना पड़ता है। ऐसे में अभिव्यक्ति कौशल का होना बहुत जरूरी है और इसके लिए डूंगरपुर जिले में चरणबद्ध तरीके से अभियान शुरू किया जा रहा है। हालांकि जिले में बच्चों में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है, लेकिन वे अक्सर जवाब देने से हिचकिचाते हैं। इसलिए पढ़ेगा डूंगरपुर, बोलेगा डूंगरपुर परियोजना आई है।
उन्होंने कहा कि इस अभियान का उद्देश्य पढ़ने और अभिव्यक्ति कौशल विकसित करके बच्चों के आत्मविश्वास को विकसित करना है, ताकि उन्हें अपने भविष्य के करियर के दौरान पूरा समर्थन मिल सके। डूंगरपुर की सूचना एवं जनसंपर्क सहायक निदेशक छाया चौबीसा ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, अभियान से जिले के 10 ब्लॉकों के 381 स्कूलों में पढ़ने वाले कक्षा 6 से 8 तक के 57,617 छात्रों को लाभ होगा। अभियान के तहत, प्रत्येक छात्र को किसी भी विषय पर बोलने के लिए तीन मिनट का समय दिया जाएगा, जिससे प्रतिदिन कुल 842 छात्र लाभान्वित होंगे।
इस अभियान के तहत छात्रों को उनकी पसंद की किताबें भी मुहैया कराई जाएंगी। यह भी जांच करेगा कि प्रत्येक छात्र कौन सी किताबें पढ़ता है, बोलने वाले छात्रों की संख्या और जिन्हें बोलने का मौका नहीं मिला या जिन्होंने बोलना पसंद नहीं किया। कुल मिलाकर, विचार यह पता लगाना है कि छात्रों को खुद को व्यक्त करने में मदद करने के लिए कितने प्रयास की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि इस अभियान के परिणामों के मूल्यांकन के लिए गहन निगरानी की जानी चाहिए।
(आईएएनएस)