राज्य स्तरीय कार्यशाला: बच्चों को दंड नही दुलार दे: बाल अधिकारों के विशेषज्ञ विभांशु जोशी
- बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम - 2005
- निःशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009
- किशोर न्याय अधिनियम-2012 एवं पॉक्सो अधिनियम-2015
डिजिटल डेस्क, भोपाल। किसी भी विद्यार्थी को शारीरिक दंड नहीं दिया जाएगा और उनका मानसिक उत्पीडन नहीं किया जाएगा। बच्चों को दंड देकर नही, प्यार-दुलार से पठन पाठन किया जाना चाहिए। यह बात राज्य स्तरीय कार्यशाला में बाल अधिकारों के विशेषज्ञ विभांशु जोशी ने कही।
इस कार्यशाला में लोक शिक्षण संचालनालय, मध्यप्रदेश के सभी ज़िलों के जिला शिक्षा अधिकारी, उनके प्रतिनिधि, जिला स्तर पर कार्यरत प्रशासनिक, शिक्षक, सामाजिक एवं न्यायिक संस्थाओं के प्रतिनिधियों और कार्यकर्ताओं ने अपनी सहभागिता की।
यह कार्यशाला बाल अधिकारों और उनके संरक्षण पर केंद्रित रही। इस राज्य स्तरीय कार्यशाला में बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम - 2005, निःशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009, किशोर न्याय अधिनियम-2012 एवं पॉक्सो अधिनियम-2015 आदि के बारे में जन जागरूकता लाने के लिये आयोजित की गई। इस कार्यशाला में प्रदेश के स्कूल शिक्षा विभाग, महिला एवं बाल विकास विभाग और मध्यप्रदेश राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के प्रतिनिधि और कार्यकर्ता उपस्थित रहे।
इस कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य जिला स्तर पर कार्यरत प्रशासनिक अधिकारी, शिक्षक, सामाजिक एवं न्यायिक संस्थाओं के प्रतिनिधियों को इन अधिनियमों के विषय में जागरूक कर उनके मध्य आपसी समन्वय स्थापित करना है। कार्यशाला में विशेषज्ञों द्वारा बाल शिक्षा का अधिकार, किशोर न्याय एवं पाक्सो अधिनियम की जागरूकता के लिये प्रशिक्षण दिया गया। इसमें प्रदेश के सभी जिलों से जिला कार्यक्रम अधिकारी महिला-बाल विकास, जिला शिक्षा अधिकारी एवं जिला परियोजना समन्वयक, बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष एवं सदस्य, किशोर न्याय बोर्ड के सदस्य तथा सामाजिक कार्य क्षेत्र से संगठन और रेडक्रास सोसायटी के प्रतिनिधि शामिल हुए।
इस कार्यशाला में छिंदवाड़ा जिलें के प्रतिनिधि कमलेश चौरासे ने बताया कि बच्चों के संरक्षण और विकास के लिए आज विभिन्न प्रकार के कानून और नीतियां है, जिनकी जानकारी सभी को होना आवश्यक है। एक शिक्षक ही एक अच्छे विद्यार्थी का निर्माण करता है। जो कल देश का नागरिक बनेगा। ऐसे में एक शिक्षक की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण हो जाती है। एक शिक्षक अपने विद्यार्थियों में इन अधिकारों को आसान भाषा से संचार करने हेतु सुलभ होता हैं। वह बाल अधिकारों और कानून को आम जनों तक पहुचाने का एक माध्यम भी है।