चर्चाओं में टीना डाबी: पाकिस्तान से आए दसवीं पास आदिवासी लेखक ने 2015 की यूपीएससी टॉपर पर लिखी किताब, कवर पर लगा फोटो
- पाकिस्तान में भील किशनराज करता था पत्थर का काम
- भारत में लिख डाली पुस्तक
- पाकिस्तानी विस्थापितों को मिला सरकारी सहयोग
डिजिटल डेस्क, जैसलमेर। 2015 के बाद एक बार फिर आईएएस टॉपर टीना डाबी चर्चाओं में है। जिसका कारण एक युवा लेखक है जिसने अपनी लिखी किताब में जैसलमेर की डीएम की फोटो कवर पर लगवाई है। हाईस्कूल तक पढ़े हुए पाकिस्तानी हिंदू विस्थापित किशनराज भील जैसलमेर की पूर्व कलेक्टर टीना डाबी के कार्यों और उनकी वर्किंग स्टाइल से काफी प्रभावित हुए थे। उन्होंने पाकिस्तानी आदिवासीविस्थापितों की समस्या और मर्म को लेकर एक किताब लिखी है। जिस किताब का नाम उन्होने 'पुनर्वासी भील' दिया है जिसकी कवर फोटो में टीना डाबी के चेहरे को रखा है।
पाकिस्तान में हो रहे बर्ताव से परेशान होकर भारत आए
आपको बता दें दो दशक पहले पाकिस्तान में हो रहे बर्ताव से परेशान होकर पाकिस्तानी आदिवासी युवा अपने पीड़ित परिवार के साथ पाकिस्तान छोड़कर भारत में राजस्थान के जैसलमेर आए थे। पाकिस्तान छोड़कर अपने परिवार के साथ भारत में आए परिवारों ने जैसलमेर में रहकर नागरिकता प्राप्त की। जब डाबी जैसलमेर की कलेक्टर थी। उस समय पाकिस्तान से आए विस्थापितों के पुनर्वास के लिए कड़ी मेहनत की। डाबी के प्रति पाकिस्तानी विस्थापितों के मन में आज भी उतनी ही श्रद्धा, स्नेह और सम्मान है। उनके मन में इतना स्नेह है कि आज भी वह कलेक्टर डाबी को दुआएं और शुभकामनाएं देते थकते नहीं हैं।
विस्थापितों के मन में डाबी के द्वारा किए गए पुनर्वास का काम आज भी जीवित
सभी पाकिस्तानी विस्थापितों के मन में डाबी के द्वारा किए गए पुनर्वास का काम आज भी जीवित है। इनमें से ही एक पाकिस्तानी विस्थापित परिवार है जो 20 साल पहले पाकिस्तान के अत्याचार और आतंक से तंग आकर भारत आया था। आज भी वह इन विस्थापितों के हक के लिए लड़ाई लड़ रहा है। पाकिस्तानी विस्थापित किशनराज भील जो सिर्फ 10वीं तक पढ़े हैं। वह जैसलमेर की कलेक्टर डाबी के कार्यों और कार्य करने के तरीके से इतने प्रेरित हो गए थे कि उन्होंने उनके कार्य विस्थापितों की समस्या और उसके मर्म के बारे में किताब लिख डाली। उस किताब का नाम 'पुनर्वासी भील' रखा है जिसकी कवर फोटो पर कलेक्टर डाबी की फोटो लगी है। यह किताब 82 पन्नों की है जिसकी कीमत 199 रुपये है।
किताब पर आईएएस टॉपर डाबी का फोटो होना चर्चा का विषय
किताब की कीमत चाहें जो हो लेकिन किताब पर आईएएस टॉपर डाबी का फोटो होना चर्चा का विषय बन गया है। किताब की हर जगह चर्चा और तारीफ हो रही है। हालांकि, किताब पर अपने फोटो को लेकर कलेक्टर डाबी का कहना है कि किताब के कवर पर उनकी फोटो लगाने की अनुमति नहीं ली थी। जिसपे किशनराज भील का कहना है कि उन्होने कवर पर फोटो लगाने के लिए उनसे पूछने की बहुत कोशिश की थी लेकिन वह असमर्थ रहे। इस कारण उन्होंने उनसे अनुमति लिए बिना ही कवर फोटो लगा दी। भील का ये भी कहना है कि हमारे मन में उनके लिए श्रद्धा और आस्था है। इसलिए हमने ये फोटो कवर पर लगा दिया। अब डाबी जी को उनके खिलाफ कोई कार्रवाई करनी हो तो उन्हें मंजूर है। आपको बता दें किताब अमेजन, फ्लिपकार्ट आदि पर आराम से मिल जाएगी जिसको खरीद कर आप आराम से पढ़ सकते हैं।
कलेक्टर डाबी ने अतिक्रमण मानकर हटाया फिर किया बेहतर पुर्नवास
यह विचार करने योग्य है कि मई 2023 में जैसलमेर से कुछ किलोमीटर दूर अमरसागर तालाब के कैचमेन्ट एरिया में गैरकानूनी तरीके से रह रहे करीबन 50 से ज्यादा पाकिस्तानी विस्थापितों को उस समय की कलेक्टर डाबी ने अतिक्रमण मानते हुए निकलवाया था। इस मामले में डाबी काफी लोगों को पसंद नहीं आती थी। लेकिन टीना ने उसके बाद विस्थापितों को कम से कम 7 किलोमीटर दूर मूलसागर में 40 बीघा जमीन अलॉट करवाई। इसके बाद ना केवल उन्होंने उनके रहने का इंतजाम करवाया बल्कि उनके खाने पीने का भी ध्यान रखा था।
पाकिस्तानी विस्थापितों को सरकार और प्रशासन का सहयोग
यह पहला मामला था जिसमें पाकिस्तानी विस्थापितों को राज्य सरकार द्वारा सहयोग से जिला प्रशासन के तरफ से पुनर्वास किया गया था। टीना डाबी ने पाकिस्तानी हिंदुओं का खूब सहयोग किया था। और उनके इसी काम करने के तरीके से पाकिस्तानी से पलायन होकर आए परिवार प्रभावित हुए थे और डाबी को बहुत सी दुआएं दीं। जिस समय पाकिस्तानी विस्थापतियों को पुनर्वास करवाया जा रहा था उस समय कलेक्टर टीना डाबी गर्भवती भी थीं, तो कई बुजुर्गों ने उन्हें खूब आशीर्वाद भी दिया।
पाकिस्तान में भील किशनराज करता था पत्थर का काम, भारत में लिख डाली पुस्तक
अब बात करें किताब कि तो उसमें लेखक किशनराज भील ने अपने बारे में भी बताया है कि कैसे वह पत्थर का काम करते थे। पाकिस्तान में होने वाले अत्याचारों के अलावा उनको भारत में क्या सुविधाएं मिलीं और किन कठिनाइओं का सामना करना पड़ा उसका भी वर्णन किया है। यह किताब 82 पन्ने और 6 अध्याय की है। किताब में 2023 को जिला प्रशासन द्वारा बुल़्डोजर चलाया गया था पाकिस्तानी विस्थापितों की बस्ती पर और पुनर्वास के बारे में भी बताया है। इस किताब में यहां आकर जो भी कठिनाइयां उनको सहनी पड़ी और जो सुविधाएं मिलीं सबके बारे में बताया गया है। पाकिस्तान में उन पर जो जुल्म हुए थे उसका भी वर्णन हुआ है। किशनराज भील ने बताया है कि हमारे कुछ पूर्वज उस समय के कारणों के चलते पाकिस्तान लौट गए थे, लेकिन हमारा असली जन्म स्थान तो जैसलमेर ही रहेगा और हमारा दिल आज भी सिर्फ हिन्दुस्तान के लिए ही धड़कता है।