Shahdol News: देवी अहिल्या बाई होलकर के पदचिन्हों पर आरएसएस का पंच परिवर्तन व्याख्यान मुख्य वक्ता बोले- आरएसएस गठन के बाद से समाज को एकजुट करने का काम कर रहा

  • देवी अहिल्या बाई होलकर के पदचिन्हों पर आरएसएस का पंच परिवर्तन व्याख्यान
  • पुण्यश्लोक देवी अहिल्याबाई होलकर का सामाजिक योगदान एवं पंच परिवर्तन व्याख्यान का आयोजन
  • मुख्य वक्ता बोले- आरएसएस गठन के बाद से समाज को एकजुट करने का काम कर रहा

Bhaskar Hindi
Update: 2024-09-30 11:48 GMT

Shahdol News: राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) जब से बना है, तब से समाज को एकजुट करने का काम किया है। वर्तमान में भी सेवा के काम सहित कई क्षेत्रों में काम करने वाले 35 ऐसे संगठन हैं जो लगातार सेवा, शिक्षा और जनचेतना के काम में लगे हैं। ऐसे देशभर में 65-70 हजार प्रकल्प चल रहे हैं। यह अलग बात है कि संघ यह पक्ष ज्यादा सामने नहीं आता। बल्कि दूसरा ही पक्ष सामने आता है कि संघ-बीजेपी, संघ-मोदी-बीजेपी। यह बात आरएसएस शहडोल द्वारा शनिवार को आयोजित पुण्यश्लोक देवी अहिल्याबाई होलकर का सामाजिक योगदान एवं पंच परिवर्तन व्याख्यान में सह प्रांत संपर्क प्रमुख महाकौशल उदय परांजपे ने कही। उन्होंने कहा कि भारत को परम वैभव पर ले जाने के लिए संघ पंच परिवर्तन पर काम कर रहा है। इसमें पहला है स्व का भाव। संघ के स्वयं सेवक इस प्रकार से समाज को तैयार करें कि हमारा देश परम वैभव को प्राप्त कर सके। हमें गुरूकुल शिक्षा तंत्र को फिर से विकसित करना होगा। स्व शिक्षा, स्वदेश पंच परिवर्तन का पहला विषय है।

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दूसरा है नागरिक अनुशासन। तीसरा समरसता। यानी सब के सब एक। संघ तो इस पर 1925 से काम कर रहा है। वर्धा में कैंप में गांधी जी आए और खाना खाने बैठे तो उन्होंने एक पंगत पर सबको बैठे देखा। जाति के सवाल पर डॉ. हेडगेवार ने कहा हमारे यहां जाति नहीं चलती। जिसकी गांधी जी ने भी सराहना की। चौथा विषय है कुटंब प्रबोधन। हमारा संयुक्त परिवार टूटता जा रहा है। जो भारत की रीढ़ है। अब तो पति-पत्नी ही एक इकाई बनकर जीवन जीना पसंद करते हैं। जबकि पहले चाचा-चाची, दादा-दादी, मामा-मामी। बच्चे छुट्टियों में मामा के घर जाएं तो अलग ही उत्साह होता था। पांचवा विषय है पर्यावरण। इस पर तो काम हो रहा है। व्याख्यान में देवी अहिल्याबाई होलकर का सामाजिक योगदान विषय पर कहा कि उनके ससुर से उन्हे जो समाज सुधारक की शिक्षा मिली थी उससे उन्होंने समाज का उत्थान किया। आज भी अहिल्याबाई उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी दो सौ वर्ष पहले थीं। इस अवसर पर मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. जीबी रामटेके सहित बड़ी संख्या में शहर के सभ्रांत नागरिक मौजूद रहे।

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