शहडोल: रखरखाव के अभाव में शहर के प्रमुख मोहनराम तालाब का अस्तित्व खतरे में

  • टूट रही टाइल्स, सौंदर्यीकरण हो रहा गायब
  • लोगों ने अतिक्रमण और भवन निर्माण कर इन्हें जमीन के अंदर दफन कर दिया।
  • ऐतिहासिक प्राचीन मोहनराम तालाब शहडोल की जीवन नियंत्रण रेखा है।

Bhaskar Hindi
Update: 2024-09-14 08:36 GMT

डिजिटल डेस्क,शहडोल। लोगों की आस्था का केंद्र शहर का मुख्य जलाशय मोहनराम तालाब के अस्तित्व पर संकट खड़ा हो गया है। कुछ साल पहले यहां के सौंदर्यीकरण को लेकर प्रशासन द्वारा लगभग दो करोड़ रुपए से अधिक खर्च किया गया था।

जिसके तहत चोरों ओर टाइल्स लगाकर सुंदरता के लिए अनेक कार्य कराए गए थे। वर्तमान में तालाब का सौंदर्य गायब हो चला है और घाटों पर लगी टाइल्स टूटने लगी हैं। फव्वारा आदि पूर्व से बंद पड़े हैं। गौरतलब है कि 300 से ज्यादा तालाब वाले शहर में अब गिनती के तालाब बचे हैं, जो बढ़ते प्रदूषण से अपने अस्तित्व को बचाने की गुहार लगा रहे हैं। जागरूकता के अभाव में बहुत से तालाबों ने दम तोड़ दिया।

लोगों ने अतिक्रमण और भवन निर्माण कर इन्हें जमीन के अंदर दफन कर दिया। वहीं मुख्य मोहनराम तालाब बढ़ते प्रदूषण के कारण अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है। अज्ञानता और जागरूकता के अभाव में इसे कचरे से भरा जा रहा है।

कभी कभार ही होती है सफाई

त्यौहार के समय ही नगर पालिका प्रशासन इसकी सफाई पर ध्यान देता है। कचरा देखकर लोग और कचरा डालने पर जागृत हो जाते हैं। रेलिंग भी गायब हो गई है। जिसके कारण कुंड में डाले जाने वाला पूजन-हवन की सामग्री तालाब में समा रही है।

चूंकि तालाब ट्रस्ट के अधीन आता है इसलिए ज्यादा काम तो नहीं हो सकता, लेकिन साफ-सफाई और मरम्मत कराई जाएगी।

अक्षत बुंंदेला सीएमओ नपा

तालाब का रखरखाव बेहद जरुरी

पूजन, विसर्जन सामग्री और भगवान की मूर्ति वगैरह को हमेशा बहते पानी में ही विसर्जित किया जाना चाहिए। तालाबों में जल अर्पित करना ही उचित होता है।

-नीलेंद्र तिवारी, पुजारी घरौलानाथ मंदिर

ऐतिहासिक प्राचीन मोहनराम तालाब शहडोल की जीवन नियंत्रण रेखा है। प्रशासन और समाज दोनों को मिलकर इसके और बचे हुए तालाबों के अस्तित्व की रक्षा के लिए आगे आना होगा।

-नरेंद्र दुबे, अध्यक्ष ब्राह्मण समाज

पूर्व में नगर पालिका प्रशासन ने तालाब के अस्तित्व और सुंदरता के लिए काफी सार्थक प्रयास किए हैं। इसमें विसर्जन सामग्री और कचरा डालना पूर्णता प्रतिबंधित कर देना चाहिए जो कि पर्यावरण की दृष्टि से अत्यंत आवश्यक है।

-अनुशील सिंन्हा, समाजसेवी

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