राम जन्मभूमि मंदिर की मूर्ति के लिए बुने जाएंगे लाखों पुणेकरों के हाथों से वस्त्र

  • राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र
  • अयोध्या और पुणे हेरीटेज हैंड विविंग रिवायवल चैरिटेबल ट्रस्ट का संयुक्त उपक्रम

Bhaskar Hindi
Update: 2023-08-08 15:49 GMT

डिजिटल डेस्क, पुणे। इस बात को ध्यान में रखते हुए कि कई नागरिक अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर से संबंधित कार्य में योगदान देना चाहते हैं, श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र - अयोध्या और हेरिटेज हैंडवीविंग रिवाइवल चैरिटेबल ट्रस्ट - पुणे के सहयोग से 'दो धागे श्रीराम के लिए' नामक पहल शुरू की जा रही है। इसके तहत 10 से 22 दिसंबर तक पुणे में लाखों नागरिक अयोध्या के श्री राम जन्मभूमि मंदिर में श्री राम की मूर्ति के लिए कपड़े की बुनाई में सीधे भाग ले सकेंगे। श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के कोषाध्यक्ष स्वामी गोविंद देव गिरि और हेरिटेज हैंडविविंग रिवाइवल चैरिटेबल ट्रस्ट के निदेशक अंग घैसास और अध्यक्ष विनय पत्रले ने पुणे में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि इस उपलक्ष्य में पूरे 13 दिन विभिन्न भव्य कार्यक्रम भी आयोजित किए जाएंगे। अनघा घैसास ने पूरे कार्यक्रम की अवधारणा को समझाया। पिछले दो वर्षों के उनके अथक प्रयासों और पूज्य स्वामी गोबिंद देव गिरि के आशीर्वाद और पूर्ण सहयोग से यह कार्यक्रम पुणे में साकार हो रहा है।

1985 के बाद नागरिकों ने अनेक प्रकार से स्वतःस्फूर्त होकर श्री राम जन्मभूमि के कार्य में भाग लिया है। इसी श्रृंखला में एक नए अध्याय के रूप में, अयोध्या में श्री राम जन्मभूमि मंदिर में श्री राम की मूर्ति के लिए कपड़े बुनने का अद्भुत आविष्कार 'दो धागे श्रीराम के लिए' पुणे में साकार हो रहा है। भारतीय समाज की विभिन्न जातियों, पंथों, क्षेत्रों के नागरिक, अपनी आर्थिक स्थिति और भाषाई विविधता की सीमाओं को पार करते हुए, रामलला के लिए कपड़े बुनने के लिए एक साथ आएंगे और दुनिया के सामने जज्वाला देशभक्ति का एक महान उदाहरण स्थापित करेंगे। इसके तहत 10 से 22 दिसंबर के बीच आयोजन स्थल पर भव्य मंडप बनाया जायेगा। यहां न केवल देशभर के हर राज्य बल्कि नेपाल व दूसरे राष्ट्रों से हैंडलूम आएंगे। पहले कुछ धागे कुछ महान हस्तियों के हाथों से बुने जाएंगे और फिर कोई भी आकर इन पंक्तियों पर अपनी आस्था और विश्वास के दो धागे बुन सकता है। कपड़ा बुनने से पहले नागरिकों को बताया जाएगा कि इसे कैसे बुनना है। हमें वैदिक काल से हथकरघा का उल्लेख मिलता है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य हथकरघा शिल्प जो हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग है उसका प्रसार करना और अगली पीढ़ी तक पहुंचाना भी है।

वैदिक तरीके से होगी वस्त्रों की बुनाई

इस महाआयोजन की शुरुआत 10 दिसंबर को संतों की उपस्थिति में समारोहपूर्वक होमहवन के साथ होगी। इस मौके पर कई गणमान्य लोग मौजूद रहेंगे और इस सेवा में हिस्सा लेंगे। वेदों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि देवी-देवताओं के वस्त्र कैसे होने चाहिए। ये कपड़े भी इसी तरह बुने जाएंगे। कार्यक्रम स्थल पर वस्त्रों की बुनाई के साथ-साथ 'श्री राम संबंधी' व्याख्यान, भजन-कीर्तन और विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा। इसके साथ ही श्रीराम मंदिर का पूरा इतिहास बताने वाली चित्र प्रदर्शनी भी होगी। सुबह-शाम महाआरती व महाप्रसाद का आयोजन किया जायेगा। हालाँकि, सभी राम भक्तों से आग्रह किया जा रहा है कि वे जातिवाद के ढांचे से बाहर आएं और एक भारतीय के रूप में अपनी आस्था और विश्वास के दो धागों को इस कपड़े में पिरोएं। यह कार्यक्रम सूर्यकांत काकडे फार्म, सर्वे नँबर 109, किनारा होटल के पास, पैठकर साम्राज्य के सामने कोथरुड में होगा। अधिक जानकारी के लिए 9146555595 पर संपर्क करने की अपील भी की गई है।

श्रीराम मंदिर के लिए देशवासियों से मिली 10 करोड़ की समर्पण राशि

इस मौके पर स्वामी गोविंद देव गिरि महाराज ने कहा, ''अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए विभिन्न देशों के नागरिकों ने धन संग्रह किया है लेकिन अभी तक इस फंड को ट्रस्ट ने स्वीकार नहीं किया है, लेकिन अब जब ट्रस्ट को तीन साल पूरे हो गए हैं तो एफसीआरए यानी फॉरेन कंट्रीब्यूशन (रेगुलेशन) एक्ट के तहत जरूरी अनुमतियां मिल गई हैं। तो जल्द ही हम इस फंड को स्वीकार कर सकेंगे। मंदिर निर्माण के लिए अब तक भारत के नागरिकों की ओर से समर्पण निधि की राशि 10 करोड़ रुपये से अधिक हो चुकी है। अब मंदिर का काम पूरा हो रहा है और हमें विश्वास है कि इतने लोगों के प्यार से राम मंदिर के निर्माण कार्य में कोई दिक्कत नहीं आएगी। अनघा घैसास ने कहा कि इस पहल में बुना जाने वाला कपड़ा 48-प्लाई का होगा और रेशम से बना होगा, "इसके तहत बुने जाने वाले कपड़े का उपयोग राम की मूर्ति के साथ-साथ राम से जुड़ी मंदिर क्षेत्र की अन्य 36 मूर्तियों के लिए भी किया जाएगा।" इसमें राम परिवार के साथ-साथ शबरी, जटायु और अन्य ऋषि-मुनियों की मूर्तियां शामिल हैं।'

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