मनरेगा से छूट रहा श्रमिकों का मोह, रोजगार मेलों से भी युवाओं का सपना नहीं हुआ पूरा
कटनी मनरेगा से छूट रहा श्रमिकों का मोह, रोजगार मेलों से भी युवाओं का सपना नहीं हुआ पूरा
डिजिटल डेस्क,कटनी। कोरोना संक्रमण के समय गांवों में जो प्रवासी मजदूर रजिस्टर बनाए गए थे। उन रजिस्टरों में अब धूल जम चुकी है। तीन वर्ष पहले जिले में ९ हजार मजदूर महानगरों से लौटे थे। यहां पर दक्षता के अनुरुप काम नहीं मिलने के कारण वर्तमान समय में करीब आधे श्रमिक फिर से महानगरों की ओर लौट चुके हैं। मनरेगा में कम राशि मिलने से जहां उनका मोह छूट रहा है। वहीं रोजगार मेले से भी युवाओं का सपना पूरा नहीं हो सका है। इस वर्ष 41 मेले में 12 हजार 842 लोग अलग-अलग वर्गों के पहुंचे। इसके बावजूद करीब पचास फीसदी युवा ही रोजगार मेले के माध्यम से अलग-अलग कंपनियों में काम कर रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि पलायन करने वाले मजदूरों की सटीक संख्या भी प्रशासनिक अफसरों के पास नहीं है।
साठ फीसदी मजदूरों ने ही मांगा काम
वर्तमान समय में 407 पंचायतों में 1 लाख 50 हजार 448 जाब कॉर्ड से 2 लाख 81 हजार मजदूर जुड़े हुए हैं, लेकिन मांग आधारित काम करने वाले मजदूरों की संख्या करीब साठ फीसदी ही रही। जिन्होंने अपने-अपने गांव में मजदूरी की। इसमें दस फीसदी मजदूर ऐसे रहे, जो महानगरों की ओर पलायन कर गए। इसकी तस्वीर धान कटाई के समय सामने आई थी, जब धान कटाई के लिए जिले भर में मजदूरों का संकट बना रहा। गेहूं के समय तो और अधिक परेशानी किसानों को होती है।
मेले से भी नहीं मिलता युवाओं को लाभ
जिले के अलग-अलग जगहों में इस वर्ष रोजगार मेले का भी आयोजन किया गया। इसके बावजूद युवाओं का सपना पूरा नहीं हो सका। मेले में जरुर बड़ी-बड़ी कंपनियां आईं और उन्होंने युवाओं का चयन किया। महानगरों का खर्चा देखकर कई युवा शहर छोडऩे को तैयार नहीं हुई। जिला रोजगार कार्यालय में जिस प्राइवेट कंपनी को प्लेसमेंट कराने की जिम्मेदारी दी गई थी। वह कंपनी भी शासन के शर्तों का पालन नहीं कर पाई। जिसके बाद शासन स्तर से ही कंपनी को टर्मिनेट कर दिया गया था। महाराष्ट्र और गुजरात श्रमिकों की पहली पसंद कोरोना संक्रमण कॉल में प्रवासी मजदूरों के संबंध में जो जानकारी प्रशासन ने जुटाई थी।
उसमें सबसे अधिक मजदूर महाराष्ट्र और गुजरात में ही काम करने गए हुए थे। इसी तरह से आंधप्रदेश, हरियाणा, पंजाब, ओडि़सा और अन्य राज्यों में 9 हजार मजदूर चिन्हित किए गए थे। लौटने पर सभी मजदूरों के श्रमिक कार्ड बनवाए और उन्हें रोजगार भी दिलाया, लेकिन जैसे ही कोरोना का संक्रमण कम हुआ। इसमें से करीब पांच हजार मजदूर फिर से महानगरों की ओर पलायन कर गए।