कलेक्टर के परमिशन की शर्त हटते ही दलाल हुए सक्रिय, छोटे प्लॉट काटकर कराई जा रही रजिस्ट्री

शहडोल कलेक्टर के परमिशन की शर्त हटते ही दलाल हुए सक्रिय, छोटे प्लॉट काटकर कराई जा रही रजिस्ट्री

Bhaskar Hindi
Update: 2022-03-11 11:54 GMT
कलेक्टर के परमिशन की शर्त हटते ही दलाल हुए सक्रिय, छोटे प्लॉट काटकर कराई जा रही रजिस्ट्री

डिजिटल डेस्क, शहडोल ।जिले में नॉन डायवर्टेड (कृषि) भूमि की रजिस्ट्री के लिए अब कलेक्टर के परमिशन की जरूरत नहीं है। कृषि भूमि की सीधे रजिस्ट्री कराई जा सकती है। कलेक्टर के आदेश जारी करने के बाद ७ मार्च से नई व्यवस्था लागू हो गई है। इससे पक्षकारों को बड़ी राहत मिली है, वे जब चाहें अपनी जमीन की विक्री कर सकते हैं। वहीं इसके दुप्प्रभाव भी सामने आने लगे हैं। रजिस्ट्री में दलालों की सक्रियता बढ़ गई है। छोटे-छोटे प्लॉट काटकर रजिस्ट्री कराई जा रही है। 
    अधिसूचित क्षेत्र होने के कारण अभी तक जिले में मप्र भू राजस्व संहिता १९५९ की धारा १६५ (६-क) के प्रावधान के तहतकृषि भूमि (नॉन डायवर्टेड लैंड) की रजिस्ट्री के लिए भी कलेक्टर के परमिशन की जरूरत होती थी। इसके चलते रजिस्ट्रियां समय पर नहीं हो पाती थीं। इसका लगातार विरोध भी हो रहा था और मुख्यमंत्री तक शिकायत गई थी। २८ फरवरी को कलेक्टर वंदना वैद्य ने आदेश जारी कर कृषि भूमि की रजिस्ट्री के लिए परमिशन की शर्त समाप्त कर दी है। अन्य जिलों की तरह डायवर्टेड लैंड में नियमानुसार कलेक्टर परमिशन लेना अनिवार्य रहेगा। ७ मार्च से नई व्यवस्था लागू हो गई है। 
भूमि रिकॉर्ड जांच का विकल्प नहीं, सिर्फ शपथपत्र के आधार पर रजिस्ट्री
उपरजिस्ट्रार जय सिंह सिकरवार ने बताया कि परमिशन की शर्त खत्म होने के बाद कुछ दिक्कतें भी बढ़ गई हैं। अब भूमि का परीक्षण नहीं हो पा रहा है। पहले वर्ष १९५८-५९ का रिकॉर्ड देखा जाता था कि पूर्व में यह भूमि किसी आदिवासी के नाम से तो दर्ज नहीं थी। ऐसी बहुत सी रजिस्ट्री रुकी हुई थीं जिसमें पूर्व में आदिवासियों के नाम दर्ज थे। अब इसके लिए पक्षकार से सिर्फ शपथ पत्र लिया जाता है। शपथ पत्र में जानकारी सही या नहीं इसकी जांच नहीं हो सकती है। शपथ पत्र के आधार पर खसरा देखकर रजिस्ट्री की जा रही है। ऐसे में दलाल गलत जमीन दिखाकर जमीन की विक्री कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि गलत शपथपत्र से जमीन तो बिक जाएगी, लेकिन बाद में नामांतरण नहीं होगा। 
फायदा : एक दिन में ४५-५० रजिस्ट्रियां 
कलेक्टर परमिशन खत्म होने के बाद रजिस्ट्रियां/डॉक्यूमेंट बढ़ गए हैं। पहले परमिशन लेने में काफी समय लग जाता था। अब सीधे रजिस्ट्री हो रही है। इसका लाभ यह हुआ है कि अब पक्षकार अपनी जमीन जब चाहे तब बेच सकता है। ज्यादा रजिस्ट्री होने से शासन का राजस्व भी बढ़ेगा। ७ मार्च के पहले तक जहां एक दिन में ३० से ३५ रजिस्ट्रियां होती थीं। ७ मार्च के बाद से ४५ से ५० होने लगी हैं। एक दिन के सभी ५६ स्लॉट बुक रहते हैं। पहले जो कलेक्टर परमिशन पर लगी थीं, अब सीधे रजिस्ट्री पर आ रही हैं। अधिकारियों के अनुसार रोजाना होने वाली रजिस्ट्री में आधे से अधिक नॉन डायवर्टेट भूमि से संबंधित रहती हैं। 
नुकसान : अवैध कॉलोनाइजेशन बढ़ेगा
कलेक्टर परमिशन खत्म होने से रजिस्ट्री तो आसान हो गई है, लेकिन दलालों की सक्रियता बढ़ गई है। कृषि भूमि की अवैध रूप से छोटे-छोटे प्लॉट काटकर रजिस्ट्रियां कराई जा रही हैं। इससे आने वाले दिनों में अवैध कॉलोनाइजेशन तेजी से बढ़ेगा। इस पर रजिस्ट्रार कार्यालय का किसी तरह का नियंत्रण नहीं है। जानकारों के अनुसार परमिशन तो खत्म कर दी गई, लेकिन वर्ष १९५८-५९ के रिकॉर्ड की जांच का कोई विकल्प नहीं बनाया गया है। जबकि इसके लिए भी कुछ दिशा-निर्देश देने की जरूरत है, ताकि आदिवासियों के हित प्रभावित नहीं हों। साथ ही छोटे-छोटे प्लॉट की बिक्री पर भी रोक के लिए सख्ती की जाए।  
राजस्व रिकॉर्ड दुरस्त करने की भी जरूरत 
रजिस्ट्री में एक और समस्या राजस्व रिकॉर्ड को लेकर आ रही है। बहुत से खसर नंबरों में गैर कृषि भूमि या रिहायशी भवन चढ़ गया है, जबकि वास्तव में वहां कृषि भूमि है। कृषि भूमि नहीं होने पर डायवर्टेड माना जाएगा। वहां कलेक्टर के परमिशन की जरूरत होगी। पक्षकारों का कहना है वहां कुछ भी नहीं बना है। पटवारियों की त्रुटि है। पक्षकारों को दिक्कत हो रही है। राजस्व रिकार्ड दुरुस्त कराने की जरूरत है। निर्माण हुआ है या नहीं इसको देखते हुए रिकॉर्ड में चढ़ाया जाए, ताकि कोई समस्या न हो।   
इनका कहना है
नॉन डायवर्टेड भूमि में कलेक्टर की परमिशन खत्म हो गई है। सोमवार से यह व्यवस्था लागू कर दी गई है। कृषि भूमि की अब सीधे रजिस्ट्री कराई जा सकती है। डायवर्टेड भूमि के लिए अभी भी कलेक्टर परमिशन की जरूरत है। 
 

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