टेक्निकल प्रॉब्लम...कमरतोड़ महंगाई के बीच 98 हॉस्टलों को तीन माह से नहीं मिला खाद्यान्न

छिंदवाड़ा टेक्निकल प्रॉब्लम...कमरतोड़ महंगाई के बीच 98 हॉस्टलों को तीन माह से नहीं मिला खाद्यान्न

Bhaskar Hindi
Update: 2022-09-03 12:12 GMT


डिजिटल डेस्क, छिंदवाड़ा। कमरतोड़ महंगाई के बीच छात्रावासों में रहकर पढ़ाई कर रहे विद्यार्थी नई परेशानी में घिर गए हैं। तीन माह से सरकारी हॉस्टलों में खाद्यान्न संकट छाया हुआ है। खाद्य विभाग से आवंटन नहीं मिल पाने के कारण इन छात्रावासों का संचालन करना मुश्किल पड़ रहा है। कई छात्रावासों की तो ये हालत है कि अब हॉस्टल संचालन पर अधीक्षकों ने भी हाथ खड़े कर दिए हैं। जिले के एक दो नहीं बल्कि 98 छात्रावासों में ये हालात बने हुए हैं। खाद्य विभाग के अफसरों का कहना है कि ये टेक्निकल प्रॉब्लम है, लेकिन इस समस्या की वजह से हॉस्टलों में हड़कंप मच गया है।
हॉस्टलों में रहकर पढ़ाई करने वाले छात्र-छात्राओं के लिए खाद्य विभाग द्वारा रियायती दर पर खाद्यान्न उपलब्ध कराया जाता है। जिले में जनजातीय कार्य विभाग द्वारा 181 हॉस्टल और आश्रम का संचालन होता है, लेकिन इनमें से 98 छात्रावासों को जून, जुलाई और अगस्त का आवंटन नहीं मिल पाया है। विभाग इसे टेक्निकल प्रॉब्लम मान रहा है। जिसके बाद हाल ही में जनजातीय कार्य विभाग के अधिकारियों ने विभागीय डेटा तैयार करते हुए खाद्य विभाग को इन छात्रावासों की सूची सौंपी है। इधर, खाद्य विभाग के अधिकारियों का कहना है कि जिस वजह से आवंटन में टेक्निकल प्रॉब्लम सामने आई है, उससे जनजातीय कार्य विभाग को अवगत कराया गया है।
20 रुपए किलो गेहूं, 30 रुपए किलो खरीदना पड़ रहा चावल
महंगाई के चलते हर वर्ग परेशान है। हॉस्टल में रहकर पढ़ाई करने वाले बच्चों को रियायती दर पर शासन खाद्यान्न उपलब्ध कराता है। इसमें एक रुपए किलो गेहूं और तकरीबन 7 रुपए किलो चावल के हिसाब से आवंटन प्रदाय होता है, लेकिन खाद्य विभाग की तरफ से आवंटन नहीं मिल पाने के कारण अधीक्षकों को बाजार से 20 रुपए किलो गेहूं और 30 रुपए किलो चावल खरीदकर बच्चोंं को खिलाना पड़ रहा है।
12 किलो गेहूं और 3 किलो चावल मिलता है बच्चों को
खाद्य विभाग द्वारा छात्रावासों में बच्चों की दर्ज संख्या के मुताबिक आवंटन प्रदाय किया जाता है। शासन के मापदंडों के मुताबिक छात्रावास में रहकर पढ़ाई करने वाले हर एक बच्चों को प्रतिमाह 12 किलो गेहूं और 3 किलो चावल प्रदान किया जाता है। ये आवंटन शासन द्वारा निर्धारित रियायती दरों पर प्रदान किया जाता है। अब नई व्यवस्था के तहत सभी प्रक्रियाएं ऑफलाइन की बजाय ऑनलाइन कर दी गई हैं। ऑनलाइन होने के कारण ही सबसे ज्यादा दिक्कतें हो रही हैं।
आदिवासी अंचलों में रोटी, सब्जी खाकर कर रहे गुजारा बच्चें
शहरी क्षेत्रों में अधिकारियों के प्रेशर की वजह से छात्रावास अधीक्षक जैसे-तैसे संचालन कर भी पा रहे हैं, लेकिन तामिया, जुन्नारदेव, हर्रई और बिछुआ जैसे सुदूर अंचलों में तो बदतर हालात बने हुए हैं। बताया जा रहा है कि यहां के बच्चे सब्जी रोटी खाकर गुजारा कर रहे हैं। आवंटन नहीं होने से यहां के अधीक्षकों के कैसे हालात नहीं हैं कि वे अपने स्तर पर पूरी व्यवस्था बना सकें।
इनका कहना है...
॥टेक्निकल प्रॉब्लम होने की वजह से ये दिक्कतें आ रही हैं। दो साल कोरोना काल की वजह से ये समस्या है। जिसे जल्द ही हल कर दिया जाएगा। नए सिरे से हॉस्टलों में वर्किंग शुरू कर दी गई है।
-एनएस बरकड़े
असिस्टेंट कमिश्नर, ट्रायबल
॥छात्रावासों की सूची जनजातीय कार्य विभाग से आई है। टेक्निकल इश्यू सामने आने के कारण ही आवंटन नहीं हो पाया है। हमने विभागीय अधिकारियों को अवगत करा दिया है।

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