नेशनल बिल्डिंग कोड को धता बताते हुए संचालित हो रहे हैं निजी अस्पताल
सीएमएचओ कार्यालय के द्वारा डाला जा रहा पर्दा नेशनल बिल्डिंग कोड को धता बताते हुए संचालित हो रहे हैं निजी अस्पताल
डिजिटल डेस्क,कटनी। जबलपुर के न्यू लाइफ मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल में आगजनी की घटना के बाद भी स्वास्थ्य महकमा कार्यवाही के नाम पर पर्देदारी प्रथा अपनाए हुए है। आलम यह है कि कागजी कोरम पूरा करने के लिए तो अस्पतालों को नोटिस भी दिया गया। साथ ही गुरुवार को ऑन स्पॉट चेकिंग की भी चर्चा रही। इसके बावजूद सीएमएचओ डॉ. प्रदीप मुढिय़ा हमेशा की तरह चुप्पी साधे रहे। दरअसल शहर के कुछ अस्पतालों को छोड़ दिया जाए तो अधिकांश अस्पताल नेशनल बिल्डिंग कोड के नियमों को धता बताते हुए संचालित हो रहे हैं।
एनबीसी में कम से कम 500 वर्ग मीटर में निर्माण होना आवश्यक है। यदि अस्पतालों में इस एरिया में निर्माण होगा तो उन्हें वे सभी नियमों का पालन करना पड़ेगा, लेकिन अधिकांश अस्पताल रिहायशी या फिर आवासों में संचालित हो रहे हैं। जिसका सीधा फंडा यह है कि बिल्डिंग के मामले में नगर निगम यह कहकर हाथ खड़े कर लेता है कि उनका दायरा एनबीसी के नियमों का पालन कराना है। यदि इस एरिया से कम क्षेत्रफल में निर्माण होता है तो यह काम स्वास्थ्य महकमे का है और इधर स्वास्थ्य महकमा आंख बंद कर बगैर परीक्षण के ही कई अस्पतालों को लाईसेंस दिया हुआ है।
आफिस में ही बैठकर देते है लाइसेंस
जैसे-जैसे निजी अस्पतालों की फाइल खुलती जा रही है। उसी तरह से स्वास्थ्य महकमा की लापरवाही भी सामने आ रही है। नियमों के मुताबिक यदि कोई निजी अस्पताल का संचालक लाइसेंस के लिए आवदेन देता है तो भौतिक सत्यापन करने की जिम्मेदारी सीएमएचओ कार्यालय की होती है। इसमें स्टाफ और दी जा रही सुविधाओं का ऑन स्पॉट निरीक्षण करना पड़ता है। साथ ही सुरक्षा के अपनाए गए मापदण्डों का भी निरीक्षण करना पड़ता है।
अस्पतालों में ओपन स्पेश ही नहीं
जिला मुख्यालय के कई अस्पताल ऐसे हैं, जहां पर ओपन स्पेश भी नहीं है। अस्पताल के अंदर कम से कम इतनी जगह जरुर होनी चाहिए कि यदि आगजनी की घटना घटित होती है तो कम से कम अग्निशमन वाहन परिसर के अंदर जा सके, लेकिन अधिकांश अस्पतालों का ओपीडी मुख्य सडक़ से सटे बिल्डिंग में ही होता है। दिखावे के लिए जरुर कई जगहों पर फायर एग्सिटिंग्यूशर मशीन है, लेकिन यहां पर न तो हाइड्रेंट प्वाइंट है और न ही आपतकालीन स्थिति के लिए अलग से टंकी बनाई गई है। जिससे अस्पतालों में इलाज के लिए पहुंचने वाले मरीजों पर चौबीस घंटें खतरा मंडराता रहता है।
टीम के सदस्यों की जानकारी नहीं
स्वास्थ्य महकमा टीम तो बना लिया है, लेकिन अभी तक टीम में कौन-कौन से अधिकारी हैं। इस संबंध में वह जानकारी सार्वजनिक नहीं कर रहा है। लापरवाही का आलम यह है कि जबलपुर के हादसे के बाद निजी अस्पतालों में कार्यवाही या फिर जांच न करना पड़े। जिसके चलते सीएमएचओ कार्यालय की कुर्सी में अफसर कम समय ही दे रहे हैं।