मल्टीलेयर फार्मिंग: एक साथ चार फसल लगाकर किसान कमा रहे 8 गुना मुनाफा
मल्टीलेयर फार्मिंग: एक साथ चार फसल लगाकर किसान कमा रहे 8 गुना मुनाफा
डिजिटल डेस्क जबलपुर। शहपुरा से पाटन रोड पर स्थित घुंसौर गांव के किसान केपी सिंह बहुस्तरीय खेती यानि एक साथ चार से पांच फसलें लेकर दो एकड़ में लाखों रुपए कमा रहे हैं। मल्टीलेयर फॉर्मिंग से इनकी फसलों में न तो कीट पतंगों का प्रकोप रहता है और न ही खरपतवार होता है। केपी सिंह के द्वारा शुरू किये इस मॉडल को अन्य किसान भी अपना रहे हैं। कृषि विभाग भी इनकी पहल की सराहना कर इस तरह की खेती को प्रोत्साहित कर रहा है।
केपी सिंह ने बताया कि मल्टीलेयर फॉर्मिंग से किसानों की लागत चार गुना कम होती है, जबकि मुनाफा आठ गुना ज्यादा होता है। अगर हम एक साथ कई फसलें लेते हैं तो एक दूसरी फसल से एक दूसरे को पोषक तत्व मिल जाते हैं, जमीन में जब खाली जगह नहीं रहती तो खरपतवार भी नहीं निकलती। जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय से पढ़े केपी सिंह सालों से उन्नत कृषि कर रहे हैं। उन्हें आत्मा परियोजना के द्वारा विकासखंड के सर्वश्रेष्ठ कृषक का पुरस्कार भी दिया जा चुका है। इन दिनों वे मल्टी फार्मिंग कर एक साथ चार फसलें उगा रहे हैं। जैविक कृषि के लिए कृषि विभाग भी उनकी सराहना कर चुका है।
चार गुना कम खर्चा
केपी सिंह बताते हैं कि मल्टीलेयर खेती करने से एक फसल में जितनी खाद डालते हैं, उतनी ही खाद से चार फसलें पैदा हो जाती हैं, पानी भी एक फसल जितना ही खर्च होता है। इस तरीके से 70 प्रतिशत पानी की बचत होती है। बांस, तार और नेट या घास से जो मंडप तैयार करते हैं, उसमें एक एकड़ में एक साल की 25 हजार लागत आती है, मतलब एक बार इसे तैयार करने में एक एकड़ में सवा लाख का खर्चा आता है और ये पांच साल तक चलता है।
ऐसे तैयार करते हैं नेट का जाल
केपी सिंह बताते हैं कि अगर हम पॉली हाउस या नेट हॉउस लगाते हैं तो 30 से 40 लाख रुपए की लागत आती है, जबकि मंडप बनाने में सिर्फ सवा लाख रुपए खर्च होते हैं, जो कि पांच साल तक लगातार चलता है। यानि एक साल की लागत सिर्फ 25 हजार आती है। एक एकड़ खेत में 2200 बांस के डंडे लगाते हैं, जिसकी लम्बाई नौ दस फीट होती है। एक दो इंच नीचे गाड़ देते हैं, एक फीट ऊपर लगा देते हैं, सिर्फ सात फीट का बांस खेत में दिखता है जिसमें फसल चलती है। 5-6 फीट की दूरी पर बांस लगाते हैं। सवा सौ से डेढ़ सौ किलो तक बीस गेज पतला तार लगाते हैं। जिस पर बेल चढ़ाई जाती हैं।
ऐसे कर रहे खेती
कृषक केपी सिंह ने बताया कि जमीन को चार लेयर में तैयार किया जाता है। इसके लिए उन्होंने सबसे पहले रोटोवेटर से जमीन को समतल किया। इसके बाद उन्होंने पांच-पांच फीट के अंतर पर क्यारियां बनाईं। जमीन में सबसे पहले नीचे अदरक लगाया। अदरक के साथ ही उन्होंने ऊपर पालक, मौथी, चौरई जैसी भाजियां बो दीं। जब कि अदरक के पत्ते निकलते तब तक वे भाजी बेच चुके थे। क्यारियों में ही उन्होंने बेल वाली सब्जियां जैसे गिलकी, लौकी, कुंदरू, करेला लगाईं। जो बांस के साहारे मंडप पर चढ़ती गईं। वहीं उन्होंने बीच-बीच में पपीते भी लगाए जो जाल के ऊपर निकल चुके हैं। इस तरह वे एक साथ फसलें उगा रहे हैं।
खरपतवार व कीटों से बचाने के लिए ये किया
केपी सिंह ने बताया कि जब उन्होंने चारों फसल लगा दीं तो खरपतवार उगने के लिए जगह ही नहीं बची। कीट-पतंगों से बचने के लिए उन्होंने खेत में नेट की जाली लगाई है। उन्होंने दस-दस फीट की दूरी पर गेंदे के पैधे भी लगाए हैं। उनका कहना है कि जो कीट पतंगे अंदर आ आते हैं वे फूल की तरफ आकर्षित होते हैं। इससे वे सब्जियों को नुकसान नहीं पहुंचा पाते। इसके अलावा उन्होंने सरसों का तेल और गुड़ का लेप करके खेत में तख्तियां भी लगाई हैं। इससे उडऩे वाले कीट इन्हीं तख्तियों पर चिपक जाते हैं, जिससे वे फसल को नुकान नहीं पहुंचा पाते हैं।
कृषि विभाग ने किया निरीक्षण
अनुविभागीय अधिकारी कृषि डॉ इंदिरा त्रिपाठी, वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी पीके श्रीवास्तव, ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी रजनीश दुबे, एनके गुप्ता ने कृषक केपी सिंह के खेत जाकर मल्टीफर्मिंग देखी। उन्होंने इस तरह की कृषि का प्रचार प्रसार कर अन्य कृषकों को भी ऐसा करने के लिए अभियान चालने की बात कही। कृषि अधिकारियों का कहना है कि इस तरह की कृषि से किसान अपनी आय बढ़ा सकते हैं।