विडंबना: खाट और नाव पर तय करते हैं जिंदगी का सफर
विडंबना: खाट और नाव पर तय करते हैं जिंदगी का सफर
डिजिटल डेस्क कटनी। कश्ती भी नहीं बदली दरिया भी नहीं बदला और डूबने वालों का जन्बा भी नहीं बदला। तस्वीर नहीं बदली शीशा भी नहीं बदला, नजरें भी सलामत हैं चेहरा भी नहीं बदला। गुलाम मोहम्मद कासिर की यह कविता इस समय विजयराघवगढ़ जनपद के खिरवा ग्रामीणों में सटीक बैठ रही है। बारिश का मौसम तो खुशहाली लेकर आता है, लेकिन यहां पर रहने वाले छह सौ लोगों के लिए मानसून सीजन का चार माह इस तरह से दुखदायी हो जाता है कि नाव के सहारे ही उनका जीवन यापन होता है। पिछले वर्ष जब विधानसभा चुनाव रहा तो यहां पर स्टीमर की सुविधा ग्रामीणों को दी गई थी। चुनाव के बाद फिर से ग्रामीणों को उसी हाल में छोड़ दिया गया। जिसके बाद लकड़ी की पुरानी नाव ही इनके जीवन की नैया को पार कर रही है। रोजाना नाव से बाइक लादकर लोग खिरवा से निकलते हुए अन्य जगहों पर पहुंचते हैं। सबसे अधिक परेशानी बीमार मरीज को लाने-ले जाने में होती है। यहां पर यदि कोई बुजुर्ग या महिला बीमार पड़ जाए तो मुख्य मार्ग तक लाने के लिए नाव और उसके बाद खटिया का ही सहारा रहता है।
खटिया पर सवार मरीज का जीवन-
यहां पर हाल में ही एक तस्वीर ऐसी आई। जिसने प्रशासन की व्यवस्था की पोल खोलकर रख दी। गांव के ही कुछ लोग खटिया में एक बुजुर्ग राम किशोर पटेल को खटिया सहित नाव में सवार कर रहे थे। परिजन बाबू लाल केवट से पूछा तो उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि भैया यह स्थिति तो चार मास तक बनी रहती है। नाव के सहारे बीमार को नदी के दूसरे छोर तक ले जाएंगे। इसके बाद
दुर्गम और कच्चे रास्तों का सामना करना पड़ेगा। इसके लिए खटिया को भी साथ में ले जाना पड़ता है। दुर्गम रास्ते में खटिया से ही मरीज को लेकर वे मुख्य मार्ग तक पहुंचते हैं। यदि किसी गर्भवती महिला को अस्पताल ले जाना हो तो उसे भी ग्रामीण और परिजन खटिया से ही ले जाते हैं।
तहसीलदार ने खड़े किए हाथ-
चुनाव के समय मतदान नहीं करने की मांग पर अडिग ग्रामीणों को मनाने के लिए तो कई प्रशासनिक अफसर पहुंचे थे, लेकिन अब ग्रामीणों की समस्या से
तहसीलदार महेन्द्र पटेल यह कहते हुए हाथ खड़े कर रहे हैं यह क्षेत्र नायब
तहसीलदार के अधिकार में आता है।