कास्टिंग यार्ड के लिए एमसआरडीसी को दी गई अनुमति अवैध - हाईकोर्ट, नवलखा को मिली राहत बरकरार

कास्टिंग यार्ड के लिए एमसआरडीसी को दी गई अनुमति अवैध - हाईकोर्ट, नवलखा को मिली राहत बरकरार

Bhaskar Hindi
Update: 2019-04-26 16:30 GMT
कास्टिंग यार्ड के लिए एमसआरडीसी को दी गई अनुमति अवैध - हाईकोर्ट, नवलखा को मिली राहत बरकरार

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में आरोपी गौतम नवलखा को गिरफ्तारी से मिली अंतरिम राहत को 2 मई तक के लिए बरकरार रखा है। नवलखा ने खुद के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले को रद्द किए जाने की मांग को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। पुणे पुलिस ने नवलखा के खिलाफ मामला दर्ज किया है। शुक्रवार को न्यायमूर्ति आरवी मोरे व न्यायमूर्ति अकिल कुरेशी की खंडपीठ के सामने याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान सरकारी वकील अरुणा पई ने खंडपीठ के सामने कहा कि आरोपी नवलखा को मिली राहत के चलते पुलिस की जांच में अवरोध पैदा होता है। इसलिए नवलखा को मिली अंतरिम राहत को खत्म कर दिया जाए। हमारे पास आरोपी के खिलाफ ठोस सबूत हैं। इन दलीलों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि हम 2 मई को इस मामले की सुनवाई करेंगे। फिलहाल अदालत ने नवलखा को मिली अंतरिम राहत को बरकरार रखा है। 

एमसआरडीसी को दी गई अनुमति अवैध

बांबे हाईकोर्ट ने वर्सोवा-बांद्रा सी लिंक के लिए महाराष्ट्र राज्य सड़क विकास महामंडल(एमएसआरडीसी) को जूहू बीच पर कास्टिंगयार्ड बनाने के लिए दी गई अनुमति को अवैध माना है। मुख्य न्यायाधीश प्रदीप नांदराजोग व न्यायमूर्ति एनएम जामदार की खंडपीठ ने यह फैसला सुनाया है। इस संबंध में सामाजिक कार्यकर्ता जोरु भतेना ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका में दावा किया गया था कि एमएसआरडीसी अवैध तरीके से कास्टिंग यार्ड के लिए समुद्र को पाट रही है। जिसके चलते मैंग्रोव के वृक्षों तक पानी का प्रवाह नहीं पहुंच रहा है। मामले से जुड़े सभी पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि कास्टिंग यार्ड के निर्माण के लिए दी गई अनुमति नियमों के खिलाफ है। इसलिए उसे रद्द किया जाता है। यह अनुमति महाराष्ट्र कोस्टल रेग्युलेशन जोन मैनेजमेंट एथारिटी ने दी थी। 

आयकर विभाग के निर्णय को मजबूती देनेवाले फैसलों को आधार बनानेवाली नीति को हाईकोर्ट ने किया रद्द

वहीं बांबे हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार के केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड की उस नीति को आंशिक रुप से रद्द कर दिया है जिसके तहत अपीलीय आयकर आयुक्त के प्रदर्शन के मूल्यांकन के लिए आयकर विभाग के निर्णय को मजबूती देनेवाले फैसलों को आधार बनाने की पेशकस की गई थी। न्यायमूर्ति अकिल कुरेशी व न्यायमूर्ति सारंग कोतवाल की खंडपीठ ने यह फैसला सुनाते हुए साल 2018-19 में अपीलीय आयकर आयुक्त के मूल्यांकन व प्रोत्साहन भत्ता प्रदान करने के लिए तय की गई नीति को रद्द कर दिया। यह नीति सेंट्रल एक्शन प्लान के तहत केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड ने अधिसूचित की थी। जिसके तहत तय किया गया था कि अपीलीय आयकर अधिकारियों के साल 2018-19 के प्रदर्शन का मूल्यांकन उनके द्वारा आयकर विभाग के निर्णय को मजबूती देनेवाले फैसलों के आधार पर किया जाएगा। सेंट्रल एक्शन प्लान के तहत अपीलीय आयकर अधिकारियों को एक निश्चित समय सीमा के भीतर फैसला सुनने की  भी  बात कही गई थी। खंडपीठ ने अपने फैसले में इस नीति को पूरी तरह से अवैध व अनुचित बताया है। इस विषय को लेकर चेंबर आफ टैक्स कंस्लटेंट व ऐस लीगल फर्म ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी। याचिका में दावा किया गया था कि अपीलीय आयकर अधिकारियों के मूल्यांकन व प्रोत्साहन के लिए केंद्र सरकार द्वारा मामले को लेकर बनाई गई व्यवस्था से अपीलीय आयकर अधिकारियों पर मामले के निपटारे के लिए बेवजह का दबाव बढेगा। इससे अधिकारी मामलों का निपटारा जल्दबाजी में करने की कोशिश करेगे। जिसका खामियाजा कर दाता को भुगतान पड़ेगा। यह मामले की निष्पक्ष सुनवाई पर भी असर डालेगा। क्योंकि अपीलीय आयकर अधिकारियों को एक तरह से आयकर विभाग में फैसला देने के लिए प्रोत्साहन भत्ते की पेशकस की गई है। सुनवाई के दौरान केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड की ओर से पैरवी कर रहे एडिशनल सालिसिटर जनरल अनिल सिंह ने कहा कि बोर्ड ने अपील आयकर अधिकारी की कार्यक्षमता का आकलन करने के लिए उपरोक्त मानक तय किए है।  बोर्ड ने अपने अधिकारों के तहत यह  नीति बनाई है जिसका उद्देश्य कानूनी विवाद के चलते कर के रुप में प्रलंबित बड़ी रकम की वसूली में तेजी लायी जा सके। और लंबे समय से प्रलंबित अपीलों का निपटारा किया जा सके। इसका मामले की निष्पक्ष सुनवाई पर कोई असर नहीं पडेगा। बोर्ड ने तय किया है कि वह अागामी सालों में इस नीति को लागू नहीं करेगा। बोर्ड ने इस नीति को वापस ले लिया है। मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड की नीती को आंशिक रुप से सही पाया खंडपीठ ने कहा कि कार्यक्षमता के आकलन के लिए एक लक्ष्य देने में कोई खराबी नहीं है। लेकिन प्रोत्साहन भत्ते के लिए आयकर विभाग के निर्णय को मजबूती देनेवाले फैसलों को आधार बनाना उचित नहीं है। यह अपीलीय अधिकारी के विवेक को प्रभावित कर सकता है। इसलिए इसे निरस्त किया जाता है। केंद्रीय प्रत्यक्ष बोर्ड इसे पिछले साल भी न लागू करे। खंडपीठ ने दावा कि अपीलीय अधिकारियों के मूल्याकन के लिए बनाई गई व्यवस्था मनमानीपूर्ण नहीं है। 

 

 

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