शहर ही नहीं ग्रामीण क्षेत्रों में तेजी से पांव फैलाने लगा है हाइपरटेंशन, लोग पीड़ित
शहर ही नहीं ग्रामीण क्षेत्रों में तेजी से पांव फैलाने लगा है हाइपरटेंशन, लोग पीड़ित
डिजिटल डेस्क, नागपुर । साइलेंट किलर माना जाने वाला हाइपरटेंशन अब तेजी से ग्रामीण इलाकों में पैर पसार रहा है। महाराष्ट्र में शहरी इलाकों की तुलना में ग्रामीण इलाकों में इसके मरीज ज्यादा मिल रहे हैं। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के दौरान जुटाए गए आंकड़ों के अनुसार राज्य में शहरी जनसंख्या में 12 फीसदी, जबकि ग्रामीण में 13 फीसदी लोग हाइपरटेंशन से पीड़ित हैं। स्पष्ट है कि अपेक्षाकृत शहर और अमीर तबके की बीमारी माने जाने वाले हाइपरटेंशन के मरीजों में शहरी व आर्थिक सामाजिक वर्ग का अंतर तेजी से कम होता जा रहा है। यहां तक कि बीमारी की जद में आने की आयु सीमा भी तेजी से नीचे खिसकती जा रही है।
नियमित जांच और उपचार की कमी
देश की आबादी के 11 प्रतिशत 15 से 49 आयु वर्ग के बीच इस बीमारी के जद में आ जाते हैं। सर्वे की रिपोर्ट तैयार करने वाले डॉ. सौमित्र घोष (टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस) के अनुसार शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों, दोनों ही जगह अपेक्षाकृत निम्न तबके में आधुनिक जीवनशैली, आहार संबंधी आदतों में बदलाव, शराब की आदत, जंक फूड का प्रचलन तेजी से बढ़ रहा है। इसके साथ ही उच्च स्तर का तनाव और अक्रियाशील जीवनशैली भी इस तबके में बढ़ रहा है। इस वर्ग में हाइपरटेंशन का पैर पसारना गंभीर चुनौती पेश कर सकता है। इस तबके की बड़े भाग की पहुंच अब भी नियमित जांच, चिकित्सा और स्वस्थ जीवनशैली की समझ से दूर है।
1 लाख 78 हजार की मौत
वर्ष 2016 में महाराष्ट्र में 1 लाख 78 हजार लोगों की मौत हाई ब्लड प्रेशर के कारण हुई थी। राज्य स्तर पर यह तीसरी सबसे बड़ी संख्या है। ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज (जीबीडी) के आंकड़ों से साफ है कि महाराष्ट्र में होने वाली असामयिक मौत के मामलों में हाइपरटेंशन सबसे बड़ा कारण है। यही नहीं वर्ष 1990 से 2016 के बीच इससे होने वाली मौत के मामलों में 42 फीसदी की वृद्धि दर्ज हुई है। राज्य में फिलहाल हाइपरटेंशन का फैलाव 25 फीसदी है।
शहर में तीन लाख से ज्यादा को उच्च रक्तचाप
महाराष्ट्र में 66 फीसदी मौत के मामलों का कारण गैर संक्रामक बीमारियां होती हैं। शहर में लगभग तीन लाख लोग बढ़े हुए बीपी के साथ जी रहे हैं, लेकिन उनमें से अधिकतर इससे अनजान हैं। लोगों में जागरूकता बढ़ाकर उन्हें उपचार के लिए प्रेरित किया जा सकता है। सरकारी स्वास्थ्य सेवा के तहत काफी कम दर पर उपचार व दवाइयां उपलब्ध हैं। इसके लिए सरकार के साथ स्वास्थ्य क्षेत्र में काम कर रहे लोगों को साथ मिलकर काम करने की जरूरत है। बीपी चेक करने की सुविधा को सामुदायिक व घरेलू स्तर पर बढ़ावा देने की जरूरत है।
-डॉ. संजीव कुमार, विभागीय आयुक्त, नागपुर
30 फीसदी स्कूली बच्चे हाइपरटेंशन की जद में
वर्ल्ड फूड-डे के अवसर पर जारी स्कूली बच्चों के स्वास्थ्य व खान-पान से संबंधित सर्वे के मुताबिक राज्य के 30 फीसदी बच्चे हाइपरटेंशन और डायबिटीज की जद में हैं। फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन कमिश्नर पल्लवी दराडे ने इसके लिए स्कूलों की कैंटीन में परोसा जा रहा फास्ट फूड जिम्मेदार बताया था। सर्वे में तीसरी कक्षा से लेकर बारहवीं कक्षा के बच्चे व किशोर शामिल थे।