कमीशन के चक्कर में किसानों को नहीं हुआ मुआवजे का भुगतान, जांच रिपोर्ट में खुलासा
शहडोल कमीशन के चक्कर में किसानों को नहीं हुआ मुआवजे का भुगतान, जांच रिपोर्ट में खुलासा
डिजिटल डेस्क, शहडोल। कोतमा में हाईवे निर्माण के लिए अधिग्रहित की गई भूमि में किसानों में मुआवजा वितरण नहीं करने में तत्कालीन एसडीएम के साथ-साथ एमपीआरडीसी के परियोजना प्रबंधक ने भी गड़बड़ी की। कमिश्नर द्वारा की गई जांच में मुआवजा भुगतान न होने के पीछे कमीशन की बात भी सामने आई है। कमिश्नर ने जांच रिपोर्ट शासन को भेज दी है। इसमें एमपीआरडीसी के परियोजना प्रबंधक अवधेश तिवारी पर कार्रवाई प्रस्तावित की गई है।
जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रभावित भू-स्वामियों/व्यक्तियों की भूमि व परिसंपत्ति जो भू अर्जन में छूट गए थे। आपसी सहमति क्रय नीति अंतर्गत सड़क परिवहन व राजमार्ग मंत्रालय के पक्ष में रजिस्ट्री कराने के लिए परियोजना प्रबंधक अवधेश तिवारी को अधिकृत किया गया था। मुआवजा भुगतान व भूमि की रजिस्ट्री की कार्रवाई एक साथ की जानी थी, लेकिन संबंधित भू-स्वामियों को सूचित कर मुआवजा भुगतान नहीं कराया गया।
मुख्यमंत्री ने दिए थे जांच के निर्देश
कोतमा जिला अनूपपुर के प्रभावित किसानों द्वारा इसकी शिकायत शासन स्तर से की गई थी। १८ जनवरी को आयोजित समाधान ऑनलाइन में इसकी समीक्षा मुख्यमंत्री शिवराज ङ्क्षसह चौहान द्वारा की गई थी। इसमें कोतमा के तत्कालीन एसडीएम मिलिंद नागदेवे को निलंबित कर दिया गया। साथ ही पूरे मामले की जांच कमिश्नर शहडोल संभाग राजीव शर्मा को सौंपी गई थी। कमिश्नर ने २४ जनवरी से मामले की जांच शुरू की थी। प्रभावित किसानों, राजस्व अधिकारियों व एमपीआरडीसी के अधिकारियों के बयान दर्ज किए गए थे। एमपीआरडीसी के परियोजना प्रबंधक अवधेश तिवारी ने २८ जनवरी और ३१ जनवरी को अपना कथन दर्ज कराया था। इसमें उन्होंने स्वीकार किया है कि उनके द्वारा लिखित रूप से संबंधित हितग्राहियों को मुआवजा प्राप्त करने के लिए अवगत नहीं कराया गया।
जांच रिपोर्ट के बिंदु
लिखित रूप से सूचित नहीं किया
जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि कुल छह गांवों के ३६ प्रभावितों के भू अर्जन एवं शासकीय भूमियों पर स्थित परिसंपत्तियों का २ करोड़ २१ लाख २३ हजार ६५१ रुपए मुआवजा निर्धारण कर एसडीएम ने कार्रवाई के लिए एमपीआरडीसी शहडोल को भेजा था। इनमें से १० की रजिस्ट्री करानी थी, जबकि १५ व्यक्ति जिनकी परिसंपत्ति शासकीय भूमि में थी, उनको सिर्फ मुआवजा देना था। लेकिन ऐसा नहंीं किया गया। जब पता है कि जारी चेक के आधार पर ही भूमि की रजिस्ट्री की कार्रवाई होती है तो परियोजना प्रबंधक को चाहिए था कि संबंधित भूस्वामियों को लिखित रूप से सूचित कर मुआवजा प्राप्त करने और भूमि की रजिस्ट्री के लिए तिथि निर्धारित किया जाना था। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया।
१० फीसदी कमीशन का आरोप
जांच रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि शिकायतकर्ता ज्ञान सिंह का कथन है कि प्रोजेक्ट मैनेजर अवधेश तिवारी को कई बार शिकायत की गई। इस पर उनके द्वारा प्रत्येक व्यक्तियों से मुआवजे का १० प्रतिशत कमीशन की मांग की गई। मना करने पर मुआवजे का भुगतान नहीं किया गया। इसी तरह हिमांशु अग्रवाल का भी कथन है कि अवधेश तिवारी द्वारा १० प्रतिशत कमीशन की रकम अदायगी के बाद रजिस्ट्री कराने की बात कही गई थी। जिन दो लोगों ने कमीशन दे दिया, उनकी रजिस्ट्री करा दी गई। हम लोगों ने कमीशन नहीं दिया तो हमारा भुगतान नहीं किया गया। यह गंभीर आरोप हैं। परियोजना प्रबंधक द्वारा अपने पदीय दायित्वों के निर्वहन में घोर लापरवाही बरती गई है। इसके लिए उन्हें तत्काल प्रभाव से निलंबित किया जाना उचित होगा।
एमपीआरडीसी के प्रबंध संचालक को लिखा पत्र
कमिश्नर राजीव शर्मा ने एमपीआरडीसी के प्रबंध संचालक को भी परियोजना प्रबंधक अवधेश तिवारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए पत्र लिखा है। इसमें कहा गया है कि मामले की प्रारंभिक जांच में एमपीआरडीसी के परियोजना प्रबंधक अवधेश तिवारी भी दोषी पाए गए हैं। उनके खिलाफ गंभीर आरोप प्रमाणित पाए गए हैं। अवधेश तिवारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई किया जाना प्रस्तावित है। यह पत्र ८ फरवरी को भेजा गया था।
यह है पूरा मामला
राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक ७८ (नवीन क्रमांक ४३) शहडोल-अनूपपुर-कोतमा से मप्र-छत्तीसगढ़ बॉर्डर तक मार्ग पैकेज ३ के निर्माण के लिए किसानों की भूमि अधिग्रहित की गई थी। इसमें ग्राम कोतमा, कल्याणपुर, बुढ़ानपुर, बेलिया छोट, रेउंदा व डोला के ग्राम सम्मलित थे। कुल १२ भू-स्वामियों की रजिस्ट्री कराई जानी थी, लेकिन दो भू-स्वामियों अजीमुद्दीन एवं अश्विनी कुमार त्रिपाठी की रजिस्ट्री अवधेश तिवारी द्वारा कराई गई और राशि का भुगतान भी करा दिया गया। अन्य किसानों की नहीं। इसी तरह २४ लोगों की शासकीय भूमियों पर स्थित परिसंपत्तियों की मुआवजा राशि का भुगतान किया जाना था। इनमें से ९ लोगों को शासकीय भूमियों पर स्थित परिसंपत्तियों का भुगतान किया गया।