राज्यपाल श्री लालजी टण्डन के अवसान पर मध्यप्रदेश में पांच दिन का राजकीय शोक मुख्यमंत्री चौहान और मंत्रिमंडल ने दी श्रद्धांजलि

राज्यपाल श्री लालजी टण्डन के अवसान पर मध्यप्रदेश में पांच दिन का राजकीय शोक मुख्यमंत्री चौहान और मंत्रिमंडल ने दी श्रद्धांजलि

Bhaskar Hindi
Update: 2020-07-22 08:59 GMT
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डिजिटल डेस्क, भिण्ड। भिण्ड राज्यपाल श्री लालजी टण्डन के अवसान पर प्रदेश में पांच दिन 21 से 25 जुलाई तक राजकीय शोक घोषित किया गया है। आज मंगलवार समस्त शासकीय कार्यालय बंद रहेंगे। मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने मंत्रिपरिषद बैठक में यह जानकारी देते हुए बताया कि राज्यपाल श्री टण्डन के अवसान पर शोक स्वरूप आज की मंत्रिपरिषद बैठक में अन्य विषयों पर चर्चा न कर स्थगित की गई है। मंत्रिपरिषद की बैठक 22 जुलाई को होगी। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने बताया कि प्रदेश में राष्ट्र ध्वज झुके रहेंगे। राजकीय शोक की अवधि में प्रदेश में मनोरंजन के कोई कार्यक्रम आयोजित नहीं होंगे। इस संबंध में सभी जिलों को निर्देश भेजे जा रहे हैं। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने बताया कि वे मध्यप्रदेश की जनता की ओर से दिवंगत श्री टण्डन को श्रद्धांजलि देने के लिए लखनऊ जा रहे हैं। इस अवसर पर समस्त मंत्रिपरिषद ने खड़े होकर दो मिनिट का मौन धारण कर राज्यपाल श्री टण्डन को श्रद्धांजलि दी। आजीवन राष्ट्र की सेवा की स्व. श्री लालजी टंडन नेरू मुख्यमंत्री श्री चौहान मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि राज्यपाल श्रद्धेय श्री लालजी टंडन के अवसान का दुरूखद समाचार आज प्रातः मिला। वे जीवनभर राष्ट्र सेवा में संलग्न रहे। उनका योगदान सदैव याद किया जायेगा।श्री टंडन सार्वजनिक जीवन में शुचिता के प्रतीक थे। मध्यप्रदेश में राज्यपाल के रूप में उन्होंने हमेशा जनहित में मार्गदर्शन और प्रेरणा दी। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में प्रदेश में उनके सुझाए नवाचार को हम सबने देखा है। उन्होंने राजभवन में न सिर्फ गौशाला का संचालन करवाया,बल्कि वे स्वयं यह कहते भी थे कि मैं इस प्रयोग को सफल करके बताऊंगा। वे आने वाले प्रत्येक अतिथि का हृदय से सत्कार करते थे। राजनीति में आपसी सौहार्द और संबंधों को हमेशा उन्होंने वरीयता दी। हमेशा उनकी सोच यही थी कि राजनीति सेवा का माध्यम है। दल कोई भी हो लेकिन सभी को मिलजुल कर राष्ट्र की सेवा करना चाहिए। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि 12 अप्रैल 1935 को जन्मे श्री लाल जी टंडन ने सात दशकों की सुदीर्घ समाज सेवा का सार्वजनिक जीवन बड़ी जीवंतता से जीया। उन्होंने समाज के सभी वर्गों से गहरा तादात्म्य स्थापित किया। सबको साथ लेकर चलने और अजातशत्रु रहकर समाजहित में कार्य करने की अटूट आत्मशक्ति उनके व्यक्तित्व में समाहित थी। निरंतर क्रियाशील रहने के कारण ही जन कल्याणकारी कार्यों की बड़ी लम्बी श्रृखंला उनके खाते में है। वे उन चंद जन नेताओं में रहे। जिन्होंने राष्ट्र सेवा और नैतिक मूल्यों की साधना राजनीति के माध्यम से की और अन्त्योदय की भारतीय अवधारणा को साकार किया। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि सार्वजनिक जीवन की ऐसी उदात्त, व्यापक और तपी हुई पृष्ठभूमि के साथ विधान परिषद में जब वर्ष 1978 में टंडन जी पहुँचे थे तो वहॉं भी उन्होंने अपनी छाप छोड़ी और संसदीय मर्यादाओं को नयी ऊॅंचाइयॉं दी। उत्तरप्रदेश विधान परिषद के दो बार सदस्य रहने के अलावा उन्होंने वहॉँ नेता सदन की भी भूमिका निभायी। विधान सभा के लिए तीन बार चुने गये। वहॉं नेता प्रतिपक्ष की भूमिका में उन्होंने बताया कि विरोध के स्वर कैसे होने चाहिए और शालीन रहकर भी सरकार को जन-आवाज सुनने के लिए किस प्रकार बाध्य किया जा सकता है। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि उत्तरप्रदेश के वरिष्ठ मंत्री के रूप में तो टंडन जी का हर कदम प्रगति की एक नयी दास्तान बनता चला गया और नये-नये कीर्तिमान रचे जाने लगे। पांच बार मंत्री के रूप में पदभार ग्रहण करने के साथ उन्होंने उर्जा, आवास, नगर विकास, जल संसाधन जैसे भारी भरकम विभाग संभाले। अपने प्रशासनिक कौशल, दूरदृष्टि और दृढ़संकल्प से टंडन जी ने उत्तरप्रदेश के करोड़ों नागरिकों को सीधा लाभ पहुंचाया। इन विभागों की दशा और दिशा बदल दी। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि मंत्री के रूप में श्री टंडन द्वारा किये गये सुधार और बदलाव अविस्मरणीय है। अन्त्योदय की भारतीय अवधारणा को साकार करने के लिए दबे-कुचले और वंचित वर्ग के लिए उस समय जो योजनाएं टंडन जी के नेतृत्व में बनायी गयीं, वे राष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसित हुईं। पांच रूपये, दस रूपये और पंद्रह रूपये रोज पर दबे-कुचले तबके को मकान का मालिकाना हक दिलाने की स्वप्निल योजना उन्होंने साकार की थी। यही नहीं आवास के साथ एक फलदार वृक्ष और एक दुधारू पशु देने की योजना टंडन जी की बहुआयामी सोच का परिणाम थी। उन्होंने गरीबी-उन्मूलन के लिए बड़े पैमाने पर जमीनी कार्य हुए। सामुदायिक केंद्र बने, रैन बसेरे बने, मलिन बस्तियों का कायाकल्प हुआ। मथुरा-वृंदावन की खारे पानी की बड़ी समस्या क

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