लोकसभा चुनाव 2024: भाजपा की सबसे सेफ सीट, 35 साल से नहीं जीत पाई कांग्रेस, जानिए भिंड लोकसभा सीट का चुनावी इतिहास

  • बीजेपी ने मौजूदा सांसद संध्या राय को मैदान में उतारा
  • कांग्रेस से वरिष्ठ नेता फूल सिंह बरैया प्रत्याशी घोषित हुए
  • लोकसभा चुनाव 2024 का चुनावी रण

Bhaskar Hindi
Update: 2024-03-19 13:12 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। मध्यप्रदेश की 29 लोकसभा सीटों में शुमार भिंड-दतिया लोकसभा सीट भाजपा की सबसे सुरक्षित सीटों में से एक मानी जाती है। भिंड सीट भाजपा का एक मजबूत गढ़ है। भाजपा भिंड सीट पर अपना प्रत्याशी बदले या न बदले, पार्टी फिर भी चुनाव जीतने में सफल रहती है। एक बार तो भाजपा ने भिंड सीट से कांग्रेस के हारे हुए प्रत्याशी को टिकट दे दिया था तो वह भी चुनाव जीत गया था। एक वक्त पर कांग्रेस पार्टी का गढ़ कही जाने वाली भिंड सीट पर कांग्रेस पिछले 35 सालों से हार का मुंह देख रही है। वर्तमान में भाजपा की वरिष्ठ नेता व प्रदेश उपाध्यक्ष संध्या राय भिंड से सांसद हैं। आज हम आपको भिंड लोकसभा सीट के चुनावी इतिहास के बारे में बताएंगे

भिंड लोकसभा सीट का चुनावी इतिहास

आजादी के 15 साल बाद भिंड में पहले आम चुनाव संपन्न हुए। पहले आम चुनाव में कांग्रेस पार्टी को जीत मिली और सूरज प्रसाद सांसद बने। 1967 में कांग्रेस पार्टी को जनसंघ के हाथों हार का सामना करना पड़ा। इस बार जनसंघ के प्रत्याशी वाई एस कुशवाहा सांसद बने। 1971 में भी जनसंघ ने अपनी जीत बरकरार रखी और राजमाता विजया राजे सिंधिया सांसद बनीं। आपातकाल हटने के बाद साल 1977 में लोकसभा चुनाव हुए, जिसमें भारतीय लोकदल को जीत मिली और रघुबीर सिंह सांसद बने। तीन साल बाद 1980 में फिर से लोकसभा के चुनाव हुए, जिसमें कांग्रेस ने वापसी की। इस बार कालीचरण शर्मा निर्वाचित हुए। 1984 में कृष्ण सिंह सांसद बने। 1989 में भारतीय जनता पार्टी की एंट्री हुई और नरसिंह राव दीक्षित सांसद बने। 1989 के बाद भाजपा ने लगातार 8 आम चुनाव साल 1991, 1996, 1998, 1999, 2004, 2009, 2014 और 2019 में जीत दर्ज की। वर्तमान में भिंड सीट से भाजपा की प्रत्याशी संध्या राय सांसद हैं। भाजपा ने जनता के विश्वास और विकास को देखते हुए मौजूदा सांसद संध्या सुमन राय पर ही भरोसा जताया है। पार्टी ने उन्हें प्रत्याशी घोषित किया है। कांग्रेस ने दिग्गज नेता व भांडेर से विधायक फूल सिंह बरैया को उम्मीदवार घोषित किया है। बरैया की गिनती वरिष्ठ नेताओं में होती है। 

पिछले चुनाव का रिजल्ट?

साल 2019 के पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने मुरैना निवासी संध्या सुमन राय को भिंड-दतिया सीट से चुनावी मैदान में उतारा था। इससे पहले राय 2003 से 2008 तक दिमनी विधानसभा सीट से विधायक रही थी। दस साल बाद राय को पार्टी ने भिण्ड दतिया लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया, तब  संध्या राय के सामने कांग्रेस पार्टी ने राहुल गांधी के करीबी देवाशीष जरारिया को चुनावी मैदान में उतारा था। जिसमें जरारिया को हार का सामना करना पड़ा था।  भाजपा की संध्या राय ने कांग्रेस के जरारिया को करबी दो लाख वोटों से हराया था।  इस दौरान भाजपा को कुल 5 लाख 27 हजार 694 वोट मिले। वहीं, कांग्रेस पार्टी को 3 लाख 27 हजार 809 वोट मिले। सांसद रहते हुए राय ने शहर में भिंड-अटेर क्रासिंग, सोनी, रायतपुरा -साैंधा के पास ओवरब्रिज की मंजूरी दिलाने के साथ इटावा-ग्वालियर तक मैमो ट्रेन की मंजूरी दिलाने सहित इटावा-ग्वालियर हाइवे को फोरलेन की मंजूरी दिलाने में कामयाब रही। कार्यकर्ताओं के साथ मतदाताओं के बीच सांसद राय की छवि साफ एवं स्वच्छ है। यहीं मुख्य वजह रही की पार्टी ने उन पर पुन: भरोसा जताया है। संध्या राय को बीजेपी के दिग्गज नेता नरेंद्र सिंह तोमर का करीबी माना जाता है।

राजमाता जीतीं, वसुंधरा हारीं

भिंड-दतिया लोकसभा सीट के सियासी इतिहास का एक रोचक किस्सा है। साल 1971 में भिंड संसदीय क्षेत्र से विजयाराजे सिंधिया सांसद चुनी गईं थी। लेकिन जब 1984 में सिंधिया राजपरिवार की बेटी वसुंधरा राजे को भिंड सीट से मैदान में उतारा गया तो वह चुनाव हार गईं। खास बात तो यह थी यह वसुंधरा राजे का पहला चुनाव था। वसुंधरा को कांग्रेस प्रत्याशी कृष्ण सिंह जूदेव ने हराया था। दिलचस्प बात तो यह थी कि कृष्ण सिंह जूदेव को सिंधिया परिवार के ही नेता माधवराव सिंधिया राजनीति में लाए थे।

35 साल से नहीं जीती कांग्रेस

साल 1984 के आम चुनाव में आखिरी बार कांग्रेस पार्टी ने भिंड-दतिया सीट जीती थी। 1989 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता नरसिंह राव दीक्षित भाजपा में शामिल हो गए। जिसके बाद से कांग्रेस का मजबूत किला ध्वस्त हो गया। खास बात तो यह थी भाजपा से पहले सांसद बने नरसिंह राव वही नेता थे जो कांग्रेस के टिकट पर पहले चुनाव हार चुके थे। भिण्ड दतिया लोकसभा सीट की सीमाएं उत्तरप्रदेश से सटे होने के कारण चुनावी रंग में यहां बहुजन समाज पार्टी का प्रभाव भी अधिक देखने को मिलता है। 2003 से पहले बरैया बीएसपी के प्रदेशाध्यक्ष भी रह चुके है। एससी वोटर्स पर उनकी पकड़ मजबूत है।

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