30 करोड़ की राशि लेने के बाद आवास के नाम पर महज पिलर ही दे रहे दिखाई
अफसरों ने बंद की आंख 30 करोड़ की राशि लेने के बाद आवास के नाम पर महज पिलर ही दे रहे दिखाई
डिजिटल डेस्क, कटनी। बिलहरी मोड़ में सामूहिक आवास योजना बीच में ही डूबने की कगार पर पहुंच गई है। जिससे चलते शहर के 1512 हितग्राहियों के पक्के आवास का सपना पूरा होते हुए नहीं दिखाई दे रहा है। 117 करोड़ रुपए की लागत से यहां पर आवास का काम वर्ष 2017 में प्रारंभ हुआ। नगर निगम और ठेकेदार के बीच अनुबंध के मुताबिक 18 माह के अंदर आवास का काम हो जाना था। इसके बावजूद पांच वर्ष बाद भी आवास का काम पूरा नहीं हुआ है। आवास के नाम से पिलर ही पूरे मैदान में दिखाई दे रहे हैं। लापरवाही का आलम यह है कि पिछले एक वर्ष से तो भोपाल का ठेकेदार बोरिया -बिस्तर भी समेट कर चला गया है। इसके एवज में 30 करोड़ का भुगतान ठेकेदार को हो चुका है।
योजना पर एक नजर-
झिंझरी में 1512 आवासों का निर्माण होना था। यहां पर ईडब्ल्यूएस के 792, जिसमें एलआइजी के 384, एमआइजी के 336 फ्लैट बनने थे। 113.05 करोड़ की टेंडर लागत व एग्रीमेंट लागत 117.46 करोड़ रुपये तय की गई थी। 30 नवंबर 2017 से यहां पर काम की शुरुआत हुई। ठेकेदार को 18 माह में काम पूरा करना था। पांच वर्ष बीतने के बाद अभी 60 फीसदी भी काम बचा हुआ है। ठेकेदार तीन साल से काम बंद किए हुए है। इसके बावजूद अफसर किसी तरह की कार्यवाही नहीं कर पा रहे हैं।
हितग्राहियों ने जमा किए थे रुपए
मजेदार बात तो यह रही कि दो वर्ष पहले नगर निगम ने झिंझरी में चकाचक आवास का ढिंढोरा पीटते हुए अधूरे आवासों के लिए ही राशि तय कर दी थी। बहकावे में गरीब तबके के लोग आए। जिन्होंने बुकिंग के लिए 20-20 हजार रुपए की राशि उधार में लेकर जमा करा दी। छह माह बाद भी जब उनकी किसी तरह की सुनवाई नहीं हुई तो वे नगर निगम पहुंचने लगे। बाद में कुछ हितग्राहियों को प्रेमनगर में ईडब्लूएस का आवास आवंटित किया गया। अभी भी कई हितग्राही ऐसे हैं। जिनकी राशि नगर निगम में फंसी हुई है।
विवादों के बाद भी कार्यवाही नहीं
आवास में सुस्त गति के निर्माण का मामला जबलपुर से लेकर भोपाल तक छाया रहा। इसके बावजूद अफसरों ने किसी तरह की कार्यवाही नहीं की। यहां तक की गुणवत्ता को भी लेकर इसकी शिकायत की गई। जबलपुर के अधिकारी भी जांच के लिए आए, लेकिन जांच में क्या मिला। यह बात महज जांच टीम के अधिकारी ही जानते हैं। बताया जाता है कि उक्त ठेकेदार की राजनैतिक पहुंच के कारण अफसर कार्यवाही करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं।