विदर्भ में अन्नदाता सो रहे मौत की नींद, फिर भी सरकार की नहीं खुल रही आंखें

यवतमाल विदर्भ में अन्नदाता सो रहे मौत की नींद, फिर भी सरकार की नहीं खुल रही आंखें

Bhaskar Hindi
Update: 2022-09-05 15:54 GMT
विदर्भ में अन्नदाता सो रहे मौत की नींद, फिर भी सरकार की नहीं खुल रही आंखें

डिजिटल डेस्क, यवतमाल। विदर्भ में एक बार फिर किसान आत्महत्या की घटनाओं में इजाफा हो गया है। मात्र आठ माह में करीब पिछले 1036 किसान मौत को गले लगा चुके हैं जो पिछले पच्चीस साल में सबसे बड़ा आंकड़ा है। उसमें भी किसान आत्महत्या के लिए हमेशा से सुर्खियों में छाए रहनेवाले विदर्भ में मात्र 7 दिन में 16 जबकि पिछले 30 दिनों में 40 किसान खुदकुशी कर चुके हैं। अकेले मारेगांव तहसील में बीते 48 घंटे में 6 किसान मौत को गले लगा चुके हैं। 

वसंतराव नाईक किसान स्वावलंबन मिशन के अध्यक्ष किशोर तिवारी ने यह आंकड़े जारी किए हैं। बढ़ती किसान आत्महत्याओं के मद्देनजर उन्होंने एक पंचसूत्री कार्यक्रम बनाया है जिसे केंद्र और राज्य सरकार को सौंपते हुए उस पर शीघ्र अमल करने की मांग की है। साथ ही उन्होंने विदर्भ में पिछले सात दिनों में हुई १८ किसानों की आत्महत्या की सूची ही सरकार को प्रेषित की है। उन्होंने इस संबंध में एक विज्ञप्ति जारी कर जानकारी दी है कि, विदर्भ में बीते 8 माह में 1036 किसान आत्महत्याएं हुुई हैं और इससे पूर्व सर्वाधिक किसान आत्महत्याएं वर्ष 2006 में हुई थीं। तब 1231 किसानों ने आर्थिक कठिनाइयों से त्रस्त होकर मौत को गले लगाया था। वर्ष 2022 में यह आंकड़ा बढ़ने के संकेत दिखाई दे रहे हैं। जुलाई माह में हुई अतिवृष्टि से किसानों की फसलें चौपट हो गईंं जिसकी वजह से उत्पादन में कमी आना लगभग तय है। किसानों की बढ़ती आत्महत्या के लिए प्रशासन की गलत नीतियां और सरकार की उदासीनता जिम्मेदार होने का आरोप तिवारी ने लगाया है। 

उन्होंने बताया कि, राज्य के कृषिमंत्री अब्दुल सत्तार विदर्भ के दौरे पर आए, दौरा किया, सहायता का आश्वासन दिया लेकिन अब तक सहायता का कहीं अता-पता नहीं है। सरकार ने प्रति हेक्टेयर 13 हजार 200 रु. मुआवजा देने की घोषणा की है मगर इसमें से एक पाई भी किसानों को नहीं मिल पायी है। यहां तक कि कर्जमाफी का भी लाभ उन्हें नहीं मिल पाया। देहात में अनाज, स्वास्थ्य, शिक्षा, सुरक्षा नहीं मिलने की अनेक शिकायतें हैं। गांव के कृषि सहायक, पटवारी, ग्रामसेवक, स्वास्थ्य सेवक यहां तक कि स्कूल के अध्यापक तक मुख्यालय में नहीं रहते। कुछ कर्मचारी तो ऐसे भी हैं जो गांव में सिर्फ एक या दो दिन ही आते हैं। स्वंय ग्रामीणों ने यह जानकारी तिवारी को दी हैै। 

सात दिनों में यह किसान कर चुके हैं खुदकुशी 

१.अंगद आड़े (वरुड जहांगीर, जि. यवतमाल) 
२. विलास जांभुलकर (पाटा पांगरा, जि. यवतमाल) 
3. संतोष चव्हाण (चिल्ली, महागांव, जि. यवतमाल) 
4. विनायक दुधे (नेर, जि. यवतमाल) 
5. पुंडलिक रुयारकर (गदाजी बोरी, त.मारेगांव, जि. यवतमाल) 
6. सतीश वासुदेव बोथाले (म्हैस दोड़का, त.मारेगांव, जि. यवतमाल) 
7. गजानन नारायण मुसले (नरसला, त.मारेगांव, जि. यवतमाल) 
8. सचिन सुभाष बोधेकर (रामेश्वर, त.मारेगांव, जि. यवतमाल) 
9. हरिदास सूर्यभान टोंपे (शिवानी धोबे, त.मारेगांव, जि. यवतमाल) 
10. तोताराम अंगद चिचुलकर (दंडगांव, त.मारेगांव, जि. यवतमाल) 
11. अनिल ठाकरे (लाकुड, त.धारणी, जि. अमरावती)
12. शिवदास वानखेड़े (उदखेड़, जि. अमरावती)
13. प्रह्लाद दमाहे  (नवेगांव, जि. गोंदिया) 
14. गिरधारी भंडारकर (सड़क अर्जुनी, जि. गोंदिया) 
15. जियालाल राऊत पारडी, त.लाखांदुर, जि. भंडारा)
16. अजय टोपे (मलपांडी, त.एटापल्ली, जि. गड़चिरोली) 
17. विजय रोकड़े (नवेगांव पेठ, चिमूर, जि. चंद्रपुर)
18. गजानन जाधव (अंजनगांव, आर्वी, जि. वर्धा)

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