स्वागत है मेहमानों: पंछी दरिया पवन के झोंके, कोई सरहद ना इन्हें रोके...विदेशी कोयल को भा गई संतरानगरी
- विदेशी मे साइबेरिया, मंगोलिया, हिमालय की तलहटी सहित युरोपियन बेल्ट से आए मेहमान
- विदेशी कोयल को फिर भाया विदर्भ
- रेड क्रेस्टेड पोचार्ड, लेसर विस्टलिंग डग जैले परिंदे भरते हैं उड़ान
डिजिटल डेस्क, नागपुर. ठंड की तरह बारिश में भी उपराजधानी में विदेशी पक्षी आते हैं। इस बार भी बारिश के होते ही हिमालय की तलहटी से पक्षियों का यहां आना शुरू हो गया है। खासकर 5 से 6 प्रजाति की कोयल हैं, जो यहां खाने की तलाश में आती हैं। इस दौरान दूसरे पक्षियों के घरौंदों में अंडे देती हैं। पक्षी विशेषज्ञों के लिए यह आकर्षण का केन्द्र बन गए हैं। विदेशी पक्षियों को संतरानगरी खूब भा रही है। यहां 50 से ज्यादा तालाब और गोरेवाड़ा, अंबाझरी, फुटाला, सेमिनरी हिल्स जैसे हरेभरे इलाके एरिया में इन विदेशी पक्षियों को आनंद आ रहा है। यही कारण है कि ठंड और ग्रीष्म में यहां कई विदेशी पक्षी दस्तक देते हैं, लेकिन बारिश में भी विदेशी पक्षियों की आमद से महानगर अछुता नहीं है। इन दिनों भी 5 से 6 प्रकार की कोयल यहां नजर आती हैं। इन दिनों प्राइड क्रेस्टेड कुकू, कॉमन हॉग कुकू, ड्रोगो कुकू, फेन्टीव कुकू जैसी 6 प्रजातियां देखी जा सकती है। कई पक्षी प्रेमी यहां नई प्रजातियों की जानकारी जुटा रहा होते हैं।
पक्षी विशेषज्ञ अविनाश लोंढे ने बताया कि अभी महानगर में 6 प्रजातियों की विदेशी कोयल आई हैं। जो अक्टूबर के आखिर तक लौट जाएंगी। पक्षी इन दिनों खाने और दूसरे पक्षियों के घोंसले में अंडे देने के लिए आते हैं।
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क्यों आते हैं
पक्षी विशेषज्ञों के अनुसार यह सारे पक्षी साइबेरिया, मंगोलिया, हिमालय की तलहटी सहित युरोपियन बेल्ट से आते हैं। इस वक्त यहां बहुंत ज्यादा ठंड होती है। जिसके कारण कोयलों को खाना नहीं मिलता है। इन्हें बारिश में प्रजनन कर अंडे देने होते हैं। ऐसे में वह दूसरे पक्षियों के घोसलों में अंडे देते हैं। अगस्त में दस्तक देने के बाद यहां कुल चार महीने तक रहते हैं। अक्टूबर के आखरी में यहां से लौट जाते हैं। इसके बाद ठंड में भी विदेशी पक्षियों का आगमन होता है।
ठंड में यह पक्षी आते हैं
रेड क्रेस्टेड पोचार्ड, लेसर विस्टलिंग डग, बार हेडेड गीज, रुडी शेलडक, ग्रेलेग गीस, नॉरदन पीन्टल, टफडेड डक, कॉमन पोचार्ड, गार्गनेय, युराशियन विजन, गाडवाल, नॉरदन शॉवेलर जैसे विदेशी पक्षी इन दिनों विभिन्न तालाबों पर देखने मिल रहे हैं। फरवरी माह के दूसरे सप्ताह तक रहते हैं।