मार्डन इलाज: आधुनिक कार-टी-सेल थेरेपी कैंसर पीड़ितों के लिए आशा की नई किरण

  • 3 दिन में शुरू हो सकेगा कैंसर पीड़ित मरीजों का इलाज
  • कैंसर के 99 फीसदी मामलों में कारगर साबित होगी
  • आधुनिक एलोजेनिक कार-टी-सेल थेरेपी

Bhaskar Hindi
Update: 2024-07-29 12:46 GMT

डिजिटल डेस्क, मुंबई। रांची के रवि प्रकाश बीते चार वर्षों से लंग कैंसर से जूझ रहे हैं। हालात यह है कि कैंसर माथे तक पहुंच गया है। फेफड़े के कैंसर के चौथे चरण से पीड़ित रवि के लिए अब आधुनिक एलोजेनिक कार-टी-सेल थेरेपी आशा की किरण बनकर आई है। कैंसर के उपचार में एक नई क्रांति साबित हो रही एलोजेनिक कार-टी-सेल थेरेपी अभी तक सिर्फ विदेशों में ही उपलब्ध थी। लेकिन अब यह भारत में भी उपलब्ध हो गई है। कार-टी-सेल थेरेपी की नई तकनीक से इलाज कराने वाले कैंसर सर्वाइवर रवि प्रकाश सातवें मरीज हैं। बीते गुरुवार को इन्हें इस थेरेपी का पहला डोज ठाणे के एक निजी अस्पताल में दिया गया।

एलोजेनिक कार-टी-सेल थेरेपी कैंसर के इलाज की अत्याधुनिक तकनीक है। अभी तक इस थेरेपी के लिए कैंसर मरीज विदेशों में जाते थे। जिस पर करोड़ों रुपए खर्च आता था। लेकिन अब यह सुविधा देश में उपलब्ध है, वह भी रियायती दर में। इस सुविधा को उपलब्ध करानेवाले डॉ. विजय पाटील ने बताया कि यह थेरेपी सभी कैंसर मरीजों के लिए आशा की किरण बनकर आई है। उन्होंने बताया कि अभी तक इस थेरेपी से सात कैंसर मरीजों का इलाज किया गया है, जिनमें सकारात्मक परिणाम दिखाई देने लगा है।

क्या है एलोजेनिक कार-टी-सेल थेरेपी

डॉ. विजय पाटील ने बताया कि कार-टी-सेल थेरेपी का इस्तेमाल तब किया जाता है जब केमोथेरेपी, रेडिएशन आदि से कैंसर मरीजों को राहत नहीं मिलती है। उन्होंने बताया कि कई अस्पतालों में ऑटोलॉग्स कार-टी-सेल थेरेपी का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसमें पेशेंट का खून लेकर उसे 30 दिनों तक कैंसर के खिलाफ जेनेटिकली मॉडिफाई किया जाता है। फिर उसे कैंसर मरीज को दिया जाता है। लेकिन एलोजेनिक कार-टी-सेल थेरेपी में एक सामान्य इंसान से खून लेकर उसे कैंसर के खिलाफ जेनेटिकली मॉडिफाई कर तैयार रखा जाता है और मरीज को जब इसकी जरूरत पड़ती है तब उसे दिया जाता है। डॉ. विजय ने बताया कि ऑटोलॉग्स कार-टी-सेल थेरेपी का इस्तेमाल सिर्फ एक फीसदी कैंसर के मामलों में ही होता है। जबकि एलोजेनिक कार-टी-सेल थेरेपी का इस्तेमाल 99 फीसदी कैंसर के मामलों में किया जा सकता है।

समय के साथ पैसे की भी बचत

डॉक्टर के मुताबिक ऑटोलॉग्स कार-टी-सेल थेरेपी के लिए मरीज को कम से कम एक महीने इंतजार करना पड़ता है लेकिन एलोजेनिक में महज तीन दिन में ही उपचार प्रक्रिया शुरू की जा सकती है। इसके अलावा एलोजेनिक थेरेपी का खर्च विदेशों में 4 से 5 करोड़ रुपए आता है जबकि देश में इसके लिए सिर्फ 40 से 42 लाख रुपए खर्च आता है।

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