नागपुर: डाउन सिंड्रोम पीड़ित बेटे को काबिल बनाया, स्वयं काम कर सके कला को दी नई पहचान
- पीड़ित बच्चों के लिए काम करती हैं गोखले
- बेटे को भी कला से परिचित कराया
- 55 साल में पांच हजार से अधिक कलाकृति
डिजिटल डेस्क, नागपुर. समर्थ नगर में रहने वाली 83 वर्षीय निश्चिंता गोखले ने अपने ‘डाउन सिंड्रोम’ से पीड़ित बच्चे के लिए कलाकृति की एक अनोखी दुनिया बनाई है। उन्होंने कला को नई पहचान दी है। वह इस कला के जरिए वर्षों से पीड़ित 50 वर्षीय बेटे अविनाश गोखले से संवाद करती हैं, उसे भी इसमें व्यस्त रखती हैं और इस काबिल बना दिया है कि स्वयं के काम वह कर सके। कला और अपने बेटे के प्रति प्रेम को देखते हुए इस उम्र में भी वह अथक रूप से कलात्मक रचनाएं करती हैं। उनकी इस कला को कई बार शहर की प्रदर्शनी में प्रस्तुत किया जाता है और हर साल उन्हें पुणे में आर्ट एक्जीबिशन वर्कशॉप के लिए आमंत्रित किया जाता है।
गार्डनिंग का भी शौक
निश्चिंता गोखले को बचपन से ही रंगोली, हस्तशिल्प और पेंटिंग में रुचि थी। उन्होंने युवावस्था में ही पेंटिंग, कोलाज और विभिन्न कलाकृति बनाने की शुरुआत की। बेकार पड़े सामानों से कोलाज बनाकर ‘वेस्ट से बेस्ट' आकर्षक वस्तुएं बनाईं। उन्होंने न केवल अपने समय का सदुपयोग किया, बल्कि उससे मिलने वाले पैसो से डाउन सिंड्रोम से पीड़ित स्पेशल बच्चों के लिए बनी संस्थाओं को जरूरी सामग्री उपलब्ध कराकर अपनी सामाजिक प्रतिबद्धता भी कायम रखी। निश्चिंता गोखले के पिता उस समय सरकारी अस्पताल में डॉक्टर के पद पर कार्यरत थे। इसलिए उनका बचपन ग्रामीण क्षेत्रों में बीता। वे वहां की प्रकृति का हिस्सा बन गईं। इसलिए वह आज भी गार्डनिंग का शौक रखती हैं।
55 साल में पांच हजार से अधिक कलाकृति
निश्चिंता प्राकृतिक सौंदर्य से घिरे बगीचों से हरे पत्ते और फूल एकत्र करती हैं और फूल-पत्तियों को सुखाकर सफेद कागज पर फेविकोल और ब्रश की मदद से आकर्षक रेखीय चित्र बनाती हैं। इस काम में डाउन सिंड्रोम से पीड़ित उनका बेटा अविनाश भी मदद करता है। गोखले अब तक कोलाज के माध्यम से लैंडस्केप, गिफ्ट कार्ड, पत्र, गिफ्ट पैक, लिफाफे, गुलदस्ते, जानवरों की तस्वीरें, फोटो फ्रेम और अन्य सामान बना चुकी हैं। उन्होंने पिछले 55 वर्षों में पांच हजार से अधिक पेंटिंग बनाई हैं। पुणे के एम्प्रेस गार्डन में हर साल आयोजित होने वाले फ्लावर शो में उनके पास एक गारंटीशुदा स्टॉल है। वह इंद्रधनुष संस्था, मुंबई की प्रदर्शनियों में भी नियमित रूप से भाग लेती हैं। इसके अलावा नागपुर में उनके स्टॉल हैं। इससे मिलने वाली रकम का कुछ हिस्सा विशेष बच्चों की संस्था \"स्वीकार' को देती हैं, जो इनके लिए सेवारत है।
जब तक शरीर साथ देगा, करती रहूंगी सेवा
निश्चिंता गोखले कहती हैं "पैसा कमाना मेरा लक्ष्य नहीं है। बच्चे इस तरह की कलाकृति करें और उसमें व्यस्त रहें यही मेरे लिए मेरी कमाई है। जब तक उनका स्वास्थ्य अनुमति नहीं देगा, तब तक वह इस शौक और समाज सेवा को जारी रखेंगी। इस कला के लिए उन्हें सम्मान और कई पुरस्कार भी मिल चुके हैं। निश्चिंता नागपुर की हैं, लेकिन शादी होने के बाद पति के साथ इलाहाबाद, उदयपुर जैसे शहरों में रह चुकी हैं। उन्होंने इन स्थानों पर आयोजित प्रदर्शनियों सहित विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से विभिन्न वस्तुओं को प्रस्तुत किया। वह अविनाश को अपने साथ हर कलाकारी में शामिल करती हैं, ताकि उनके साथ वह कंधे से कंधा मिलाकर रहे और इस शौक को ऐसे ही बरकरार रखे।
अविनाश मेरी पहचान है
निश्चिंता गोखले, कलाकार के मुताबिक भगवान ने अविनाश को जैसे भी दिया है, एक मां होने का फर्ज मैंने हमेशा निभाने की कोशिश की है। स्कूल समय में जब तक उसका स्कूल रहता था, तब तक वहां बैठी रहती थी। इसी तरह धीरे-धीरे वह अपनी चीजें खुद करने लगा। वह गंभीर रूप से बीमार था, फिर भी मैंने उसे कभी भी समाज से दूर नहीं रखा। वह प्रदर्शनियों में मेरे साथ रहता है। रंग भरने, कटी हुई तस्वीरों को जोड़ने और उन्हें कागज पर चिपकाने में मेरी मदद करता है। मुझे गर्व है कि मैं एक स्पेशल बच्चे की मां हूं, जो मेरी पहचान भी है।