तंज: संजय शिरसाट बोले - उद्धव ठाकरे दिल्ली में देव दर्शन के लिए गए, दुबे ने कहा - हार का गम अभी खत्म नहीं हुआ
- संजय शिरसाट ने कसा तंज
- लोकसभा चुनाव में महाविकास आघाडी के दलों ने जबरदस्त जीत हासिल की
- दुबे ने संजय शिरसाट के बयान पर पलटवार किया
डिजिटल डेस्क, मुंबई। हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में महाविकास आघाडी के दलों ने जबरदस्त जीत हासिल की थी। जिसके बाद महाआघाडी के तीनों दल आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारी में जोर-जोर से जुट गए हैं। इस बीच शिवसेना (उद्धव) पक्ष प्रमुख उद्धव ठाकरे मंगलवार को तीन दिनों के दिल्ली दौरे पर पहुंच गए हैं, जहां वह राज्य में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव के लिए सहयोगी दलों के नेताओं के साथ सीटों के बंटवारे पर चर्चा कर सकते हैं। इसके साथ ही उद्धव इंडिया गठबंधन के नेताओं से भी मुलाकात करेंगे। वहीं उद्धव के दिल्ली दौरे पर शिवसेना (शिंदे) प्रवक्ता संजय शिरसाट पर निशाना साधते हुए कहा है कि उद्धव ठाकरे दिल्ली में 'देव दर्शन' के लिए गए हैं।शिरसाट ने कहा कि मेरी जानकारी के अनुसार उद्धव ठाकरे अपने बेटे आदित्य ठाकरे और पत्नी रश्मि ठाकरे के साथ दिल्ली में सोनिया देवी ( सोनिया गांधी) और राहुल देव (राहुल गांधी) से मिलने गए हैं। उद्धव इसलिए दिल्ली गए हैं कि क्योंकि इन दोनों देवताओं के मंदिर वहां पर हैं।
शिरसाट ने कहा कि अब ठाकरे को पता चलेगा कि दूसरों की आलोचना करना कितना आसान है। उन्होंने कहा कि उद्धव को पता चल गया है कि जब तक वह दिल्ली के चरणों में लीन नहीं हो जाते, तब तक वह राजनीति में मजबूत नहीं हो सकते। अगर राज्य के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे दिल्ली जाते हैं तो यही लोग आलोचना करते हैं कि शिंदे दिल्ली वासियों के चरणों में गिर गए हैं। लेकिन अब उद्धव के दिल्ली दौरे से साफ हो गया है कि राहुल गांधी उनके हृदय सम्राट बन गए हैं। राज्य की जनता यह पूछना चाहती है कि उद्धव दिल्ली में किसके चरण वंदन करने के लिए गए हैं? क्या ठाकरे ने अपनी भूमिका बदल ली है? या फिर वह दिल्ली घूमने गए हैं।
शिवसेना (उद्धव) प्रवक्ता आनंद दुबे ने संजय शिरसाट के बयान पर पलटवार करते हुए कहा कि महायुति के नेता लोकसभा चुनाव में मिली हार को अभी तक पचा नहीं पाए हैं। यही कारण है कि वह महाविकास आघाडी के नेताओं पर हर रोज कोई न कोई आरोप लगाते रहते हैं। लगता है उनका हार का गम अभी खत्म नहीं हुआ है। दुबे ने कहा कि दिल्ली हमारे देश की राजधानी है और अपनी सहयोगी दलों के नेताओं से मिलने में कोई बुराई नहीं है। अगर इस मुलाकात पर भी सत्ता पक्ष के नेताओं को राजनीति करनी है तो वह इसके लिए स्वतंत्र हैं।