दापोली साईं रिसार्ट: सदानंद कदम को अवैध दूसरी मंजिल तोड़कर 6 मई को तस्वीरें पेश करने का निर्देश

  • अदालत ने सदानंद कदम के वकील को अदालत की अवमानना के लिए लगाई फटकार
  • कदम ने साईं रिसार्ट के अपने अवैध निर्माण को 1 महीने में खुद तोड़ने का अदालत को दिया था आश्वासन
  • 6 मई को मामले की अगली सुनवाई

Bhaskar Hindi
Update: 2024-05-05 16:56 GMT

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बॉम्बे हाईकोर्ट ने सीआरजेड का उल्लंघन कर बने रत्नागिरी के दापोली साईं रिसॉर्ट के दूसरी मंजिल के अवैध निर्माण को नहीं तोड़ने पर याचिकाकर्ता सदानंद कदम को फटकार लगाई। अदालत ने कदम को अवैध निर्माण को तोड़कर उसकी तस्वीर और रिपोर्ट 6 मई को प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। कदम ने अदालत में हलफनामा दाखिल कर खुद साईं रिसॉर्ट के अवैध निर्माण एक महीने में तोड़ने की बात कही थी। न्यायमूर्ति माधव जामदार की पीठ के समक्ष शिवसेना (यूबीटी) नेता अनिल परब के करीबी सहयोगी सदानंद कदम द्वारा 6 दिसंबर 2023 को अतिरिक्त जिला अधिकारी के साईं रिसॉर्ट को तोड़ने की नोटिस को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान शिकायतकर्ता किरिट सोमैया के वकील द्वारा अदालत के संज्ञान में लाया गया कि याचिकाकर्ता ने एक महीने पहले साईं रिसॉर्ट के अवैध निर्माण एक महीने में तोड़ने की बात कही थी, लेकिन एक महीने से अधिक समय होने के बाद भी साईं रेसोर्ट के दूसरी मंजिल के अवैध निर्माण को अभी तक नहीं तोड़ा है।याचिकाकर्ता ने हलफनामा देकर अदालत को न केवल गुमराह किया है, बल्कि अदालत के आदेश का भी उल्लंघन किया है। इस पर पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील को फटकार लगाते हुए कहा कि साईं रिसॉर्ट के अवैध निर्माण को तोड़कर उसकी तस्वीर और रिपोर्ट 6 मई को सुनवाई के दौरान पेश करें। 13 मार्च को कदम ने अदालत में हलफनामा दाखिल कर आश्वासन दिया कि वह एक महीने के भीतर अपने खर्च पर दापोली साईं रिसॉर्ट के अतिरिक्त और अनधिकृत हिस्से को तोड़ देंगे। इससे पहले 12 जनवरी को वकील साकेत मोने ने कहा था कि जिलाधीकारी की दापोली साईं रिसॉर्ट के खिलाफ कार्रवाई दुर्भावना पूर्ण थी। तटीय विनियमन क्षेत्र (सीआरजेड) अधिसूचना के उल्लंघन में निर्मित कई दूसरी अवैध संरचनाएं मौजूद हैं। उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है। इस पीठ ने सरकार को सीआरजेड उल्लंघन करने वाले अन्य निर्माण के खिलाफ कार्रवाई कर हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया था।

रायगढ़ के 23 किसानों को भूमि अधिग्रहण के मुआवजे के मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट से लगा झटका

उधर दूसरे मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट से रायगढ़ स्थित पनवेल के 23 किसानों को झटका लगा है। अदालत ने उनकी याचिका को खारिज करते हुए टिप्पणी कि कि हमें इस बात में कोई संदेह नहीं है कि याचिकाकर्ताओं ने मौके की लहर पर सवार होने की कोशिश की है। यह याचिका कुछ और नहीं, बल्कि मौके के खजाने की तलाश में पुरानी कब्र खोदने का प्रयास जैसा है। ऐसे प्रयासों में सहायता के लिए हमारे अधिकार क्षेत्र का प्रयोग नहीं किया जा सकता है। अदालत ने उस भूमि को सिडको को सौंपने का आदेश दिया है, जो राज्य सरकार के अधिग्रहण के बाद भी भूमि याचिकाकर्ता किसानों ने कब्जे में है। न्यायमूर्ति नितिन जामदार और न्यायमूर्ति एम. एम. साथये की खंडपीठ के समक्ष पनवेल के काशीनाथ शताराम म्हात्रे समेत 23 किसानों द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई हुई। याचिका में राज्य सरकार द्वारा पहले अधिग्रहित की गई भूमि का मुआवजा बकाया होने और उसे (बकाया मुआवजा) नए भूमि अधिग्रहण कानून के तहत देने का अनुरोध किया। याचिकाकर्ता के वकीलों ने दलील दी कि 19 मार्च 1971 को अधिग्रहित भूमि के मुआवजे की पूरी राशि कई ग्रामीणों द्वारा प्राप्त की गई है, लेकिन 39 भूमि मालिक किसानों ने मुआवजे की राशि स्वीकार नहीं की है। यह राजस्व की जमा सूची में सूचीबद्ध हैं। 31 मार्च 1970 की उस जमा सूची की प्रति रिकॉर्ड में प्रस्तुत की गई है। अधिग्रहण करने वाले निकाय द्वारा विषयगत भूमि का अधिग्रहण करने की 19 मार्च 1971 की रसीद रिकॉर्ड में रखी गई है। इसमें उल्लेख किया गया है कि भूमि मालिकों ने उस पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया है। इसलिए पंच गवाहों की उपस्थिति में उनकी भूमि को अधिग्रहित कर लिया गया था। सिडको की ओर से वकील ने दलील दी कि 24 मई 2010 और 2 फरवरी 2011 के पत्रों के माध्यम से सिडको ने नवी मुंबई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे (एनएमआईए) के लिए विषयगत भूमि के आवंटन का अनुरोध किया था। महाराष्ट्र सरकार के निर्देशानुसार कलेक्टर रायगढ़ ने 5 जून 2012 को आदेश पारित कर राज्य सरकार के पास मौजूद भूमि को वापस करने और एनएमआईए के लिए सिडको को सौंपने का निर्देश दिया है। उस आदेश की प्रति रिकॉर्ड में प्रस्तुत की गई है। दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद खंडपीठ ने किसानों की याचिका खारिज कर करते हुए कहा कि कोई भी व्यक्ति चाहे वह नागरिक हो या अन्य संविधान के अनुच्छेद 226 के अंतर्गत न्यायसंगत राहत प्राप्त करने का हकदार नहीं है। यदि उसका आचरण लापरवाही, अनुचित देरी, स्वीकृति, छूट और इसी तरह के अन्य कारणों से दोषपूर्ण है।

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