Mumbai News: राज्य सरकार-एसआरए और बीएमसी सहित बिल्डर और भाजपा विधायक लोढ़ा को नोटिस

  • मालाड के उप जिला अधिकारी ने अंबुजवाडी के झोपड़ों तोड़ने की जारी किया है नोटिस
  • मालवणी के अंबुजवाड़ी के 58 हजार झोपड़ा धारकों के बेघर होने का मंडरा रहा खतरा
  • नाशिक मंदिर के पुजारी से 40 लाख रुपए की धोखाधड़ी का मामले में सेशन कोर्ट का फैसला रद्द

Bhaskar Hindi
Update: 2024-11-05 15:57 GMT

Mumbai News : बॉम्बे हाई कोर्ट ने मालाड (प.) मे मालवणी स्थित अंबुजवाड़ी के 58 हजार झोपड़ा धारकों के के झोपड़े (घर) को तोड़ने को लेकर राज्य सरकार, झोपड़पट्टी पुनर्वसन प्राधिकरण (एसआरए) और मुंबई महानगर पालिका (बीएमसी) सहित बिल्डर व भाजपा विधायक मंगल प्रभात लोढ़ा को नोटिस जारी किया है। सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर की ओर से दायर याचिका में मालाड के उप जिला अधिकारी द्वारा अंबुजवाडी के हजारों झोपड़ों तोड़ने की कार्रवाई पर रोक लगाने और झोपड़ा धारकों के पुनर्वसन का अनुरोध किया गया है। याचिका में मानवाधिकार आयोग के मानवाधिकारों के उल्लंघन में हस्तक्षेप करने से इनकार करने के फैसले को भी चुनौती दी गई है। अदालत ने 19 दिसंबर को मामले की अगली सुनवाई रखी है। न्यायमूर्ति ए.एस गडकरी और न्यायमूर्ति कमल खाता की पीठ के समक्ष मेधा पाटकर की ओर से वरिष्ठ वकील एस.बी.तालेकर और वकील माधवी अयप्पन की दायर याचिका पर सुनवाई हुई। याचिका में उचित पुनर्वास और पुनर्स्थापन नीति के बिना अंबुजवाडी के हजारों झोपड़ों धारकों के घरों को तोड़ने को चुनौती दी गई है, जिसमें दावा किया गया है कि यह कार्रवाई भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत निवासियों के आश्रय के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ वकील एस.बी.तालेकर ने दलील दी कि मानवाधिकार आयोग ने मानवाधिकार अधिनियम, 1993 के तहत निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं किया और इसके विपरीत पूरी तरह से जांच किए बिना या राज्य सरकार से रिपोर्ट मांगे बिना अधिकारियों के जवाबों पर पूरी तरह भरोसा करके झोपड़ा धारकों की शिकायत को खारिज कर दिया। राज्य सरकार की जारी मौजूदा सरकारी संकल्पों और केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) मिशन के बावजूद अधिकारी रूप से पात्र परिवारों को किफायती आवास की सुविधा प्रदान करने में सरकार विफल रही है। अंबुजवाडी के हजारों झोपड़ों धारकों के घरों को तोड़ने का अभियान उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना चलाया गया था, जिसमें कारण बताओ नोटिस जारी न करना और पुनर्वास के लिए निवासियों की पात्रता निर्धारित करने के लिए सर्वेक्षण न करना शामिल है। लोढ़ा समूह की निकटवर्ती क्षेत्र में आगामी परियोजना को लाभ पहुंचाने के लिए और मुंबई उपनगरों के आवास मंत्री मंगल प्रभात लोढ़ा के राजनीतिक प्रभाव से प्रभावित होकर अंबुजवाड़ी में चुनिंदा तरीके से तोड़फोड़ की गई। याचिका में दावा किया गया है कि वर्ष 1970 से अंबुजवाड़ी के 35 एकड़ की भूमि पर 58 हजार लोग झोपड़े बना कर रहते हैं। यह ज्यादातर पारधी समाज के लोग हैं। इससे पहले 28 फरवरी 2005 में बीएमसी ने एक अभियान चलाकर उनके झोपड़े को तोड़ दिया था, तब इन झोपड़ा धारकों ने मुंबई के आजाद मैदान में 40 दिनों तक धरना-प्रदर्शन किया। इसके बाद बीएमसी ने उन्हें फिर से झोपड़े बनाने की इजाजत दे दी। उसके बाद से वे वहीं रह रहे हैं। एक बार फिर से उनके घरों को तोड़ा जा रहा है। इस पर पीठ ने राज्य सरकार, एसआरए और बीएमसी सहित बिल्डर मंगल प्रभात लोढ़ा को नोटिस जारी किया है।

नाशिक मंदिर के पुजारी से 40 लाख रुपए की धोखाधड़ी का मामले में सेशन कोर्ट का फैसला रद्द, मजिस्ट्रेट कोर्ट के आदेश पर मुहर

उधर बॉम्बे हाई कोर्ट ने नाशिक के एक मंदिर के महंत से 40 लाख रुपए की धोखाधड़ी के मामले में आरोपी राजू अण्णा चौघुले को लेकर अहम फैसला सुनाया है। अदालत ने कहा कि जमानत आदेश को पुनर्विचार याचिका (रिवीजन पिटिशन) के माध्यम से चुनौती नहीं दी जा सकती। न्यायमूर्ति अनिल किलोर की एकल पीठ के समक्ष चौघुले की ओर से वकील गणेश गुप्ता की दायर याचिका पर सुनवाई हुई। गुप्ता ने दलील दी कि याचिकाकर्ता की जमानत रद्द करना सेशन कोर्ट के अधिकार क्षेत्र से बाहर है, क्योंकि सरकार की पुनरीक्षण याचिका में ऐसा कोई अनुरोध नहीं किया गया था। पीठ ने याचिकाकर्ता की दलील स्वीकार करते हुए सेशन कोर्ट का फैसला रद्द कर दिया और मजिस्ट्रेट अदालत के आदेश पर मुहर लगाई। मजिस्ट्रेट अदालत ने चौघुले को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया था। नाशिक के गोरेराम मंदिर के महंत राजाराम दास की शिकायत पर पंचवटी पुलिस स्टेशन में इसी साल 16 जनवरी को चौघुले के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था। आरोप है कि मंदिर के जीर्णोद्धार के नाम पर आरोपी ने महंत को झांसा दिया। पुलिस ने 15 अप्रैल को आरोपी को गिरफ्तार किया था। चौघुले को मजिस्ट्रेट अदालत से जमानत मिल गई थी, जिसे राज्य सरकार ने हाई कोर्ट में चुनौती दी थी।

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