बॉम्बे हाईकोर्ट: पेंशन एक बुनियादी अधिकार है और इसके भुगतान से इनकार नहीं किया जा सकता

  • अदालत की फटकार के बाद राज्य सरकार ने चुकाया एक व्यक्ति का 2 साल का बकाया पेंशन
  • सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय से याचिकाकर्ता हमाल के पद से सेवानिवृत्ति
  • व्यक्ति ने याचिका दायर कर पेंशन के लिए अदालत से लगाई थी गुहार

Bhaskar Hindi
Update: 2023-11-22 15:45 GMT

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि पेंशन एक बुनियादी अधिकार है और सेवानिवृत्त कर्मचारियों को इस भुगतान से वंचित नहीं किया जा सकता है। यह उनके लिए आजीविका का एक बड़ा स्रोत भी है। अदालत ने एक व्यक्ति के दो साल से अधिक समय से पेंशन को रोके जाने पर राज्य सरकार को फटकार लगाई। न्यायमूर्ति जी.एस.कुलकर्णी और न्यायमूर्ति जितेंद्र जैन की अवकाश कालीन खंडपीठ के समक्ष सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय में हमाल (कुली) के पद पर 30 साल तक कार्यरत रहे सेवानिवृत्त जयराम मोरे द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई हुई। याचिका में राज्य सरकार को उसकी पेंशन जारी करने का निर्देश देने की मांग की गई थी। खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा कि ऐसी स्थिति पूरी तरह से अतार्किक है। मोरे ने सराहनीय और बेदाग सेवा की, लेकिन फिर भी उनकी मई 2021 को सेवानिवृत्ति से दो साल से उन्हें पेंशन का भुगतान नहीं किया गया। याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में दावा किया कि विश्वविद्यालय द्वारा राज्य सरकार के संबंधित विभाग को सभी आवश्यक दस्तावेज जमा करने के बावजूद पेंशन का भुगतान नहीं किया जा रहा है।

खंडपीठ ने कहा कि हम सोच रहे हैं कि क्या कोई भी व्यक्ति जो लंबी बेदाग सेवा के बाद सेवानिवृत्त होता है, उसे लगभग 30 वर्षों की लंबी सेवा प्रदान करने के बाद ऐसी दुर्दशा का सामना करना चाहिए और आजीविका का स्रोत होने के नाते पेंशन के मूल अधिकार से वंचित किया जाना चाहिए।

खंडपीठ ने सुप्रीम कोर्ट के चार दशक पुराने आदेश का हवाला दिया और कहा कि पेंशन को एक इनाम, नियोक्ता की इच्छा या कृपा पर निर्भर एक नि:शुल्क भुगतान और अधिकार के रूप में दावा नहीं करने की पुरानी धारणा को गलत ठहराया गया है। अदालत ने कहा कि पेंशन एक अधिकार है और इसका भुगतान सरकार के विवेक पर निर्भर नहीं है। हालांकि मंगलवार को सरकार की ओर से खंडपीठ को सूचित किया गया कि मोरे की पेंशन की बकाया राशि जारी कर दी गई है और उन्हें प्राप्त हो गई है।

खंडपीठ ने सरकार के बयान को स्वीकार कर लिया और याचिका का निपटारा करते हुए कहा कि अब से मोरे को उनकी मासिक पेंशन नियमित रूप से और बिना किसी चूक के भुगतान की जानी चाहिए। यह मामला आंखें खोलने वाला था कि यदि सरकारी अधिकारी अपने कर्मचारियों की शिकायतों पर तुरंत विचार करते हैं, तो ऐसे पीड़ित व्यक्तियों को अदालतों का दरवाजा खटखटाने की कोई आवश्यकता नहीं होगी।

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