रणनीति: मायावती तय करेंगी यूपी में इंडिया का भविष्य, पूर्व मुख्यमंत्री की भूमिका पर है सबकी नजर
- मायावती फिलहाल राजनीतिक हाशिए पर दिखाई दे रही हैं
- लोकसभा चुनाव में गठबंधन की राजनीति से उनका महत्व एक बार फिर बढ़ा
- तय करेंगी यूपी में इंडिया का भविष्य
डिजिटल डेस्क, मुंबई, विजय सिंह कौशिक। चार बार देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रही बसपा प्रमुख मायावती फिलहाल राजनीतिक हाशिए पर दिखाई दे रही हैं पर आगामी लोकसभा चुनाव में गठबंधन की राजनीति से उनका महत्व एक बार फिर बढ़ता दिखाई दे रहा है। विपक्षी दलों के गठबंधन "इंडिया' में उनके शामिल होने को लेकर अभी तक अनिश्चितता है। हालांकि पूर्वी उत्तर प्रदेश में आम से लेकर खास तक सबका यही मानना है की मायावती "इंडिया' में शामिल हुई तो सबसे ज्यादा लोकसभा सीटो वाले राज्य उत्तर प्रदेश में भाजपा के लिए चुनावी राह थोड़ी मुश्किल हो सकती है।
अगले कुछ महिनों के भीतर लोकसभा चुनाव होने हैं। लगातार दो बार दिल्ली की गद्दी पर कब्जा करने वाली भाजपा को हराने के लिए कांग्रेस सहित सभी प्रमुख विपक्षी दलों ने एकजुट होकर "इंडिया' गठबंधन तैयार किया है। पर देश के सबसे बड़े राज्य में यह गठबंधन अन्य राज्यों की तुलना में कमजोर दिखाई दे रहा है। फिलहाल यूपी में "इंडिया' मतलब समाजवादी पार्टी (सपा) है। राज्य में कांग्रेस की कहीं कोई मौजूदगी नहीं दिखाई देती।
राजनीति पर बातचीत शुरु होने पर मायावती चर्चा के केंद्र बिंदु में आ जाती हैं। मायावती ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं। उन्हें "इंडिया' में लाने की कोशिशे हो रही है। हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा-आरएलडी गठबंधन कोई करिश्मा नहीं कर सका था। पर राजनीति के जानकारों का मानना है कि गठबंधन राजनीति में कुछ प्रतिशत वोट इधर से उधर होने पर चुनाव परिणाम प्रभावित हो जाते हैं।
लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार आशिष मिश्र कहते हैं कि 2019 में सपा-बसपा व आरएलडी का गठबंधन सबसे मजबूत माना जा रहा था पर चुनाव में यह फुस्स साबित हुआ। यदि मायावती "इंडिया' में शामिल हो गई तो भाजपा को ध्रुवीकरण का और लाभ मिलेगा। फिलहाल यूपी में हर तरफ राम नाम की महिमा दिखाई दे रही है। जौनपुर के वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र सिंह मानते हैं कि मायावती का अपना एक वोटबैंक है, जो उनके साथ रहता है।
मायावती के "इंडिया' के साथ जाने से उत्तर प्रदेश के अलावा राजस्थान, मध्यप्रदेश व बिहार में भी विपक्षी गठबंधन को मजबूती मिल सकती है। मायावती अकेले लड़ी तो भाजपा फायदे में रहेगी। सिंह याद दिलाते हैं कि 2022 में हुए आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव में अखिलेश यादव के चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव को बसपा उम्मीदवार की वजह से चुनाव हारना पड़ा था। इस चुनाव में भाजपा के दिनेश लाल यादव "निरहुआ' की जीत का अंतर केवल 8,679 रहा था जबकि बसपा उम्मीदवार गुड्डू जमाली को 2 लाख 66 हजार वोट मिले थे।
बसपा को मिले थे 19.43 प्रतिशत वोट
बीते लोकसभा चुनाव में मायावती के नेतृत्व वाले बसपा ने 19.43 प्रतिशत वोट हासिल कर 10 सीटों पर जीत दर्ज की थी। जबकि सपा को 18.11 प्रतिशत वोट और पांच लोकसभा सीटों पर जीत मिली थी। इसी गठबंधन में शामिल जयंत चौधरी के राष्ट्रीय लोकदल को 1.69 प्रतिशत वोट मिले थे और उसका खाता नहीं खुल सका था। 2019 के लोकसभा चुनाव में यूपी में कांग्रेस को 6.36 प्रतिशत वोट और एक सीट मिली थी। इस चुनाव में लोकसभा की 62 सीटे जीतने वाली भाजपा को 49.98 प्रतिशत वोट मिले थे।