विश्व मधुमेह दिन: महामारी के बाद मधुमेह पीड़ितों की संख्या में 50 फीसदी का इजाफा, बढ़ता तनाव- मोटापा बना कारण
- कम उम्र के लोगों में बढ़ा डायबिटीज, बढ़ता तनाव, मोटापा, कम शारीरिक गतिविधि बना मधुमेह का कारण
- डायबिटीज टाइप-2 के रोगियों की उम्र में बदलाव
Mumbai News : कोरोना महामारी के बाद से युवाओं में डायबिटीज के मामले तेजी से बढ़े हैं। डॉक्टरों के एक अध्ययन के मुताबिक कोविड से पहले की तुलना में कोविड काल के बाद 25 से 30 आयु वर्गों में डायबिटीज के मामले में 50 फीसदी की वृध्दि देखी जा रही है। अध्ययन के मुताबिक इसकी चार प्रमुख वजह हैं। जिसमें सेहत के प्रति लोगों की जागरूकता बढ़ने से नियमित स्वास्थ्य जांच, वर्क फ्रॉम होम का बढ़ता चलन, मोटापा, शारीरिक गतिविधियां कम होना और कोविड के दौरान नौकरी खोने से बढ़ा मानसिक तनाव शामिल है।
हर साल 14 नवंबर को विश्व मधुमेह दिवस के रूप में मनाया जाता है। डायबिटीज को साइलेंट किलर माना जाता है। डायबिटीज विशेषज्ञ डॉ. राजीव कोविल ने बताया कि उन्होंने अपने क्लीनिक में कोविड महामारी से पहले और महामारी के बाद मरीजों की प्रोफाइल का तुलनात्मक अध्ययन किया। इस अध्ययन से सामने आया कि महामारी से पहले के चार साल में 8,824 मरीज (3,094 नए) क्लीनिक में आए थे, जिनकी कुल 30,334 विजिट्स हुईं। महामारी के बाद यह संख्या तेजी से बढ़ी 12,058 मरीज (3,228 नए) क्लीनिक में आए। जिनकी कुल 50,802 बार विजिट हुई थी।
डायबिटीज टाइप-2 के रोगियों की उम्र में बदलाव
डॉ. कोविल ने बताया कि अध्ययन में टाइप-2 मधुमेह की महामारी से पहले औसत शुरुआत 47 साल की उम्र में होती थी। जो महामारी के बाद घटकर 42 साल हो गई है। इसके अलावा 25 से 30 साल के युवाओं में भी इस बीमारी के मामलों में वृद्धि हुई है। नए मामलों में वजन बढ़ने का कारण साफ नजर आता है। पुरुषों का औसत वजन 75 किलो से बढ़कर 84 किलो हो गया है, जबकि महिलाओं का वजन औसत 61 किलो से बढ़कर 69 किलो तक पहुंच गया है। विशेष रूप से महिलाओं में शरीर में फैट की मात्रा में चिंताजनक वृद्धि देखी गई है। औसतन महिलाओं में फैट का प्रतिशत 42% और पुरुषों में 36% दर्ज किया गया है।
जटिल मेटाबॉलिक विकारों से ज्यादातर मामले
अध्ययन के मुताबिक नए मधुमेह मरीजों में ज्यादातर मामले जटिल मेटाबॉलिक विकारों से जुड़े हैं। 95 फीसदी से अधिक नए मरीजों में डिस्लिपिडीमिया पाया गया है। जांच के समय उच्च रक्तचाप की दर 19 फीसदी से बढ़कर 30 फीसदी हो गई है। क्रॉनिक किडनी डिजीज के संकेतक जैसे यूरिक एसिड का बढ़ना और प्रोटीन्यूरिया अब 18 फीसदी नए मरीजों में पाए जा रहे हैं, जबकि महामारी से पहले यह दर 12फीसदी थी। इसके अलावा लीवर फंक्शन में भी गिरावट देखी जा रही है। लिवर फंक्शन टेस्ट कराने वाले 822 मरीजों में से 80 फीसदी में लीवर एंजाइम्स बढ़े हुए पाए गए, जिससे नॉन-अल्कोहोलिक फैटी लीवर डिजीज के मामलों में वृद्धि का संकेत मिलता है।