बांबे हाईकोर्ट: अतिक्रमण करने वाले झोपड़ावासी मुफ्त आवास की मांगते हैं, लेकिन वेतनभोगियों को ऐसी कोई राहत नहीं

  • वेतनभोगियों को कोई राहत नहीं
  • अदालत ने वैभवी एसआरए सहकारी हाउसिंग सोसाइटी की याचिका पर की टिप्पणी
  • अतिक्रमण करने वाले झोपड़ावासी मुफ्त आवास की मांग करते हैं

Bhaskar Hindi
Update: 2023-11-17 16:09 GMT

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि भूमि पर अतिक्रमण करने वाले झोपड़ाधारक मुफ्त आवास की मांग करते हैं, लेकिन वेतनभोगी व्यक्तियों को ऐसी कोई राहत नहीं मिलती है। अदालत ने वैभवी एसआरए सहकारी हाउसिंग सोसाइटी की याचिका पर यह टिप्पणी की है। न्यायमूर्ति जी.एस.पटेल और न्यायमूर्ति कमल खाता की खंडपीठ ने वैभवी एसआरए सहकारी हाउसिंग सोसाइटी की याचिका पर प्रतिकूल रुख अपनाया, जिसमें उनके झोपड़े के बदले मुफ्त वैकल्पिक आवास और ट्रांजिट का किराया की मांग की थी। झोपड़ावासियों को उनके झोपड़े से बेदखल किया जा रहा है। सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने कहा कि वे (झोपड़ाधारक) मांग करने की स्थिति में हैं और इससे किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता है और कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए। यहां तक कि कोर्ट को भी फर्क नहीं पड़ता कि शहर में काम करने वाले वेतनभोगी व्यक्तियों के लिए ऐसा कोई प्रावधान नहीं किया गया है। इसमें अदालत और सरकार के वेतन भोगी कर्मचारी शामिल हैं। यह वे वेतन भोगी कर्मचारी हैं, जो नियमित रूप से अपने भविष्य निधि और अन्य बचत समेत किसी भी स्रोत से पैसा निकालते हैं और जिन्हें कर्ज को ईएमआई के रूप में भारी मात्रा में भुगतान करना पड़ता है। उन्हें कोई मुफ़्त घर नहीं देता।

कोई भी उन्हें ट्रांजिट किराया या किसी भी प्रकार की वित्तीय राहत नहीं देता है। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील मिलिंद साठे और वकील अभिनव चंद्रचूड़ तर्क दिया कि भूमि के निवासियों को सितंबर 2021 से ट्रांजिट किराया का भुगतान नहीं किया गया है। उनका बकाया राशि 10 करोड़ रुपए से अधिक है। बिल्डर की ओर से पेश हुए सिमिल पुरोहित ने कहा कि बिल्डर दिसंबर 2023 तक देय ट्रांजिट किराए का भुगतान करेगा। हालांकि यह डेवलपर्स द्वारा प्रस्तावित योजनाओं पर सहमति देने वाली सोसायटी के अधीन होगा। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने पहले डेवलपर और उसके द्वारा प्रस्तावित योजनाओं को जारी रखने पर आपत्ति जताई थी। अदालत झोपड़ाधारकों द्वारा उठाई गई विभिन्न मांगों पर भी आश्चर्यचकित था, जिसमें पुनर्वास इकाइयों के स्थान और भौतिक संरचना को तय करने की मांग भी शामिल थी।

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