बॉम्बे हाईकोर्ट: कोर्ट की तो नहीं सुनते, पर पार्लियामेंट की तो सुनो, अदालत ने सरकार को लगाई फटकार
- राज्य सरकार को हलफनामा दायर कर जवाब देने का निर्देश
- वृद्धाश्रमों में वृद्धों से दुर्व्यवहार को लेकर दायर जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई
डिजिटल डेस्क, मुंबई। बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि कोर्ट की तो नहीं सुनते, पर पार्लियामेंट की तो सुनो। राज्य सरकार को 2010 के प्रावधानों के तहत वृद्धाश्रमों के प्रबंधन और वरिष्ठ नागरिकों के लिए कल्याण के लिए राज्य परिषद और जिला समितियां बनाने में क्या 13 साल लगते हैं? अदालत ने इसको लेकर सरकार से जवाब मांगा है। मामले की अगली सुनवाई 5 जनवरी को होगी। मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति आरिफ डॉक्टर की खंडपीठ के समक्ष बुधवार को नीलोफर अमलानी की जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकील
शांतनु शेट्टी ने दलील दी कि अदालत ने सरकार को राज्य भर में वृद्धाश्रमों के लाइसेंस, पंजीकरण और प्रबंधन के लिए विस्तृत दिशा निर्देश जारी करने का निर्देश दिया था। सरकार के 2010 के प्रावधानों के तहत वृद्धाश्रमों के प्रबंधन और वरिष्ठ नागरिकों के लिए कल्याण के लिए राज्य परिषद और जिला समितियां बनानी थी। नियम के मुताबिक राज्य परिषद की 6 महीने और जिला समितियों की साल में एक बार एक बैठक होनी चाहिए थी। राज्य सरकार ने इस पर अभी तक अमल नहीं किया है। इस पर खंडपीठ ने सरकारी वकील से पूछा कि क्या सरकारी प्रावधानों पर अमल के 13 साल लगता है? इसको लेकर अदालत के दिए दिशा निर्देश पर भी अमल नहीं हुआ? कोर्ट की तो नहीं सुनते, पर पार्लियामेंट की तो सुनो। अदालत ने राज्य सरकार से हलफनामा दाखिल कर जवाब मांगा है।
याचिकाकर्ता ने 28 जुलाई 2019 को मुंबई में रहने वाले अपने पिता (86) और मां (83) को पवई के एक वृद्धाश्रम में रखा था। जब वह अपने माता-पिता से मिलने गई, तो देखा कि उनके पिता का सामान गायब था, उनकी बाहों और पैरों पर खून के थक्के थे। उन्हें उचित भोजन नहीं दिया गया था। उन्हें डॉक्टर के पास ले जाने के अनुरोध पर ध्यान नहीं दिया गया था। 15 अगस्त को उनके पिता का निधन हो गया. इसके बाद नीलोफर अमलानी ने हाई कोर्ट में वृद्धाश्रमों को लेकर जनहित याचिका दाखिल किया।