ढीमरखेड़ा तहसील के ग्राम परासी में 7.46 हेक्टेयर जमीन पर बने तालाब के मामले में अंतरिम लेकिन बड़ा फैसला
कूटरचित तरीके से निजी दर्ज तालाब पुन: ‘शासकीय’ होगा
शासकीय मद के तालाबों को निजी कब्जे से मुक्त कराने की दिशा में मंगलवार को कलेक्टर कोर्ट से बड़ा फैसला आया। कलेक्टर अवि प्रसाद ने ढीमरखेड़ा तहसील के ग्राम परासी के 7.46 हेक्टेयर जमीन पर बने तालाब को पुन: शासकीय में दर्ज करने का अंतरिम आदेश पारित किया। शासकीय तालाब की इस जमीन पर बरेली के रहने वाले नरेश कुमार, सुरेश कुमार, राजकुमार, नंदकुमार का तीन दशक से अधिक समय से कब्जा था। इस मामले में रणजीत पटेल पिता घासीराम पटेल द्वारा की गई शिकायत के बाद मामले का परीक्षण कराया गया। जांच में कूटरचित तरीके से उक्त शासकीय तालाब की जमीन को निजी नाम पर करा लेने की पुष्टि हुई। इस पर कलेक्टर अवि प्रसाद ने उक्त आदेश पारित किया। साथ ही भूमि स्वामियों को भू-राजस्व संहिता 1959 की धारा 115 के तहत नोटिस जारी करने का भी आदेश दिया है। कलेक्टर ने तहसीलदार को अभिलेख अद्यतन करा कर अवगत कराने आदेशित किया।
यह है मामला
ढीमरखेड़ा तहसील के ग्राम परासी पटवारी हल्का नंबर 35 स्थित खसरा नंबर 144 रकवा 7.46 हेक्टेयर पानी मद की भूमि कूटरचित तरीके से रामकुमार के बेटों नरेश, सुरेश, नंदकुमार व राजकुमार द्वारा अपने नाम पर दर्ज करा लिए जाने की शिकायत रणजीत पिता घासीराम पटेल ने की थी। एसडीएम ढीमरखेड़ा ने मामले में जांच कर दिसंबर 2022 को प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। प्रतिवेदन के अनुसार मिसल बंदोबस्त वर्ष 1989-90 में रामकुमार के चारों बेटों के भूमि स्वामी के रूप में अभिलेख में दर्ज है। बंदोबस्त से पूर्व के प्रस्तुत दस्तावेज में उक्त भूमि पुराना खसरा नं. 301 वर्ष 1970-71 से 1973-74 तक मप्र शासन पानी मद में दर्ज थी। 1975-76 के पांच साला खसरा के संशोधन में भूमि चारों भाइयों के नाम पर सीलिंग एक्ट काबिज पर तत्कालीन एसडीएम के आदेश पर दर्ज होना पाया गया, जो निरंतर दर्ज हैं।
प्रमाणिक दस्तावेज बिना चढ़ा दिए नाम
वर्ष 1980-81 से 1983-84 तक का रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं होने और उसके बाद 1985-86 से उक्त भूमि के खसरे के कॉलम नंबर 3 में पूर्व में दर्ज पानी एवम् तालाब विलोपित पाया गया। 1989-90 में बंदोबस्त के समय नया खसरा नंबर 144 के कॉलम नंबर 2 में तालाब जुड़ा होने तथा 1991-92 से 1993-94 तक पांच साला खसरा के कॉलम नंबर 1 पर तालाब एवम् कैफियत पर मौके पर तालाब पानी अभिलिखित है। वर्ष 1995-96 से 1998-99 में कैफियत से तालाब और पानी विलोपित पाया गया। जांच में प्रथम दृष्टया यह तथ्य भी सामने आए कि बिना किसी प्रमाणिक दस्तावेज के अनावेदकों के नाम बिना किसी आधार के खसरे में दर्ज किए गए हैं।
भास्कर तत्काल : ऐसे एक नहीं अनेक मामले
बंदोबस्त से पूर्व के दस्तावेजों में जो जमीनें मध्यप्रदेश शासन पानी मद में दर्ज थीं, उनको निजी नामों पर चढ़ा दिये जाने का यह कोई पहला या अकेला मामला नहीं है। जिला मुख्यालय से लेकर समूचे जिले में अनेक ऐसे तालाब हैं जो आज निजी नामों पर दर्ज हैं। कुछ तालाबों का अस्तित्व खत्म कर दिया गया तो अनेक तालाबों का अस्तित्व भू-माफिया खत्म करने पर आमादा हैं। जिला प्रशासन इन मामलों में स्वत: संज्ञान लेते हुए या कलेक्टर न्यायालय में प्रस्तुत इस तरह के मामलों का नये सिरे से परीक्षण कराया जाए तो हजारों करोड़ रुपये की सरकारी जमीन को कब्जा मुक्त कराया जा सकता है। विधि असम्मत प्रक्रिया अपनाकर पानी मद की भूमि हड़पने वालों को हतोत्साहित करने के लिए भी ऐसा किया जाना जरूरी होगा। ऐसा किये बिना शासकीय भूमियों और पानी मद की भूमियों का संरक्षण और संवर्धन संभव नहीं है। यह भी सच्चाई : सरकारी रिकॉर्ड में हेरफेर के इस मामले में प्रशासनिक अफसरों की भी भूमिका भी संदिग्ध है। इस मामले की जांच में यह पाया गया कि भ-स्वामियों के नाम खसरे पर की गई प्रविष्टि संदेहास्पद और सीलिंग मुआवजे की कैफियत प्रविष्टि वर्ष 1975-76 का बगैर परीक्षण किए जांच प्रतिवेदन प्रस्तुत किया गया। बिना किसी प्रमाणिक दस्तावेज के अनावेदकों के नाम बिना किसी आधार के खसरे में दर्ज किए गए। ऐसे में शासन को उन अधिकारियों पर भी कार्रवाई करनी चाहिए जो इसके लिए जिम्मेदार हैं।