उम्मीदों की कॉन्क्लेव: संभावनाएँ असीम, इच्छाशक्ति से मिलेगा मुकाम
- शहर में कल जुटेंगे देश-विदेश के उद्यमी, एग्रो, माइंस, डिफेंस, टूरिज्म और गारमेंट क्लस्टर आदि पर फोकस, अंतिम दौर में तैयारियाँ
- मंडला में एक कम क्षमता का प्लांट लगा है और कुछ उद्योगपति जबलपुर में बड़ा प्लांट लगाने की कोशिश में हैं।
- पिछले कुछ सालों में जबलपुर ने मटर के क्षेत्र में जबरदस्त नाम किया है।
डिजिटल डेस्क,जबलपुर। शहर में 20 जुलाई शनिवार को रीजनल इंडस्ट्री कॉन्क्लेव का आयोजन होने जा रहा है। इस आयोजन में प्रमुख 5 सेक्टर्स को टारगेट किया गया है। कृषि उत्पादों में जबलपुर व आसपास के जिलों की बनी खास पहचान को ध्यान में रखते हुए कृषि, खाद्य एवं डेयरी प्रसंस्करण को सबसे पहले स्थान पर रखा गया है।
इस क्षेत्र में निवेशकों को प्रोत्साहित किया जाएगा। वहीं टूरिज्म, माइंस, डिफेंस, गारमेंट क्लस्टर समेत कुछ सेक्टर्स पर भी फोकस किया जा रहा है। घंटाघर स्थित नेताजी सुभाषचंद्र बोस कल्चर एण्ड इन्फॉर्मेशन सेंटर में होने जा रहे आयोजन को लेकर तैयारियाँ अंतिम दौर में हैं।
औद्योगिक क्षेत्र से जुड़े लोगों का मानना है कि पूर्व में इस तरह के आयोजनाें के परिणाम व अनुभव उतने सुखद नहीं रहे। इस बार यदि प्रयास पूरी ईमानदारी से हुए और कार्यों के सतत मॉनिटरिंग हुई तो यह काॅन्क्लेव पूरे क्षेत्र की दिशा दशा बदल सकता है।
मटर के लिए केवल चर्चा हुई
पिछले कुछ सालों में जबलपुर ने मटर के क्षेत्र में जबरदस्त नाम किया है। मुम्बई-दिल्ली, नागपुर, चेन्नई, हैदराबाद के साथ ही मटर ने दुबई में भी अपनी जगह बना ली है। थोड़ा और प्रयास किया जाए तो न केवल सभी खाड़ी देशों बल्कि यूरोप और अन्य देशों में भी हमारा मटर तहलका मचा सकता है।
मटर की प्रोसेसिंग प्लांट के लिए कुछ खास नहीं किया जा सका है। मटर मेला लगाकर हम इसे लोगों के बीच तो ले आए लेकिन हमें तो दुनिया तक इसे ले जाना होगा और इसके लिए बड़े प्लांट बनाने होंगे, बड़े वेयरहाउस बनाने होंगे जहाँ मटर हमेशा ताजे बने रहें।
पर्यटन में बड़ी संभावनाएँ
टूरिज्म सेक्टर की बात की जाए तो एक समय भेड़ाघाट को देखने देशी पर्यटकों के साथ ही बड़ी संख्या में विदेशी पर्यटक भी आते थे, आते आज भी हैं लेकिन इनकी संख्या लगातार कम होती जा रही है, इसकी मुख्य वजह यहाँ एयर कनेक्टिविटी के पर्याप्त साधन नहीं हैं।
बड़े शहरों से जितनी फ्लाइटें खजुराहो और उज्जैन को मिली हैं उतनी यहाँ नहीं हैं। इच्छाशक्ति हो तो खजुराहो, कान्हा, बांधवगढ़ के साथ जबलपुर का सर्किट बनाया जा सकता है।
डिफेंस क्लस्टर का दर्द
जबलपुर में पाँच आयुध निर्माणियाँ हैं। इनमें गोला-बारूद से लेकर तोप और वाहन तक बनते हैं लेकिन जब डिफेंस क्लस्टर की बात आई तो भोपाल ने बाजी मार ली। पिछले कुछ िदनों से डिफेंस सेक्टर में इस बात के प्रयास किए जा रहे हैं कि आयुध निर्माणियों में बनने वाले सारे आयुधों के पार्ट्स लोकल स्तर पर ही बनाए जाएँ।
इसके लिए कई एक्सपो भी हो चुके हैं और यह कहा जा सकता है कि इस क्षेत्र में प्रगति हो रही है और भविष्य में इसके परिणाम देखने मिलेंगे। यह कॉन्क्लेव डिफेंस सेक्टर के लिए संजीवनी का काम कर सकती है।
धरती में हैं खनिजों के भंडार
काॅन्क्लेव में खनिज सेक्टर को भी प्रमुखता दी गई है। इस सेक्टर में कहा जाए तो अभी हम बहुत पीछे हैं। औद्योगिक क्षेत्र से जुड़े लोगों के अनुसार कटनी में आयरन ओर के साथ मार्बल व डोलोमाइट की कई खदानें हैं।
इसके साथ ही जबलपुर और मंडला में भी बड़ी संख्या में डोलोमाइट की खदानें हैं। देश के साथ ही अन्य देशों में भी बहुत जगह माइक्रोमेजिंग प्लांट लगाए गए हैं जिसमें डोलोमाइट को 1 हजार गुना तक बारीक किया जाता है। मंडला में एक कम क्षमता का प्लांट लगा है और कुछ उद्योगपति जबलपुर में बड़ा प्लांट लगाने की कोशिश में हैं।
कपड़ा, परिधान सेक्टर
वैसे तो रेडीमेड गारमेंट के क्षेत्र में जिले ने नाम कमाया है लेकिन इसमें अभी भी बहुत कुछ बाकी है। बड़े उद्योगपति इस सेक्टर में आकर हजारों युवाओं को मौका दे सकते हैं और बड़े स्तर पर सलवार-सूट और जीन्स का उत्पादन करवा सकते हैं। जबलपुर में बने सलवार-सूट पूरे देश में जा रहे हैं आने वाले समय में इसमें और संभावनाएँ इस कॉन्क्लेव से बन सकती हैं।