जबलपुर: कोर्ट के आदेश पर जॉइनिंग नहीं देना अवमानना की श्रेणी में आता है
- हाई कोर्ट ने मप्र पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी के अधिकारियों पर लगाई 25 हजार की कॉस्ट
- 30 दिन के भीतर जुर्माने की राशि याचिकाकर्ता को अदा करने के निर्देश दिए
- कोर्ट ने याचिकाकर्ता पर 25 हजार रुपए की कॉस्ट लगाई थी
डिजिटल डेस्क,जबलपुर। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने एक मामले में कहा कि स्पष्ट आदेश के बावजूद कर्मचारी को जॉइनिंग नहीं देना निश्चित ही अवमानना की श्रेणी में आता है। चूँकि मप्र पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी ने अपनी गलती स्वीकार की है और माफी माँगी है, इसलिए अवमानना की कार्रवाई निरस्त की जाती है।
लेकिन आदेश का पालन नहीं करने पर कंपनी के एमडी अनय द्विवेदी, सीजीएम नीता राठौर, सीई कांतिलाल वर्मा व अन्य पर 25 हजार रुपए की कॉस्ट लगाई है। जस्टिस एमएस भट्टी की एकलपीठ ने अनावेदकों को 30 दिन के भीतर जुर्माने की राशि याचिकाकर्ता को अदा करने के निर्देश दिए।
टीकमगढ़ निवासी जितेन्द्र तंतुवाय की ओर से अधिवक्ता विकास महावर ने पक्ष रखा। उन्होंने बताया कि याचिकाकर्ता प्रोग्रामर के पद पर पदस्थ है। उसका तबादला टीकमगढ़ से रीवा कर दिया गया था। एक साल में तीसरा तबादला किया गया, इसलिए हाई कोर्ट में चुनौती दी गई।
हाई कोर्ट ने 9 फरवरी 2023 को अनावेदकों को निर्देश दिए कि याचिकाकर्ता के अभ्यावेदन पर निर्णय लें। यह भी कहा कि अभ्यावेदन के निराकरण तक याचिकाकर्ता को वर्तमान पदस्थापना में ही कार्य करने दें। जब याचिकाकर्ता ने टीकमगढ़ में जॉइनिंग दी तो चीफ इंजीनियर ने एक आदेश जारी कर जॉइनिंग देने से इनकार कर दिया।
दलील दी गई कि यह कोर्ट के आदेश की अवहेलना है। कंपनी के अधिकारियों की ओर से जवाब प्रस्तुत कर माफी माँगी गई और कहा गया कि उनसे अनजाने में चूक हुई है। उनका इरादा कोर्ट की अवहेलना करना नहीं था।
दस हजार से अधिक ओबीसी परिवारों ने सहयोग कर जमा कराई जुर्माने की राशि
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने ओबीसी के 27 फीसदी आरक्षण से जुड़े मामले सूचिबद्ध नहीं किए जाने को लेकर दायर अवमानना याचिका पर 25 हजार रुपए की काॅस्ट लगाई थी। अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर व विनायक शाह ने बताया कि 10 हजार से अधिक ओबीसी परिवारों ने जुर्माने की राशि एकत्र की। यह राशि हाई कोर्ट में जमा करा दी गई। दरअसल, सिंगरौली निवासी बृजेश कुमार शहवाल ने अवमानना याचिका दायर कर बताया कि डिवीजन बेंच ने ओबीसी आरक्षण के प्रकरणों में 4 अगस्त को निर्देश दिए थे 4 सितंबर को सुनवाई नियत करें।
दलील दी गई थी कि रजिस्ट्री के अधिकारियों ने प्रकरण सूचीबद्ध नहीं किए हैं। इस पर तत्कालीन रजिस्ट्रार-जनरल रामकुमार चौबे, प्रिंसिपल रजिस्ट्रार हेमंत जोशी व रजिस्ट्रार न्यायिक संदीप शर्मा के विरुद्ध अवमानना याचिका दायर की गई थी।
चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि कई बार आदेश के बावजूद प्रकरण सूचीबद्ध नहीं होता, लेकिन इसके लिए रजिस्ट्री के अधिकारी अवमानना के लिए दोषी नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने याचिकाकर्ता पर 25 हजार रुपए की कॉस्ट लगाई थी। कॉस्ट जमा करने पर कोर्ट ने आश्वासन दिया कि अगले सप्ताह प्रकरण सूचिबद्ध किए जाएँगे।