बच्चे कितने भी होनहार क्यों न हों, पढ़ना पड़ेगा बारिश में भीग कर एकीकृत प्राथमिक माध्यमिक शाला हाथीताल के बदतर हालात
छप्पर का पता नहीं, शीट से रिसता है पानी, टाॅयलेट हो रहे ओवरफ्लो
डिजिटल डेस्क,जबलपुर।
थोड़ी देर के लिए ऐसे स्कूल की कल्पना करके आप भी देखिए, जहाँ छप्पर ही न हों। शीटें डाली गई हैं जिनसे बारिश का पानी मोटी धार के रूप में कक्षा में टपकता है। टाॅयलेट ओवरफ्लो है और बाहर के मैदान में घुटने तक पानी…! यह तस्वीर कहीं दूर-दराज के ग्रामीण क्षेत्र की नहीं बल्कि मुख्यालय में ही एकीकृत प्राथमिक माध्यमिक शाला हाथीताल की है। यहाँ के बच्चे बड़े होनहार हैं लेकिन उनकी किस्मत में बारिश में भीग कर ही पढ़ना लिखा है।
टॉयलेट की दुर्दशा
स्कूल में बने टॉयलेट बच्चों के लिए सिरदर्द साबित हो रहे हैं। छात्र व छात्राओं के भले ही अलग-अलग टॉयलेट हों लेकिन दोनों ही बदतर स्थिति में हैं। ये टॉयलेट इसलिए नहीं जाना चाहते क्योंकि वो गंदगी से सराबोर है, साथ ही इससे जुड़ा टैंक भी ओवरफ्लो है। यह स्कूल पहली से आठवीं तक के छात्र-छात्राओं के लिए है।
1930 का स्कूल, बदइंतजामी ने जकड़ा
आदि शंकराचार्य चौक पर स्थित स्कूल की दीवारें इसका अतीत बताती हैं। स्कूल की स्थापना वर्ष 1930 में कराई गई थी। आजादी के बाद उम्मीद की गई कि स्कूल के दिन फिरेंगे लेकिन स्कूल बदइंतजामी की गिरफ्त में चला गया। स्कूल की दुर्दशा दूर से ही नजर आती है। हैरानी की बात यह है कि कई बार शिक्षकों ने चिट्ठी लिखी लेकिन स्कूल के हालातों में कोई परिवर्तन नहीं हो सका।
स्कूल की व्यवस्थाओं में सुधार के लिए जिले से लेकर भोपाल तक लगातार पत्राचार किया जा रहा है लेकिन अभी तक कोई सुनवाई नहीं हो पाई है। स्कूल की स्थिति ठीक नहीं है। फंड मिलने पर सुधार कार्य कराए जाएँगे। -रवींद्र तिवारी, प्रधानाध्यापक।
8.50 लाख का एस्टीमेट, सेंक्शन 3.20, मिले सिर्फ 1.60 लाख
सरकारी सिस्टम के हालात संभवत: स्कूल से भी ज्यादा दयनीय हैं। यही वजह है कि स्कूल में बुनियादी व्यवस्थाओं को दुरुस्त करने के लिए कई वर्षों बाद एस्टीमेट बनाया गया। कैंची चला-चलाकर सिर्फ 8.50 लाख का बना। हैरानी वाली बात यह है कि ऊपर बैठे अधिकारियों को लगा कि इतना फंड तो बहुत ज्यादा है लिहाजा कटौती करते हुए महज 3.20 लाख रुपए सेंक्शन किए गए। टेंडर निकाला गया और बाद में काम भी शुरू हो गया। जैसे-तैसे मरम्मत होने के बाद जब भुगतान की बारी आई तो ठेकेदार को सिर्फ 1.20 लाख की रकम दी गई। नतीजा यह हुआ कि ठेकेदार ने काम ही बंद कर दिया। कुल मिलाकर बच्चों की किस्मत में वही बारिश का पानी है जो वर्षों से गिर रहा है।