जबलपुर: बिजली कंपनियों पर कर्ज, ब्याज की भरपाई जनता से

  • जेनको और वितरण कंपनी का मामला
  • वितरण कंपनी के खाते में रकम ही नहीं होगी तो पूरी देनदारी चुकाने में समर्थ कैसे हो सकती है।
  • बीते कुछ सालों में वितरण कंपनी की देनदारी बढ़ते-बढ़ते 9 हजार करोड़ पहुँच गई है।

Bhaskar Hindi
Update: 2024-02-15 13:05 GMT

डिजिटल डेस्क,जबलपुर। बहुत आश्चर्यजनक तरीके से दो बिजली कंपनियों के आपस का लेन-देन कर्ज की शक्ल ले चुका है और इस कर्ज का ब्याज सीधे तौर पर जनता की जेब से भरा जा रहा है।

भविष्य में कर्ज के कम होने की कोई सम्भावना नहीं है यानी आम उपभोक्ता पर ये गैर जरूरी आर्थिक बोझ बढ़ता ही जायेगा। इस मामले में कंपनियों के अधिकारियों का लापरवाही भरा रवैया चिंताजनक है और विद्युत नियामक आयोग का नजरिया चौंकाने वाला है।

एक तरफ बिजली को सुलभ और सस्ती करने पर जोर दिया जा रहा है, तो दूसरी ओर गुपचुप करोड़ों का ब्याज थोपा जा रहा है।

क्यों नहीं चुक रहा कर्ज -

वितरण कंपनी का कलेक्शन घटने के कारण ये नौबत आ गयी है। जानकारी के अनुसार, सरकारी योजनाओं के तहत उपभोक्ताओं को मुफ्त या कम दाम में दी जाने वाली बिजली वितरण कंपनी के लिए मुसीबत का सबब बन चुकी है।

वितरण कंपनी के खाते में रकम ही नहीं होगी तो पूरी देनदारी चुकाने में समर्थ कैसे हो सकती है।

कर्ज का ये खेल क्या है -

दरअसल, मध्यप्रदेश पॉवर जेनरेशन कम्पनी बिजली का उत्पादन करती है और वितरण कंपनी उस बिजली को उपभोक्ताओं तक पहुँचाती है। इसके एवज में वितरण कंपनी द्वारा जेनरेशन कंपनी को एक तय रकम देनी होती है।

बीते कुछ सालों में वितरण कंपनी की देनदारी बढ़ते-बढ़ते 9 हजार करोड़ पहुँच गई है। वैसे तो वितरण कंपनी लगातार भुगतान करती है पर पूरा भुगतान नहीं किया गया। नतीजा ये हुआ कि जेनरेशन कंपनी को इस रकम की भरपाई कर्ज लेकर करनी पड़ी, जिसका ब्याज सालाना 12 सौ करोड़ तक पहुँच जाता है।

कर्ज क्यों बन गया मजबूरी -

इधर, जेनको से जुड़े सूत्रों का कहना है कि यदि कंपनी प्राइवेट सेक्टर से कर्ज नहीं लेगी तो प्लांट के बंद होने की नौबत आ जायेगी, जो अच्छा नहीं होगा। हालांकि, जेनको के अधिकारियों ने भी मान लिया है कि यही नियति है।

जानकारों का कहना है कि सरकार और नियामक आयोग को मिलकर इस समस्या का निदान खोजना चाहिए।

बिजली कंपनियों पर लगातार कर्ज बढ़ता जा रहा है। इसके कारण एक बड़ी राशि कर्ज के ब्याज के रूप में बिजली कंपनी को देनी पड़ रही है। डिस्कॉम में भी पर्याप्त राशि नहीं मिल रही है।

किसी कंपनी का दोष तो नहीं है लेकिन समय और परिस्थितियों से यह स्थिति बनी है।

- मनजीत सिंह, एमडी, मप्र पॉवर जनरेटिंग कंपनी

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