Jabalpur News: बड़ा खेल- हजारों एकड़ सरकारी जमीन इधर की उधर

  • मिलीभगत से कहीं खिसकाकर तालाब में, तो कहीं पर पहाड़ों में दर्शा दिए चारागाह, सर्वे टीम भी हैरान
  • राजस्व विभाग द्वारा लगाए गए पहचान चिन्हों (चाँदों-मुनारों) को ही इधर से उधर कर दिया है।
  • शासकीय जमीनों में अवैध कब्जों की जाँच कराई जा रही है।

Bhaskar Hindi
Update: 2024-11-20 13:46 GMT

Jabalpur News: चारागाहों यानी कि घास मद की हजारों एकड़ जमीन पर दबंगों ने कब्जा कर रखा है। अरबों रुपए कीमत की इस जमीन को कब्जों से मुक्त कराने के लिए प्रशासन ने कवायद भी शुरू कर दी है। चट्टान, पहाड़, गोठान और घास मद की जमीनों का सर्वे शुरू किया गया है।

इसमें हैरान करने वाले खुलासे भी हो रहे हैं। जानकारों के अनुसार ज्यादातर स्थानों पर यह गफलत सामने आ रही है कि राजस्व विभाग के तत्कालीन अधिकारी-कर्मचारियों ने प्रभावशाली लोगों के साथ मिलीभगत करके जमीनों की सीमा को तय करने के लिए राजस्व विभाग द्वारा लगाए गए पहचान चिन्हों (चाँदों-मुनारों) को ही इधर से उधर कर दिया है।

नतीजा ये सामने आ रहा है कि नक्शा और मौके पर जाँच में किसी गाँव-कस्बे में चारागाह की जमीनें पहाड़ों-तालाबों और चट्टानों में, तो कहीं पर किसानों के खेतों में दिखाई दे रही हैं। इन हालातों ने सर्वे में तैनात टीम की चुनौती को और भी बढ़ा दिया है।

क्या हैं चाँदा और मुनारा

राजस्व विभाग से जुड़े जानकारों के अनुसार शासन द्वारा गाँवों और कस्बों में ही नहीं, बल्कि शहरों में भी जमीनों की चौहद्दी यानी सीमा तय करने के लिए पत्थर व अन्य पहचान चिन्ह लगवाए गए थे। इन पहचान चिन्हों को राजस्व की भाषा में चाँदा-मुनारा कहा जाता है।

इन्हें खेतों की मेढ़ पर या फिर ऐसे स्थान पर लगाया गया था कि नाप-जोख के समय नक्शे से मिलान करते ही यह पता चल जाए कि गोठान, चट्टान, पहाड़ व घास मद यानी कि चारागाह मद की जमीनें कहाँ-कहाँ पर स्थित हैं। हैरान करने वाली बात यह है कि कई गाँवों-कस्बों में इन्हें निर्धारित जगह से खिसका दिया गया है या फिर उखाड़कर ही फेंक दिया गया है। शहरों में ये मुनारें पूरी गायब ही हो चुकी हैं।

अब हालात ये बन रहे हैं राजस्व विभाग की टीम खुद पता नहीं लगा पा रही है कि किस मद की जमीन कहाँ पर स्थित है। बताया जा रहा है कि मुनारों और पहचान चिन्ह या मुनारें गायब होने के कारण अब सैटेलाइट से भी जाँच चुनौतीपूर्ण हो गई है। जानकारों का कहना है कि पहचान चिन्ह नहीं होने की वजह से गाँवों में शासकीय जमीन को चिन्हित कर पाना मुश्किल हो सकता है।

शासकीय जमीनों में अवैध कब्जों की जाँच कराई जा रही है। जहाँ मुनारों में गड़बड़ी हुई है उसे सैटेलाइट, नक्शों के माध्यम से वैरीफाई किया जाएगा।

-दीपक सक्सेना, कलेक्टर

अरबों रुपए मूल्य की शासकीय जमीनों पर कब्जा

प्राप्त जानकारी के अनुसार जिले में 1508 गाँव हैं और इनमें बमुश्किल ही ऐसा कोई गाँव बचा है, जहाँ पर गोठान, हरीघास मद और चरनोई की भूमि पर अवैध कब्जा न हो। यहाँ तक कि चट्टानों और पहाड़ मद में दर्ज हजारों एकड़ जमीन पर भी कब्जा हो चुका है। केवल गोठान और घास मद की बात करें तो जिले में 39971 हेक्टेयर भूमि चारागाहों के लिए आरक्षित है। जानकार बताते हैं कि इसमें से करीब 18 हजार हेक्टेयर यानी कि लगभग 45 हजार एकड़ से अधिक जमीन पर अवैध कब्जे हो चुके हैं।

इन पर फसलें लहलहा रही हैं। इस जमीन की कीमत अरबों रुपए में है। बताया जाता है कि कब्जाधारी इतने दबंग हैं कि गाँव के लोग उनके खिलाफ आवाज नहीं उठा रहे हैं। जहाँ पर शिकायतें भी हुईं तो वे तहसील कार्यालयों की फाइलों में दफन कर दी गईं। राजनीतिक हस्तक्षेप या फिर मिलीभगत के कारण उन पर आज तक कोई कार्रवाई नहीं हो पाई।

अधिकार अभिलेख या पुराने रिकाॅर्ड से किया जाए मिलान-

जानकारों का मानना है कि सरकार को नई गौशालाओं के निर्माण में राशि खर्च करने की बजाय गोठान, तालाब, पहाड़ और घास मद की जमीनों को कब्जे से मुक्त कराना चाहिए। इससे जहाँ मवेशी सुरक्षित होंगे, वहीं पशुपालन को भी पूर्व की तरह बढ़ावा मिलेगा। जिला प्रशासन यदि 1990 के पूर्व का बंदोबस्त रिकाॅर्ड या 1956 का अधिकार अभिलेख निकलवाकर जाँच करे तो पूरे कब्जे बेनकाब हो सकते हैं।

न पहाड़ बचे और न ही गोठान

प्राय: देखने में आ रहा है कि मवेशी सड़कों को अपना ठिकाना बना रहे हैं। इसके कारण आए दिन गंभीर सड़क हादसे भी हो रहे हैं। पशुपालकों का तर्क है कि गोठान, चट्टान, पहाड़ और घास मद की जमीनों पर हो चुके अवैध कब्जे भी इस समस्या की जड़ हैं। आखिर मूक मवेशी कहाँ जाएँ?

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