जबलपुर: पहली बार पहली कक्षा में सिर्फ 4-4 छात्रों का ही एडमिशन

  • महज 4852 छात्रों ने लिया दाखिला, शिक्षा विभाग की परेशानी बढ़ी
  • पिछले साल कक्षा पहली में जिले में 13,351 छात्रों ने प्रवेश लिया था
  • स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा बच्चों को स्कूल लाने के लिए कई तरह के सर्वे सहित स्कूल चलो अभियान शुरू किया गया

Bhaskar Hindi
Update: 2024-07-24 11:57 GMT

डिजिटल डेस्क,जबलपुर। सरकारी स्कूलों में इस बार कक्षा पहली में एडमिशन की स्थिति बहुत खराब है। औसत के हिसाब से देखा जाए तो आँकड़ा बमुश्किल 4 छात्र तक ही पहुँच रहा। 30 से 35 फीसदी एडमिशन की स्थिति ने शिक्षा विभाग की हैरानी बढ़ा दी है।

पिछले साल कक्षा पहली में जिले में 13,351 छात्रों ने प्रवेश लिया था लेकिन इस बार यह आँकड़ा 4852 तक ही पहुँच पाया है। जिले में सरकारी प्राथमिक स्कूलों की संख्या 1093 है और अब तक पहली कक्षा में हुए दाखिले के हिसाब से प्रति कक्षा में 4 छात्रों ने ही प्रवेश लिया है। इसमें ऐसे भी कई स्कूल हैं जिनमें एक भी एडमिशन नहीं हो पाया।

उम्र के गणित ने उलझाया

पता चला है कि कक्षा पहली में प्रवेश के लिए स्कूल शिक्षा विभाग ने एक आदेश जारी किया था, जिसमें एडमिशन के लिए 1 अप्रैल 2024 को आयु सीमा 6 वर्ष निर्धारित की गई थी। इस आदेश के कारण कई स्कूलों में एडमिशन नहीं हो सके।

जानकारों का मानना है कि पहले 5 से साढ़े पाँच साल के बच्चों का एडमिशन पहली कक्षा में हो जाता था, लेकिन ऐन वक्त पर आए इस आदेश की वजह से दाखिला लेने वाले कई छात्र प्रक्रिया से ही बेदखल हो गए।

आनन-फानन में बदला आदेश

जब शासन स्तर पर पूरे प्रदेश के प्राइवेट और सरकारी स्कूलों की एडमिशन प्रक्रिया की पोर्टल पर जाँच की गई तो पता चला कि एडमिशन पिछले साल की तुलना में आधे से भी कम हैं। आनन-फानन में 23 जुलाई को नया आदेश जारी किया गया।

जिसमें 1 अप्रैल के स्थान पर 30 सितंबर को आधार मानकर प्राथमिक कक्षा में दाखिले की आयु सीमा निर्धारित की गई। अब शिक्षा विभाग इस उम्मीद में हैं कि आयु सीमा बढ़ने से बच्चों के दाखिले में तेजी आएगी। वैसे भी जुलाई का महीना समाप्ति की ओर है अब कितने एडमिशन हो पाएँगे यह आने वाले समय में ही पता चलेगा।

काम नहीं आया स्कूल चलो अभियान

स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा बच्चों को स्कूल लाने के लिए कई तरह के सर्वे सहित स्कूल चलो अभियान शुरू किया गया, जिसमें महकमे ने पूरी ताकत झोंकी। इसके बाद भी वे बच्चों को स्कूल लाने में सफल नहीं हो पाए।

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