जालना: जैन समाज के वरिष्ठ आचार्यश्री विरागसागरजी का देवलोकगमन, शोक की लहर
- जैन समाज के वरिष्ठ आचार्यश्री का देवलोकगमन
- आचार्यश्री विरागसागरजी के देवलोकगमन से शोक की लहर
डिजिटल डेस्क, जालना। देवमूर्ति ग्राम के पास जैन समाज के वरिष्ठ, प्रभावशाली संत, गणाचार्यश्री विरागसागरजी गुरुदेव का गुरुवार आधी रात ढाई बजे देवलोकगमन हुआ। विरागसागरजी अपने शिष्यों के साथ छत्रपति संभाजीनगर के अरिहंतनगर में चातुर्मास करनेवाले थे। उनके देवलोकगमन से जैन समाज में शोक में डूबा हैं। आचार्यश्री विरागसागरजी का गृहावस्था का नाम अरविंद जैन था, उनके पिता कपूरचंद जैन और माता का नाम श्यामादेवी था।
2 मई 1963 को उनका जन्म पथरिया जिला दमोह में हुआ था। उनके पिता ने क्षुल्लक दीक्षा ली थी, उनका नाम समाधिस्थ विश्ववंधसागर था, उनकी माता ने भी दीक्षा ली थी, वह समाधिस्थ आर्यिका विश्रांतश्री माताजी थीं। उन्होंने क्षुल्लक दीक्षा आचार्यश्री सन्मतिसागरजी गुरुदेव से 2 फरवरी 1980 को ग्राम बुढार शहडोल में ली थी।क्षुल्लक अवस्था आचार्यश्री सन्मतिसागरजी गुरुदेव के साथ 1981 में नागपुर के श्री दिगंबर जैन सेनगण मंदिर में चातुर्मास हुआ था।
मुनि दीक्षा 9 दिसंबर 1983 में औरंगाबाद हुई थी। मुनि दीक्षा आचार्यश्री विमलसागरजी गुरुदेव ने दी थी दीक्षा के बाद उनका नाम मुनि विरागसागर रखा गया। 8 नवंबर 1992 को आचार्य पद पर प्रतिष्ठापित हुए। उनकी पांचवी तक शिक्षा पथरिया में हुई। ग्यारहवीं और धार्मिक शिक्षा श्री शांति निकेतन दिगंबर संस्था कटनी में हुई।
गणाचार्यश्री विरागसागरजी गुरुदेव सृजनशील चिंतक थे। अपने चिंतन की छाप करनेवाले उनके साहित्य हैं। शुद्धोपयोग, आगम चकखू साहू, सम्यक दर्शन, सल्लेखना से समाधि, तीर्थंकर कैसे बने, कर्म विज्ञान, चैतन्य चिंतन, साधना, आराधना के साथ कई ग्रंथों का सृजन किया हैं। गुरुदेव के देशभर में 350 से अधिक शिष्य धर्म प्रभावना कर रहे हैं।