औरंगाबाद खंडपीठ: जालना जिलाधिकारी को लगी कॉस्ट, सुनवाई के बाद निर्णय नहीं देने का है मामला
- जिलाधिकारी को कॉस्ट लगी
- सुनवाई के बाद निर्णय नहीं दिया
- मुख्यालय में नहीं रहने वाले शिक्षक, अन्य कर्मियों पर सख्ती से कार्रवाई की मांग की याचिका दायर
डिजिटल डेस्क, छत्रपति संभाजीनगर। सुनवाई के बाद समय पर निर्णय नहीं देने से दायर याचिका में जालना के जिलाधिकारी को 101 रुपए कॉस्ट भरने का आदेश बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद खंडपीठ ने दिया। न्यायमूर्ति रवींद्र घुगे और न्यायमूर्ति वाई.जी. खोब्रागड़े की पीठ ने फैसला देकर याचिका का निपटारा किया। दरअसल पांगरी (तह. मंठा) के किसान नारायण काले ने ग्रामसभा में अनियमिताओं के खिलाफ जिलाधिकारी से शिकायत की थी। मामले में जिलाधिकारी ने ग्रांम पंचायत अधिनियम की धारा 7 और 36 के अनुसार कार्रवाई शुरू कर सुनवाई की थी। सुनवाई के बाद प्रकरण 30 जनवरी, 2024 को निर्णय के लिए सुरक्षित रखा था। काले ने निर्णय की जानकारी के लिए जनवरी-जून के दौरान पांच बार ज्ञापन दिए, लेकिन जिलाधिकारी कार्यालय ने निर्णय की कोई जानकारी नहीं दी। इस कारण काले ने जिलाधिकारी कार्यालय के खिलाफ एड. प्रशांत बोराडे के जरिए खंडपीठ में याचिका दायर की थी। सुनवाई के दौरान जिलाधिकारी ने पहले आदेश देकर आवेदक को डाक से आदेश की कॉपी भेजने की बात कही थी। इस पर याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि निर्णय की कॉपी मिलती, तो उन्हें खंडपीठ जाने जरूरत थी। सुनवाई के बाद खंडपीठ ने आदेश दिया।
मुख्यालय में नहीं रहने वाले शिक्षक, अन्य कर्मियों पर सख्ती से हो कार्रवाई, याचिका दायर
उधर दूसरे मामले में खंडपीठ ने राज्य सरकार और जिला परिषद को नोटिस भेजा है। जिसके तहत राज्य सरकार ने 2019 में परिपत्र के जरिए कर्मचारियों को मुख्यालय में रहने के निर्देश दिए हैं। उस परिपत्रक पर सख्ती से अमल करने के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद खंडपीठ में दायर जनहित याचिका की प्राथमिक सुनवाई में मुख्य न्यायमूर्ति देवेंद्र कुमार उपाध्याय व न्यायमूर्ति किशोर संत की पीठ ने राज्य सरकार और जिला परिषद को नोटिस जारी करने का आदेश दिया। याचिका पर अगली सुनवाई 23 अगस्त को होगी। दरअसल वडगांव-रामपुरी (तह. गंगापुर) के निवासी गणेश बोराडे ने राज्य और केंद्र सरकार को ज्ञापन दिया था कि जिला परिषद स्कूल के शिक्षक, पटवारी, ग्रामसेवक, कृषि सहायक, वायरमैन, आरोग्य सेवक मुख्यालय में नहीं रहते। इस कारण आम जनता व किसानों का नुकसान होता है। जिला परिषद के शिक्षकों के शहर में रहने का मुद्दा विधायक प्रशांत बंब ने भी विधानसभा में उठाया था। नियम के अनुसार शिक्षक, पटवारी, ग्रामसेवक, आरोग्य सेवक, कृषि सहायक, वायरमैन का मुख्यालय में रहना आवश्यक है। याचिकाकर्ता के ज्ञापन का संज्ञान नहीं लेने से उन्होंने एड. रवींद्र गोरे के जरिए औरंगाबाद खंडपीठ में जनहित याचिका दायर की। शासन परिपत्रक का अमल नहीं होने से ग्रामीण भाग के नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों का उल्लघंन होने की बात याचिका में कही गई। याचिका पर प्राथमिक सुनवाई शु्क्रवार को होने पर प्रतिवादियों को नोटिस जारी करने का आदेश दिया। राज्य सरकार की ओर से एड. महेंद्र नेरलीकर कामकाज देख रहे हैं।