किसान निराश: प्याज उत्पादकों में बढ़ रहा असंतोष !

  • प्याज उत्पादक किसान निराश
  • निर्यात प्रतिबंध के कारण कुंटुबा की मेहनत बर्बाद हो गई - शीतल गोरे, अपसिंगा

Bhaskar Hindi
Update: 2023-12-29 15:45 GMT

डिजिटल डेस्क, तुलजापुर। एक तरफ तालिका के किसान नकदी फसल के रूप में प्याज को बड़ी उम्मीद से देख रहे हैं, वहीं निर्यात प्रतिबंध ने प्याज उत्पादक किसानों को निराश कर दिया है| अब किसानों के सामने सवाल है कि वह कौन सी फसल उगाएं कि उससे परिवार चला सकें| केंद्र सरकार ने प्याज के निर्यात पर रोक लगा दी है| यह रोक 31 मार्च तक जारी रहेगी| इसका असर प्याज की कीमत पर पड़ा है. प्याज निर्यात पर रोक से किसानों में सरकार के प्रति गुस्सा पैदा हो गया है|

हालांकि केंद्र और राज्य सरकारें कहती हैं कि वे किसानों के पक्ष में हैं, लेकिन तथ्यों में बहुत बड़ा अंतर है| किसान अपने खेतों में फसल पैदा करने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं| एक फसल पैदा करने में आमतौर पर तीन से चार महीने लगते हैं| जब वह फसल कटाई के लिए आती है तो सरकार उसके निर्यात पर प्रतिबंध लगा देती है| इसका किसानों की उस फसल की कीमत पर बड़ा असर पड़ता है| सरकार के एक फैसले से किसानों के हाथ से घास छिनती जा रही है| पिछले सीजन में सोयाबीन की बंपर पैदावार के बाद सरकार ने सोयाबीन पर निर्यात प्रतिबंध भी लगा दिया था| इतना ही नहीं, तेल आयात करने का भी फैसला किया| सरकार के इस फैसले से सोयाबीन किसानों पर संकट आ गया है| जब किसान की फसल बाजार में आती है तो ऐसे फैसले लिए जाते हैं जो किसानों के लिए घातक होते हैं| यह आरोप किसानों द्वारा लगाया जा रहा है| एक जरूरतमंद किसान अपनी फसल को जो भी कीमत मिल सके बेच देता है| वे व्यापारियों से फसल खरीदते हैं| वे इसे संग्रहीत करते हैं| कुछ समय बाद सरकार अपना निर्यात प्रतिबंध वापस ले लेती है| उसके बाद उस फसल का रेट बढ़ जाता है| देखा जाए तो यह पद्धति कई वर्षों से चली आ रही है| सरकार के एक फैसले का किसानों के उत्पादन पर दूरगामी असर पड़ता है|

यही हाल प्याज की फसल का भी हो गया है| महाराष्ट्र देश का प्रमुख प्याज उत्पादक राज्य है| प्याज निर्यात प्रतिबंध का सबसे ज्यादा असर किसानों पर पड़ रहा है| प्याज उत्पादक किसानों के खेतों में प्याज का सीजन खत्म होने के बाद प्याज निर्यात प्रतिबंध हटने से क्या फायदा? ये सवाल प्याज उत्पादक पूछ रहे हैं|

निर्यात प्रतिबंध के कारण कुंटुबा की मेहनत बर्बाद हो गई - शीतल गोरे, अपसिंगा

पिछले कुछ सालों से प्याज को भाव नहीं मिल रहा है| जबकि इस साल निर्यात पर प्रतिबंध के कारण प्याज 35 से 40 रुपये प्रति किलो मिल रहा है, लेकिन प्याज पैसे तो क्या, मेहनत के पसीने के भी लायक नहीं है| निर्यात प्रतिबंध हटने पर ही प्याज उत्पादक जिंदा रहेंगे| अंगूर और प्याज के दाम नहीं मिलने से किसान आर्थिक संकट में चला गया है| वह तभी बचेगा जब सरकार किसान की उपज का उचित मूल्य देगी और उसे आर्थिक संकट से बाहर निकालेगी| तभी वह जीवित रहेगा|


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