परिवर्तन: आरएसएस में बदलाव के कयास, होसबले दोबारा सरकार्यवाह बनेंगे या चुना जाएगा नया चेहरा

  • 15 मार्च से नागपुर में होगी प्रतिनिधि सभा
  • लोकसभा चुनाव को लेकर तय होगी संगठनात्मक रणनीति
  • संगठन प्रतिनिधि के तौर पर भाजपा के अध्यक्ष जेपी नड्डा या संगठन मंत्री भी हो सकते हैं शामिल

Bhaskar Hindi
Update: 2024-02-22 11:01 GMT

डिजिटल डेस्क, नागपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संगठनात्मक बदलाव के कयास लगाए जा रहे हैं। 15, 16 व 17 मार्च को रेशमबाग स्थित हेडगेवार भवन में संघ की प्रतिनिधि सभा का आयोजन किया जा रहा है। प्रतिनिधि सभा में संघ के दूसरे प्रमुख माने जाने वाले सरकार्यवाह का चुनाव भी होता है। लिहाजा कयास लगाए जा रहे हैं कि संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले दोबारा सरकार्यवाह चुने जाएंगे या फिर उनके स्थान पर कोई नया चेहरा चुना जाएगा। संघ की प्रतिनिधि सभा में संघ कार्य के संबंध में रणनीतिक निर्णय लिए जाते हैं। नई नीतियां तय होती है। ऐसे में माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव को लेकर संघ की नई रणनीति सामने आ सकती है। इस सभा में संगठन प्रतिनिधि के तौर पर भाजपा के अध्यक्ष जेपी नड्डा या संगठन मंत्री भी शामिल हो सकते हैं।

3 वर्ष में चुनाव आरएसएस में सरसंघचालक को छोड़कर अन्य पदों के लिए 3 वर्ष में चुनाव होता है। संघ की प्रतिनिधि सभा संगठन चुनाव के मामले में महत्वपूर्ण रहती है। 2021 को छोड़ अभी तक संघ की प्रतिनिधि सभा नागपुर में ही हुई है। चुनाव प्रक्रिया के तहत सबसे पहले 42 प्रांत, 11 क्षेत्र संघचालक, महानगरों के संघचालकों का चुनाव किया जाता है। सरकार्यवाह के पहले संघचालक, महानगर संघचालक, विभाग संघचालक चुने जाते हैं। क्षेत्र संघचालक का चुनाव प्रतिनिधि सभा की बैठक में पहले दिन ही किया जाता है। वर्ष 2021 में बेंगलुरु में प्रतिनिधि सभा में दत्तात्रेय होसबले को सरकार्यवाह चुना गया था। वे कर्नाटक के शिमोगा के हैं।

चयन में पदाधिकारियों की सहमति की आवश्यकता नहीं समझी : संघ में अन्य संगठनों के समान राजनीतिक या अधिकार की स्पर्धा नहीं दिखती है। लेकिन सरकार्यवाह व भाजपा के लिए संगठन मंत्री चुने जाने के मामले में यह अवश्य कहा जाता रहा है कि संबंधित पदाधिकारी सबसे अधिक किसके करीब है। वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में भाजपा गठबंधन ने बहुमत के साथ सत्ता पाई। उसके बाद संघ से जुड़े संगठनों में पदाधिकारियों के दायित्व में बदलाव को लेकर राजनीतिक कयास लगाए जाते रहे। विहिप के प्रमुख रहे प्रवीण तोगड़िया को नया संगठन तैयार करना पड़ा। विश्व हिंदू परिषद में पदाधिकारी चयन में संघ के कुछ पदाधिकारियों की सहमति की आवश्यकता नहीं समझी गई। दत्तात्रेय होसबले को सरकार्यवाह की जिम्मेदारी सौंपने की चर्चा होती रही। लेकिन तत्कालीन सरकार्यवाह भैयाजी जोशी लगातार 4 बार सरकार्यवाह चुने गए। लिहाजा अब सवाल है कि होसबले दोबारा चुने जाएंगे या अन्य चेहरे को मौका मिलेगा।

रणनीति के लिए निर्णायक : सरकार्यवाह ही निर्णायक संघ में सरसंघचालक भले ही सर्वेसर्वा होते हैं। लेकिन संगठन मामले में वे केवल संरक्षक की भूमिका में रहते हैं। सरकार्यवाह ही संगठन की विविध रणनीति के लिए निर्णायक होते हैं। भाजपा सहित अन्य सहयोगी संगठनों के लिए संघ की रणनीति अथवा दिशा निर्देश सरकार्यवाह की ओर से ही जारी होते हैं। सरकार्यवाह को सहयोग के लिए संघ में सह सरकार्यवाहों की संख्या बढ़ा दी गई है। प्रतिनिधि सभा में संघ के विविध संगठन अपने कार्यों की रिपोर्ट रखेंगे। साथ ही संगठनों के कार्यों के संबंध में सुझाव व समीक्षा भी करेंगे।

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