भास्कर एक्सक्लूसिव: वो दस स्टार्स, राजनीति में नहीं चमका जिनका सितारा, कोई एक तो कोई दो चुनाव के बाद हुआ गायब

वो दस स्टार्स, राजनीति में नहीं चमका जिनका सितारा, कोई एक तो कोई दो चुनाव के बाद हुआ गायब
  • अमिताभ बच्चन भी राजनीति में आजमा चुके हैं हाथ
  • गोविंदा भी 2004 में कांग्रेस से लड़ चुके हैं चुनाव
  • राजेश खन्ना भी कांग्रेस से लड़ चुके हैं चुनाव

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। देश के बड़े-बड़े राजनीतिक दलों में आपको कोई न कोई अभिनेता या अभिनेत्री देखने को मिल ही जाएंगे। सिनेमा और पॉलिटिक्स का यह गठजोड़ देश के लगभग हर चुनाव में देखने को मिलता है। इसे ''सिपॉ'' कहा जाता है। जिसका मतलब (सिनेमा और पॉलिटिक्स) होता है। इस गठजोड़ से अभिनेता और राजनितिक दल दोनों को चुनाव में फायदा मिलता है। पॉलिटिकल पॉर्टी अपने चुनाव प्रचार के लिए अभिनेता और अभिनेत्री के चेहरे का इस्तेमाल करते हैं। ताकि, अधिक से अधिक वोटों को बटोरा जा सके। फिल्मी सितारों को भी इसका बड़ा लाभ होता है। लेकिन कई बार इसका भारी नुकसान दोनों को चुकाना पड़ता है। इतिहास गवाह है कि ऐसे बहुत से अभिनेता हुए जिनका ''सिनेमा करियर'' पॉलिटिक्स ने खराब कर दिया। जो लोग किसी अभिनेता या अभिनेत्री को अपना आईडियल मानते थे, उनकी नजर में कलाकारों की छवि पॉलिटिक्स में आने के बाद खराब हो गई। और वे लोग अपने रियल फैंस खो बैठे। लेकिन कुछ ऐसे भी अभिनेता या अभिनेत्री हुए हैं, जिन्होने राजनिति ने अपना नाम तो कमाया इसके साथ ही सिनेमा में भी अपनी छवि को बरकरार रखा। बता दें कि तमिलनाडु के तीन मुख्यमंत्री फिल्मी स्टार रह चुके हैं। इसमें सीएन अन्नादुरई, एम. करुणानिधि, एम० जी० रामचन्द्रन (एमजीआर) और जयललिता भी शामिल हैं। इन लोगों ने बीते चार दशकों तक तमिल की राजनिति में दबादबा रहा। लेकिन यह कर पाना इन कलाकारों के लिए आसान भी नहीं होता है। आज के इस ऑर्टिकल में हम आपको अभिनेता से नेता हुए और उनके सफलता के साथ असफलता के बारे में भी आपको बताएंगे। आइए जानते इन राजनीति में आए कुछ कलकारों के बारे में जिन्होंने राजनीति में अपना एक अलग मुकाम बनाया।

1. शेखर सुमन

शेखर सुमन का नाम टेलीविजन इंडस्ट्री में अभिनेता, एंकर, निर्माता और निर्देशक के तौर मशहूर है। शेखर सुमन ने लोकप्रिय धारावाहिक वाह जनाब, फिर देख - भाई देख, मूवर्स एन शेकर्स, सिंपली शेखर, कैरी ऑन शेखर जैसे तमाम शो में काम किया है। इसके साथ ही शेखर फिल्म तेरे बिना क्या जीना, जान पहचान जैसे तमाम फिल्मों में भी काम कर चुके हैं।

2009 में पहली बार शेखर सुमन ने राजनीति की दुनिया में कदम रखा था। कांग्रेस पार्टी में शामिल होकर उन्होंने अपना राजनीतिक करियर शुरू किया। 2012 में शेखर सुमन को कांग्रेस कार्यकाल के दौरान पटना साहिब संसदीय क्षेत्र से अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा के खिलाफ खड़ा किया था। लेकिन किस्मत ने उनका साथ नहीं दिया। इस हार के बाद उन्होंने राजनीति से मुंह मोड़ लिया।

2. उर्मिला मातोंडकर

भारतीय सिनेमा जगत में उर्मिला मातोंडकर का नाम कौन नहीं जानता? एक ऐसी अभिनेत्री जिन्होंने अपने फिल्मी जीवन की शुरुआत एक बाल कलाकार के रूप में फिल्म कलयुग से 1980 में की थी। 1991 में उर्मिला मातोंडकर ने फिल्म नरसिम्हा में मुख्य अभिनेत्री के किरदार के रूप में नजर आईं। इसके बाद उनकी फिल्म रंगीला, जुदाई, सत्या से भी जनता का बहुत प्यार मिला।

उर्मिला मुंबई सीट से कांग्रेस की प्रत्याशी के रूप में पहली बार राजनीति में कदम रखा था। लेकिन उनको जीत नहीं मिली। राजनीति में कदम रखने के 6 महीने के भीतर ही उर्मिला ने पॉलिटिक्स को अलविदा कह दिया था। इसके बाद उन्होंने कभी भी राजनीति का रूख नहीं किया।

3. सुनील दत्त

सुनील दत्त एक ऐसा नाम जिसने सिनेमा के साथ राजनीति में भी अपनी एक अलग पहचान बनाई। सुनील दत्त को सिनेमा में योगदान के लिए 1968 में भारत सरकार द्वारा पद्म श्री से भी सम्मानित किया जा चुका है। सुनील दत्त ने अपने 48 वर्षों के करियर में बेहद प्रतिष्ठित फिल्में दी। इसमें एक ही रास्ता, मदर इंडिया, साधना जैसी चर्तित फिल्में शामिल हैं। इसके साथ ही राजनीति में भी उन्होंने बड़ा नाम कमाया है।

मुंबई उत्तर पश्चिम लोकसभा सीट से सुनील दत्त लगभग पांच बार चुनाव जीत चुके हैं। अपने राजनीतिक समय के दौरान सुनील दत्त संसद के बहस में भी भाग लेते थे। 1987 में जब पंजाब में उग्रवाद फैला हुआ था, उस दौरान सुनील दत्त ने महाशांति पदयात्रा निकाली थी। अपने यात्रा के दौरान सुनील 70 दिनों में 2000 किलो मीटर पैदल चलकर अमृतसर पहुंचे थे। लेकिन 1996 में सुनील दत्त विवादों में आ गए और उसके बाद उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा।

4. विनोद खन्ना

भारतीय अभिनेता, फिल्म निर्माता, निर्देशक और राजनेता विनोद खन्ना को कौन नहीं जानता? हंगामा, मस्ताना, एलान, रखवाला, एक हसीना दो दीवाने जैसे तमाम फिल्में देने वाले विनोद खन्ना ने राजनीति में भी बहुत नाम कमाया है।

1997 में बीजेपी ज्वाइन करने के बाद 1998 में बीजेपी के टिकट से चुनाव लड़ा और पहली बार पंजाब के गुरदासपुर लोकसभा सीट से सांसद चुने गए। फिर वे अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में विनोद खन्ना को केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन राज्य मंत्री बनया गया। इसके अलावा उनको विदेश राज्य मंत्री भी बनाया गया। आज भी गुरदासपुर की जनता विनोद खन्ना के कार्यकाल को याद करती है। अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने कथलौर पुल, मुकेरियां पुल, दरिया पुल और पठानकोट कैंट रेलवे स्टेशन जैसे तमाम निर्माण कार्य कराए थे। इसके साथ ही उन्होंने यहां पठानकोट-अमृतसर को फोरलेन और एयरपोर्ट से जोड़ा। जनता आज भी उनके इन कामों की तारीफ करती है। 2009 के लोकसभा चुनाव के बाद 2014 में फिर से चुनाव लड़ा और वे फिर से सांसद चुने गए।

5. शत्रुघ्न सिन्हा

प्रेम रोग, अधर्म, इरादा, कस्बा, बिल्लू बादशाह, जख्म जैसे तमाम फिल्में करने वाले शत्रुघ्न सिन्हा बॉलीवुड में 'शॉटगन' के नाम से जाने जाते हैं। बॉलीवुड में हीरो के रोल से अधिक चर्चा शत्रुघ्न के खलनायक के रोल की होती है। क्योंकि, अपने शुरुआती दिनों में वह खलनायक के रोल में ही नजर आए थे। शत्रुघ्न का यह रोल जनता को भी बहुत पसंद आया था। अपनी बुलंद आवाज में जैसे वो अपने किरदार को निभाया करते थे।

सिनेमा के आलावा राजनीति में भी उन्होंने बड़ा नाम कमाया है। लगभग तीन दशक से शत्रुघ्न राजनीति में सक्रिय हैं। शत्रुघ्न सिन्हा पहली बार राजनीति में 1992 में बॉलीवुड सुपरस्टार राजेश खन्ना के खिलाफ उपचुनाव लड़ा था। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में शत्रुघ्न सिन्हा को कैबिनेट मंत्री भी बनाया गया था। इसके साथ ही वह स्वास्थ मंत्रालय और शिपिंग जैसे विभागों के भी मंत्री रह चुके हैं। बिहार के पटना सीट और पटना साहिब सीट से शत्रुघ्न सिन्हा सांसद भी रह चुके हैं। बीजेपी में उन्होंने 28 साल का लंबा वक्त बिताने के बाद 2019 में कांग्रेस का दामन थाम लिया। लेकिन कुछ ही समय कांग्रेस में गुजारने के बाद उन्होंने टीएमसी में एंट्री ले ली। वर्तमान में शत्रुघ्न सिन्हा आसनसोल से टीएमसी के लोकसभा उम्मीदवार हैं।

6. राजेश खन्ना

एक जमाने में राजेश खन्ना का एक अलग ही दौर था। एक ऐसे अभिनेता जिनकी एक झलक पाने के लिए हर कोई तरसता था। अपने सिनेमा करियर के दौरान राजेश ने लगभग 180 फिल्मों में अभिनय किया और 163 फीचर फिल्मों में भी काम किया है। इसके साथ ही राजेश खन्ना लगभग 128 फिल्मों में मुख्य किरदार की भूमिका भी निभा चुके हैं। 1969 आते-आते राजेश खन्ना की गिनती बॉलीवुड के सुपरस्टार के तौर पर होने लगी थी। इसके साथ ही 1970-1980 में वह सबसे अधिक फीस पाने वाले एक्टर बन गए थे। फिल्मों में सर्वश्रेष्ठ अभिनय करने से राजेश को तीन बार फिल्म फेयर का पुरस्कार मिला।

राजेश खन्ना के राजनीतिक करियर की बात करें तो उन्होंने नई दिल्ली लोकसभा सीट से साल 1992 का उपचुनाव कांग्रेस के टिकट पर लड़े। हालांकि, वह चुनाव हार गए। उसके बाद खन्ना ने इसका विरोध किया। तब उन्होंने दावा किया था कि उनके वोट को लेकर छेड़खानी की गई है। उसके बाद दिल्ली की उस सीट पर उपचुनाव कराया गया। जिसके बाद उन्होंने उस सीट से शत्रुघ्न सिन्हा को हराकर जीत हासिल की। अपने राजनीति कैरियर के दौरान राजेश ने फिल्मों से नाता बिलकुल तोड़ दिया था। इस दौरान उन्होंने एक भी फिल्म नहीं की थी। 2012 के पंजाब चुनाव तक राजेश एक राजनीतिक कार्यकर्ता के तौर पर अपनी पार्टी का प्रचार किया था।

7. स्मृति ईरानी

भारत सरकार में कपड़ा मंत्री तथा महिला एवं विकास मंत्री स्मृति ईरानी पॉलिटिक्स में आने से पहले वह एक अभिनेत्री थीं। 10वीं की परीक्षा पास करने के बाद से ही स्मृति ईरानी ने सिनेमा के दुनिया में कदम रख दिया था। उन्होंने अपनी शुरुआत सौन्दर्य प्रसाधन के प्रचार से की थी। 1998 के मिस इंडिया प्रतियोगिता में भी उन्होंने हिस्सा लिया और फाइनल तक भी पहुंची लेकिन खिताब अपने नाम नहीं कर सकी। उसके बाद वर्ष 2000 में स्मृति ईरानी को ''हम हैं, कल आज और कल" टेलीविजन सीरियल में काम मिला। कुछ समय काम करने के बाद उनको टेलीविजन के मशहूर सीरियल ''क्योंकि सास भी कभी बहू थी'' में लीड रोल मिल गया। इसके बाद इनकी प्रसिद्धि को पर लग गए।

मौजूदा समय में स्मृति ईरानी भारत सरकार में कपड़ा मंत्री तथा महिला एवं विकास मंत्री हैं। वर्ष 2003 में बीजेपी की सदस्यता ग्रहण कर उन्होंने अपनी राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। उस समय स्मृति ईरानी ने दिल्ली के चांदनी चौक लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ा था। हालांकि उस समय स्मृति को हार का सामना करना पड़ा था। सिलसिला आगे बढ़ता रहा और फिर 2010 में स्मृति ईरानी को भाजपा महिला मोर्चा का कमान सौंप दिया गया। इसके बाद 2011 में गुजरात से राज्यसभा की संसद चुनी गई। फिर 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस नेता राहुल गांधी को यूपी के अमेठी सीट से हराकर सांसद बनी। इसके साथ ही उन्होंने कैबिनेट मंत्री के रूप में भी शपथ लिया। 2014 से पहले गैस सिलेंडर के दामों में बढ़ोतरी को लेकर स्मृति ईरानी रोड पर निकल आई थी और कांग्रेस का बड़े पैमाने पर विरोध किया था।

8. धर्मेन्द्र

बॉलीवुड से राजनीतिक करियर की बात हो और धर्मेंद्र उर्फ धर्म सिंह देवल का नाम ना आए ऐसा हो ही नहीं सकता। एक ऐसे अभिनेता जिन्होंने अपने पांच दशकों के करियर में 300 से अधिक फिल्मों में काम किया। पूरा बॉलीवुड इनको ''ही-मैन'' के नाम से जानता है। सिनेमा में अपने करियर की शुरुआत धर्मेंद्र ने 1960 में अर्जुन हिंगोरानी की फिल्म 'दिल भी तेरा हम भी तेरे' के साथ की थी। 1960 के बाद उन्हें रोमांटिक फिल्में भी मिलना शुरू हो गई थी। फिर क्या था धीरे-धीरे धर्मेंद्र पूरे भारत में मशहूर होने लगे। सिनेमा में योगदान के लिए धर्मेंद्र को फिल्म फेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड भी मिल चुका है।

धर्मेंद्र ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत राजस्थान के बीकानेर सीट से बीजेपी उम्मीदवार के तौर पर की थी। वर्ष 2004 में धर्मेंद्र ने इस सीट से चुनाव लड़ा और कांग्रेस नेता बलराम जाखड़ को हराकर सांसद चुने गए। हालांकि, उसके बाद धर्मेंद्र का पॉलिटिकल करियर अधिक समय तक नहीं चल सका।

9. अमिताभ बच्चन

अमिताभ बच्चन ने अपनी राजनीतिक करियर की शुरुआत साल 1984 में की थी। जब राजीव गांधी ने औपचारिक तौर पर अमिताभ बच्चन को यूपी के इलाहाबाद सीट से चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया। कहा जाता है उस समय बच्चन परिवार और गांधी परिवार में गहरी दोस्ती हुआ करती थी। लोगों का मानना है कि उस समय अमिताभ बच्चन को पॉलिटिक्स के बारे में कुछ भी नहीं पता था। लेकिन जब चुनाव हुए उसके बाद अमिताभ ने यूपी के पूर्व सीएम हेमवती नंदन बहुगुणा को 1 लाख 87 हजार वोटों से हराकर जीत दर्ज की थी। इस जीत के पीछे जया बच्चन का हाथ बताया जाता है। क्योंकि, इलाहाबाद में प्रचार के दौरान अमिताभ बच्चन का साथ निभाने के लिए जया बच्चन भी पहुंची थी। और वहीं से चुनाव का रुख बदल गया था। लेकिन जीत का यह सिलसिला लंबे समय तक नहीं चल सका। वर्ष 1987 में हुए बोफोर्स घोटाले में अमिताभ बच्चन का भी नाम आने लगा। अमिताभ बच्चन उस समय विवादों में घिर चुके थे। इसके बाद उन्होंने लोकसभा की सदस्यता से अपना इस्तीफा दे दिया। बता दे कि बोफोर्स में अमिताभ बच्चन के ऊपर जो आरोप लगे थे वह बाद में गलत साबित हुए।

10. गोविंदा

वर्ष 2004 में कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर गोविंदा ने पहली बार राजनीति में कदम रखा था। गोविंद को जीत मिली और वह सांसद चुने गए। लेकिन इस दौरान गोविंदा सिनेमा और राजनीति दोनों को ठीक से संभाल नहीं पा रहे थे। सांसद मैं भी उनकी उपस्थिति बहुत कम रहती थी, इसके साथ ही वह शूटिंग पर भी लेट पहुंचा करते थे। इसी कारण व राजनीति में भी कुछ ही समय तक सक्रिय रह सके। फिर उन्होंने कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया। हालांकि, गोविंदा ने एक बार फिर एकनाथ शिंदे की शिवसेना का दामन थाम कर राजनीति में कदम रखा है। चर्चा है कि वह मुंबई के किसी सीट से चुनाव लड़ सकते हैं।

Created On :   18 April 2024 5:09 PM IST

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