लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी दल क्यों कर रहे लगातार बैठक? बीजेपी पर इन दलों को कितना पड़ेगा असर, समझें इसके सिसायी मायने

Why are opposition parties holding meetings continuously before the Lok Sabha elections? How much impact will these parties have on BJP, understand its political meaning
लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी दल क्यों कर रहे लगातार बैठक? बीजेपी पर इन दलों को कितना पड़ेगा असर, समझें इसके सिसायी मायने
विपक्ष है तैयार! लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी दल क्यों कर रहे लगातार बैठक? बीजेपी पर इन दलों को कितना पड़ेगा असर, समझें इसके सिसायी मायने

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले देशभर के अलग-अलग राज्यों में बीजेपी को चुनावी रण में परास्त करने के लिए सारे विपक्षी दल एक होते नजर आ रहे हैं। सियासी ध्रुवीकरण के इस खेल में विपक्षी पार्टियां भी बीजेपी की राह पर चलते हुए हिंदू कार्ड फेंककर और सामाजिक न्याय की बात कर जनता को अपने पाले में लाने की पुरजोर कोशिश कर रही हैं। तो कहीं पर पुराने गठबंधनों की भी चर्चा तेज है। साथ ही सभी विपक्षी दल एक साथ मीटिंग करके बीजेपी का तोड़ निकालने में जुटे हुए हैं। इसके लिए लगातार बैठकों का दौर जारी हैं।

गौरतलब है कि, सोमवार को बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के संस्थापक कांशीराम की प्रतिमा का अनावरण करने के लिए समाजवादी पार्टी (सपा) के नेता अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश के रायबरेली में पहुंचे हुए थे। इस दौरान उन्होंने अपने पिता मुलायम सिंह यादव और दलित आइकन कांशीराम के पुराने गठबंधन को याद करते हुए एक बार फिर नए सिरे से सामाजिक गठबंधन करने का आह्वान किया। 

महामाया नगर में आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए अखिलेश यादव ने कहा 'कांशीराम जी कई बार छत्तीसगढ़, इलाहाबाद (प्रयागराज) आदि जगहों से चुनाव लड़े, लेकिन इन जगहों पर जीत के बेहद करीब होते हुए भी जीत नहीं सके।' अखलेश यादव ने आगे कहा कि कांशीराम जी को पहली जीत इटावा से मिली। उस वक्त मुलायम सिंह यादव ने उनका सहयोग किया था और इसके बाद साल 1991 में यूपी में नई राजनीति शुरू हुई। 

अखिलेश की रणनीति

जिसके बाद इसी मंच से सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने 1993 के यूपी विधानसभा चुनाव के उन मशहूर नारे को याद करते हुए कहा कि उस वक्त मंदिर के विरोध में बहुजन सामाजिक एकता के लिए नारे लगाए जाते थे। यह नारा था-"मिले मुलायम कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्रीराम।"

लोहिया की विचारधारा वाली सपा ने कांशीराम की मूर्ति स्थापना के बहाने नई दांव चली है। राजनीतिक जानकारों के मुताबिक, सपा अब मानइस मायावती के दलित वोटों को साध रही है। इस नई सोशल इंजीनियरिंग के तहत सपा का मकसद यादव, मुस्लिम, कुर्मी समाज समेत दलित गठजोड़ बनाने की कोशिश है। 

विपक्षी दलों की रणनीति

इधर, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और डीएमके अध्यक्ष एम के स्टालिन ने सोमवार को पहला सामाजिक न्याय सम्मेलन बुलाया। स्टालिन की अगुवाई वाले इस सम्मेलन में विपक्षी पार्टी कांग्रेस समेत कई अन्य विपक्षी दल शामिल हुए। वर्चुअल सम्मेलन में सीएम स्टालिन ने 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी दलों को एक साथ आने का अह्वान किया। उन्होंने कहा कि अलग-अलग राग अलपाने से कोई फायदा नहीं है। हम सभी को इन सभी से ऊपर उठकर संधवाद, समानता और सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने की दिशा में सामूहिक प्रयास करें तो बेहतर होगा। इस दौरान स्टालिन ने जाति आधारित जनगणना की भी वकालत की। 

द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (द्रमुक) की ओर से आयोजित इस कार्यक्रम में 'ऑल इंडिया फॉर सोशल जस्टिस' के हाइब्रिड मोड में आयोजित पहले सम्मेलन में तमिलनाडु के सीएम ने कर्नाटक में मुसलमानों का आरक्षण खत्म करने पर राज्य के सत्तारूढ़ बीजेपी की आलोचना की। उन्होंने बीजेपी पर निशाना साधते हुए कहा कि कर्नाटक में 10 मई के विधानसभा चुनाव को ध्यान रखते हुए इस तरह के कदम उठाए गए हैं।

क्या है तैयारी?

इस दौरान स्टालिन ने केंद्र सरकार से जाति आधारित जनगणना और इसके आंकड़े जारी करने की मांग की। उन्होंने कहा कि सभी राज्यों में जाति आधारित जनगणना पर निगरानी की जानी चाहिए। साथ ही, स्टालिन ने इस सम्मेलन के माध्यम से SC/ST और OBC को एकजुट करने की पहल की। 

स्टालिन द्वारा बुलाए गए इस सम्मेलन में कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी, राजद, तृणमूल कांग्रेस, सीपीएम, भारतीय राष्ट्र समिति, झारखंड मुक्ति मोर्चा, नेशनल कॉन्फ्रेंस, एनसीपी, सीपीआई, एमडीएमके, वीसीके समेत आईयूएमएल के नेतागण शामिल हुए थे। 

बीजेपी पर इन दलों का कितना पड़ेगा असर

इस बैठक में शामिल हुए विपक्षी दलों के चुनावी आंकड़ों के समीकरण की बात करें तो सम्मेलन में शामिल विपक्षी पार्टियों ने 2019 के लोकसभा चुनाव में 37.5 फीसदी वोट हासिल किया था जो बीजेपी को मिले कुल 37.3 से थोड़ा ज्यादा है। इसी तरह सभी विपक्षी पार्टियां अपने आपसी मतभेदों को भूलाकर अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में गठबंधन कर चुनावी मैदान में उतरते हैं तो बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती हैं। साथ ही आम चुनाव में बीजेपी को कड़ी को टक्कर मिलेगी। 

 


 


 

Created On :   4 April 2023 4:29 PM IST

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