चुनाव आयोग के फैसले के बाद हर चुनौतियों का सामना करेगी तृणमूल कांग्रेस
डिजिटल डेस्क, गुवाहाटी। अगस्त 2021 की बात है। तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी दिल्ली में अपने जनपथ स्थित आवास पर असम के पार्टी नेताओं के साथ बैठक कर रही थीं।, राज्य के सभी प्रमुख नेता उपस्थित थे, और राज्य में ग्रैंड ओल्ड पार्टी की स्थिति पर गहन चर्चा की जा रही थी। विधानसभा चुनाव में पार्टी की हार के बाद सोनिया गांधी कांग्रेस के लिए भविष्य की रणनीति बनाना चाहती थीं। पूरी चर्चा के दौरान, सोनिया गांधी ने ज्यादातर समय असम में पार्टी की स्थिति का आकलन करने के लिए सुष्मिता देव के साथ बातचीत करने में बिताया। देव उस समय अखिल भारतीय महिला कांग्रेस की अध्यक्ष थीं। वहां मौजूद कोई भी नेता अगले 48 घंटों में घटनाक्रम का अंदाजा नहीं लगा सका। अगले दिन खबर आई कि सुष्मिता देव ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया है। पार्टी के शीर्ष नेता लगातार डायल कर रहे थे, लेकिन उनका फोन स्विच ऑफ था। तृणमूल कांग्रेस में शामिल होने के बाद उन्हें ममता बनर्जी के साथ देखा गया।
हालांकि यह सबकुछ अचानक हुई घटना लग रही थी, क्योंकि तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के साथ देव का संबंध नहीं था, लेकिन टीएमसी के राज्यसभा सांसद डेरेक ओ ब्रायन काफी लंबे समय से उनसे बातचीत कर रहे थे। दरअसल, लगातार तीसरी बार बंगाल जीतने के तुरंत बाद टीएमसी के नेता राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी के विस्तार की योजना पर जोर दे रहे थे। उन्होंने शुरू में दो राज्यों त्रिपुरा और असम को निशाना बनाया। हालांकि, किसी प्रमुख चेहरे की अनुपस्थिति में पार्टी के विस्तार योजना का विरोध हुआ।
सुष्मिता देव का त्रिपुरा से गहरा नाता था। उनके पिता त्रिपुरा से लोकसभा चुनाव जीते और राजीव गांधी सरकार में मंत्री बने। बंगाली होना देव के लिए एक और फायदा था और तृणमूल ने उन्हें त्रिपुरा के लिए अनुबंधित करने का फैसला किया। करीब दो साल बाद त्रिपुरा के चुनाव में तृणमूल कांग्रेस की बुरी तरह हार हुई। गोवा में भी तृणमूल कांग्रेस को रिस्पॉंस नहीं मिला और मेघालय के चुनाव परिणाम भी पार्टी नेताओं की अपेक्षा के अनुरूप नहीं रहे। पार्टी को जोर का झटका कुछ दिन पहले लगा, जब चुनाव आयोग (ईसी) ने तृणमूल कांग्रेस की राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा खत्म कर दिया। चुनाव आयोग के आदेश के बाद राजनीतिक विश्लेषकों ने तृणमूल की राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं पर सवाल उठाना शुरू कर दिया है।
सुष्मिता देव ने आईएएनएस से कहा, हमारी पार्टी बंगाल से बाहर विस्तार के अपने फैसले से पीछे नहीं हटी है। असम में हम धीरे-धीरे अपने संगठन का विस्तार कर रहे हैं। उन्होंने दावा किया कि भाजपा की राजनीति भय से प्रेरित है। अगर कोई सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर कुछ भी पोस्ट करता है, तो उसे अगले दिन गिरफ्तार कर लिया जाता है। सरकार के काम की आलोचना करना भी प्रशासनिक तंत्र का उपयोग कर विपक्ष के खिलाफ कार्रवाई को आमंत्रित करता है। देव ने कहा, इस स्थिति में, एक नया संगठन बनाना वास्तव में एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। लेकिन मेरा मानना है कि रिपुन बोरा शानदार काम कर रहे हैं और पहले ही सफलता हासिल कर चुके हैं। त्रिपुरा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस को नोटा से कम वोट मिले थे। यह भी एक कारण था कि पार्टी ने अपनी राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा खो दिया।
देव ने कहा, हमने त्रिपुरा में सभी सीटों पर चुनाव नहीं लड़ा। हम केवल 28 सीटों पर लड़े। इसके अलावा, राजनीतिक हिंसा के कारण, हमें बहुत सारी चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जो अन्य विपक्षी दलों ने अनुभव नहीं किया। हमें पार्टी कार्यालय तक नहीं खोलने दिया गया। भाजपा की प्रतिशोध की राजनीति के डर से कोई हमें कार्यालय के लिए जगह नहीं दे रहा था। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि तृणमूल कांग्रेस चुनाव आयोग के फैसले को कानूनी रूप से लड़ने की तैयारी कर रही है। देव ने कहा, अगर हम सिर्फ वोट प्रतिशत की बात करें तो उत्तर प्रदेश चुनाव में कांग्रेस को 2 फीसदी से भी कम वोट मिले और हाल ही में संपन्न मेघालय चुनाव में हमें करीब 14 फीसदी वोट मिले। उन्होंने कहा, मैं कानूनी चीजों के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं दे सकती, हालांकि, चुनाव आयोग के फैसले से लड़ने के लिए पर्याप्त आधार हैं। देव ने यह भी दावा किया कि चुनाव आयोग के राष्ट्रीय दर्जे को खत्म करने का पार्टी के पश्चिम बंगाल के बाहर चुनाव लड़ने से कोई लेना-देना नहीं है और तृणमूल असम में लोगों का विश्वास हासिल कर रही है। उनका मानना है कि पार्टी को त्रिपुरा और मेघालय में भी लोकसभा चुनाव लड़ना चाहिए।
असम में तृणमूल कांग्रेस के अध्यक्ष रिपुन बोरा ने भी यही बात दोहराई। उन्होंने कहा, असम में अधिकतम क्षमता के साथ लोकसभा चुनाव लड़ना हमारी पहली प्राथमिकता है। लोग हमारे साथ जुड़ रहे हैं। चुनाव आयोग के फैसले के बाद कुछ भी नहीं बदला है। उन्होंने चुनाव आयोग के कदम पर सवाल उठाते हुए कहा, राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिलने के 10 साल बाद इसकी समीक्षा का प्रावधान है। हम 2016 में राष्ट्रीय पार्टी बने और इसे केवल 7 साल बाद खत्म कर दिया गया। उन्होंने जोर देकर कहा कि उनका ध्यान नहीं बदला है और पार्टी 2024 में राज्य में भाजपा के खिलाफ एक मजबूत लड़ाई की उम्मीद कर रही है।
(आईएएनएस)
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Created On :   16 April 2023 1:00 PM IST