सीएम अशोक गहलोत ने वोटर्स को साधने के लिए बनाई नई रणनीति, आयुष्मान योजना के तर्ज पर लाए राइट टू हेल्थ बिल

CM Ashok Gehlot made a strong strategy to help voters, brought Right to Health Bill
सीएम अशोक गहलोत ने वोटर्स को साधने के लिए बनाई नई रणनीति, आयुष्मान योजना के तर्ज पर लाए राइट टू हेल्थ बिल
भाजपा की घेराबंदी सीएम अशोक गहलोत ने वोटर्स को साधने के लिए बनाई नई रणनीति, आयुष्मान योजना के तर्ज पर लाए राइट टू हेल्थ बिल

डिजिटल डेस्क,जयपुर। राजस्थान में सियासी सरगर्मियां तेज हो गई हैं। प्रदेश की गहलोत सरकार ने वोटर्स को साधने के लिए एक नया तुरूप का इक्का चला है। जिससे मतदाताओं को अपने पाले में लाया जा सके। दरअसल, इसी साल राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। जिसका ध्यान रखते हुए गहलोत सरकार "राइट टू हेल्थ बिल" लाई है। जिसका मकसद लोगों को बेहतर उपचार देना है। 

हालांकि, इस बिल को लेकर प्रदेश के निजी अस्पतालों के डॉक्टर्स जमकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं और सरकार से इस बिल को लेकर पुनः विचार करने की मांग कर रहे हैं।

आयुष्मान भारत को टक्कर देगा चिरंजीवी योजना 

राजस्थान की सरकार पहले से ही अपने चिरंजीवी योजना को लेकर अपनी पीठ थप थपाती रही है। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो पहले चिरंजीवी योजना और अब राइट टू हेल्थ बिल लाकर गहलोत सरकार केंद्र की आयुष्मान भारत योजना को सीधी टक्कर देना चाहती है। कुछ राजनीतिक पंडितों का यह भी मानना है कि इस योजना से आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा के प्रति मुद्दा भुनाने के लिए सीएम अशोक गहलोत और कांग्रेस पार्टी के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है। जबकि भाजपा को इस बिल को सिरे से नकार देना इतना आसान नहीं रहने वाला है क्योंकि उसे भी लगता है कि प्रदेश की जनता के लिए यह बिल कितना करागर साबित हो सकता है। 

गरीबों को मिलेगा फायदा

बता दें कि, राजस्थान में पहले से लागू चिरंजीवी योजना से 25 लाख तक की राशि से मरीज लाभ उठा रहे हैं। यह लाभ गरीब लोगों एवं गंभीर रोग से पीड़ित लोगों को दी जाती है। इस योजना का लाभ राजस्थान के रहवासी ही ले सकते हैं। इस योजना के तहत मरीज, राजस्थान सरकार द्वारा चुने गए सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में पांच लाख रूपये तक के स्वास्थ्य बीमा का लाभ भी उठा सकते हैं। लेकिन इन सब से इतर राइट टू हेल्थ बिल सरकार के लिए नई मुसीबत बनती जा रही है। सरकार के इस बिल के खिलाफ निजी हॉस्पिटल के डॉक्टर्स सड़क पर उतर गए हैं और गहलोत सरकार से इस बिल को स्पष्ट रूप से बताने की मांग कर रहे हैं।

क्या है राइट टू हेल्थ बिल?

बीते सोमवार को गहलोत सरकार ने विधानसभा में राइट टू हेल्थ बिल पेश किया और बहुमत के आंकड़े से पास भी हो गया। इस बिल में कहा गया है कि निजी अस्पतालों को अब सरकारी हॉस्पिटल की तरह ही बिना किसी रूपये लिए हुए मरीज का उपचार करना होगा। साथ ही जो व्यक्ति दुर्घटनाओं के दौरान घायल मरीज को लाता है तो उसे पांच हजार रूपये गिफ्ट के तौर दिए जाएं। इसके अलावा इस बिल में काफी लंबे चौड़े प्रवाधान भी हैं, जिसको लेकर निजी अस्पतालों के डॉक्टर्स नाखुश नजर आ रहे हैं और सरकार से इस पर दुबारा से विचार करने को कह रहे हैं। 

डॉक्टर्स क्यों कर रहे हैं विरोध?

निजी हॉस्पिटल के डॉक्टर्स का कहना है कि इस कानून से सीधे तौर पर हमारी जेब पर बोझ पड़ेगा। सरकार ने तो कानून के रूप में इसे पारित कर दिया लेकिन इसमें हमारा ख्याल नहीं रखा गया है। विरोध कर रहे डॉक्टर्स का कहना है कि इस बिल के अनुसार, जब कोई मरीज किसी दुर्घटना का शिकार हुआ हो और उसके इलाज में काफी मोटी रकम लगती है तो वो सारे खर्च अस्पताल और डॉक्टर्स को उठानी पड़ेगी। जो सरासर गलत है, हम ये नहीं कर सकते हैं।

डॉक्टर्स ये भी कह रहे हैं कि अगर मरीज को गंभीर बीमारी की वजह से किसी दूसरे जगह रेफर किया जाता है तो हमें अपने ही खर्च से उसे वहां शिफ्ट करना होगा। वो आगे कहते हैं कि सरकार यह बिल लाकर निजी अस्पतालों को बाध्य कर रही है और यह सारी बातें हमें मानसिक तौर पर पीड़ा पहुंचा रही हैं।  
 

Created On :   22 March 2023 1:04 PM IST

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