लोकसभा चुनाव 2024: भाजपा के राहुल को ‘कार्यकर्ताओं की मेहनत’, तो कांग्रेस के तरबर को ‘जनता से जुड़े मुद्दों’ पर भरोसा

भाजपा के राहुल को ‘कार्यकर्ताओं की मेहनत’, तो कांग्रेस के तरबर को ‘जनता से जुड़े मुद्दों’ पर भरोसा
  • हटा शहर में सडक़ किनारे खड़ा कांग्रेस प्रत्याशी का प्रचार वाहन
  • हटा में चौराहे पर टीवी स्क्रीन के माध्यम से प्रचार करता भाजपा का विकसित भारत रथ
  • जानिए दोनों उम्मीदवारों के सामने क्या है चुनौतियां

दमोह से कपिल श्रीवास्तव। जबलपुर से 41 किलोमीटर दूर दमोह जिले की सीमा पर बसे ग्राम गुबरा से दमोह संसदीय सीट के लिए चल रहे चुनाव प्रचार की झलक पार्टी के झंडों की शक्ल में मिलना शुरू हो जाती है, लेकिन इसमें चमक या तेजी, कहीं नहीं दिखाई देती। गुबरा से 100 किलोमीटर दूर हटा में कांग्रेस प्रत्याशी तरबर सिंह का एक प्रचार वाहन सडक़ किनारे खाली खड़ा दिखाई दिया। यहीं शहर की सडक़ों पर भाजपा का विकसित भारत का प्रचार रथ प्रधानमंत्री मोदी तथा उनकी योजनाओं का टीवी स्क्रीन के माध्यम से प्रचार प्रसार करता घूम रहा था। झंडे भी कहीं-कहीं लगे दिखे। राहुल और उनकी टीम मोदी की योजनाओं को घर-घर तक पहुंचाने तथा मोदी और विकास पर ज्यादा जोर दे रहे हैं। उनके लिए पार्टी के सातों विधायक सहित संगठन के पदाधिकारी अपने-अपने क्षेत्र में मोर्चा संभाले हुए हैं। दूसरी तरफ तरबर भाजपा तथा प्रधानमंत्री मोदी की गारंटियों को पूरा नहीं होने को ‘झूठ’ के रूप में जनता के सामने रख रहे हैं, साथ ही 35 साल की भाजपा सांसदों की विफलताओं और बिकाऊ तथा टिकाऊ वाले मुद्दे को लेकर जनता के बीच जा रहे हैं। उनके साथ संसदीय क्षेत्र की इकलौती बड़ामलहरा विधायक जरूर दिखीं। पार्टी के पूर्व विधायक (दमोह) तो तरवर के लिए जोर लगाते दिखे लेकिन जिले के बड़े नेता प्रचार से नदारद नजर आए।

पूर्व मंत्री राजा पटैरिया अपने खेत पर काम करते मिले तो पूर्व जिला अध्यक्ष मनु मिश्रा पिछले दो -तीन दिन से जबलपुर में बने हुए हैं। वोट बैंक पर पकड़ रखने वाले तिलक सिंह लोधी जैसे नेता घर में सिमटे दिखे। कई नेता तो कांग्रेस छोड़ भाजपा में जा चुके हैं इसलिए तरबर को अपनी खुद की टीम के साथ प्रचार अभियान चलाना पड़ रहा है। राहुल का ज्यादा जोर जिले की चारों विधानसभा सीटों हटा, पथरिया, जबेरा तथा दमोह पर है तो तरबर का सागर जिले की बंडा, रहली, देवरी तथा छतरपुर जिले के बड़ामलहरा पर ध्यान है। ऐसा इसलिए क्योंकि बंडा व देवरी कांग्रेस 2018 में जीत चुकी है। तरबर खुद बंडा से जीते थे और बड़ामलहरा इस समय कांग्रेस के पास है। ‘विकास’ का नाम दोनों की जुबान पर है लेकिन यह होगा कैसे, इसका फुल प्रूफ प्लान फिलहाल दोनों के पास नहीं है। जीत का विश्वास दोनों को है। राहुल कहते हैं, हमारे पास पार्टी का बड़ा संगठनात्मक ढांचा, अनुभवी तथा कद्दावर नेताओं का मार्गदर्शन और कार्यकर्ताओं की बड़ी सेना है। इन सबके सहयोग से हम दमोह सीट फिर जीतेंगे। तरबर को क्षेत्र की जनता तथा उससे जुड़े क्षेत्र के पिछड़ेपन, बेरोजगारी, पलायन जैसे मुद्दों पर भरोसा है। वे कहते हैं कि दमोह की जनता ने 2021 के दमोह उपचुनाव में यह बता दिया था कि ‘बिकाऊ’ नहीं चलेगा। संसदीय क्षेत्र की जनता भी ऐसे प्रत्याशी को नकार देगी।

काम तो कार्यकर्ता करता है - राहुल सिंह

भाजपा प्रत्याशी राहुल सिंह दमोह में जनसंपर्क के बाद अपने घर पर कार्यकर्ताओं की बैठक करते मिले। उन्होंने बातचीत में कहा, भाजपा कार्यकर्ता आधारित पार्टी है। कार्यकर्ता 24 घंटे और 12 महीने काम करते हैं। टिकट किसी को भी मिले काम कार्यकर्ता करता है । वे सभी 2285 बूथ पर कार्यकर्ता मुस्तैदी से काम कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दस साल के नेतृत्व में देश के हुए विकास तथा उनकी गारंटी पर मुझे जीत का पूरा भरोसा है।

राहुल के सामने चुनौती

उपचुनाव में उठा ‘बिकाऊ और टिकाऊ’ वाला मुद्दा फिर से जिंदा होना। अपने ही समाज के वोट बैंक के बटने का खतरा। प्रतिद्वंदी तरबर की बेदाग छवि और उनकसे बंडा की जनता की साहनुभूति। रहली छोड़ बंडा व देवरी सहित छतरपुर के बड़ामलहरा में कांग्रेस की ज्यादा सक्रियता। क्षेत्रवाद यानि सांसद सागर का हो या दमोह से ही, इसे लेकर सागर की तीनों सीटों पर चल रही हवा। गेहूं तथा धान की एमसपी को लेकर किसानों में नाराजगी। पानी व बिजली को लेकर हर विधानसभा सीट पर आमजन में व्यवस्था को लेकर रोष।

मेरी ताकत जनता और उससे जुड़े मुद्दे - तरबर सिंह

कांग्रेस प्रत्याशी तरबर सिंह मलहरा के ग्राम धुनगवां तथा सड़वा में छोटी-छोटी सभाएं करते मिले। उन्होंने चर्चा में कहा, मेरी टीम, पार्टी का कार्यकर्ता तथा जनता से जुड़े मुद्दे ही मेरी ताकत हैं। 35 साल से दमोह में बीजेपी का सांसद बनता आ रहा है, कोई बड़ी सौगात नहीं मिली। प्रधानमंत्री मोदी व भाजपा का झूठ भी सामने है। क्षेत्र के सभी 8 विधानसभा क्षेत्र पिछड़े हुए हैं। न उद्योग, न रोजगार के दूसरे साधन, जिससे लोगों को रोजगार मिल सके। यहां की सीमेंट फैक्ट्री भी कांग्रेस की देन है।

तरबर के सामने चुनौती

विधानसभा चुनावों में भाजपा के ज्यादातर विधायक 50 हजार से अधिक वोटों के अंतर से जीते थे। इस बड़े अंतर को पाटना। यहां से दो बार सांसद रहे प्रदेश के पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री प्रह्लाद पटेल के साथ क्षेत्र के 2-2 मंत्री धर्मेन्द्र सिंह लोधी तथा लखन पटेल और अपने क्षेत्र में खासा प्रभाव रखने वाले पार्टी के बड़ेे नेताओं में शुमार विधायक गोपाल भार्गव (रहली) तथा जयंत मलैया (दमोह) जैसे धुरंधरों की रणनीति। प्रचार अभियान से पार्टी के खासतौर पर जिले के बड़े नेताओं की दूरी और कमजोर संगठनात्मक ढांचा।

क्षेत्रवाद परिणाम तय करने में निभा सकता है बड़ी भूमिका

तीन जिलों दमोह, सागर तथा छतरपुर जिले की 8 विधानसभा सीटों को समाहित करते हुए बनी दमोह लोकसभा सीट पर इस बार मुकाबला दिलचस्प होने के साथ चुनौती भरा भी है। वजह क्षेत्रवाद, जातिगत समींंकरणों के गड़बड़ाने की आशंका, भाजपा-कांग्रेस के प्रत्याशी और उनसे जुड़े कई संयोग। भाजपा तथा कांग्रेस ने अपने दोनों हारे हुए विधायकों राहुल सिंह तथा तरबर सिंह पर दांव लगाया है। दोनों युवा हैं, लोधी समाज से आते हैं। रिश्तेदारी के साथ दोनों में गाढ़ी मित्रता भी है। 2018-19 के विधानसभा सत्र दौरान भी दोनों साथ-साथ बैठते थे। उस समय दोनों कांग्रेस में थे। मप्र में सत्ता परिवर्तन के बाद राहुल ने पाला बदला भाजपा में चले गए। संयोग से भाजपा के राहुल 2021 का उपचुनाव हार गए और कांग्रेस के तरबर 2023 में अपनी सीट नहीं बचा सके। अब दोनों संसद में पहुंचने आमने-सामने हैं। दोनों का अपना प्रभाव क्षेत्र और वोट बैंक है। चूकि राहुल दमोह और तरबर सागर के बंडा के हैें लिहाजा इस बार के चुनावों में लोधी समाज के वोटों के साथ अन्य समाजों के वोट बटने का भी खतरा पैदा हो गया है।

भाजपा व कांग्रेस के दमोह, पथरिया, हटा व जबेरा सहित सागर जिले की तीन सीटों बंडा, रहली व देवरी के अपने वोट बैंक का मिजाज क्षेत्रवाद यानि भावी सांसद दमोह का ही हो या फिर सागर जिले का इसे लेकर ऐनवक्त पर मानस बदल सकता है और संसदीय क्षेत्र का सर्वाधिक 23 प्रतिशत लोधी व कुर्मी वोट बट सकता हैे। 17 प्रतिशत सवर्ण तो बड़ी भूमिका निभाएंगे ही इस वर्ग के साथ 6 प्रतिशत यादव मतदाताओं को अपने-अपने प्रत्याशियों के पक्ष में करने मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव सहित प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अरूण यादव भी जोर मार रहे हैं। दरअसल, दमोह सीट पर पिछड़े वर्ग के मतदाताओं की आबादी ज्यादा है। यही वजह है कि यहां भाजपा हो या कांग्रेस दोनों ही दल पिछड़े वर्ग के उम्मीदवार को चुनावी मैदान में उतारते हैं। भाजपा ने बीते आठ चुनाव में पिछड़े वर्ग के उम्मीदवार को मैदान में उतारा और उसे सफलता मिली। इस बार दोनों के उम्मीदवार लोधी समाज से हैं, ऐसे में मुस्लिम, जैन और ब्राह्मण मतदाताओं की नतीजों में बड़ी भूमिका रहेगी।

Created On :   24 April 2024 3:37 PM IST

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story